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आज भी हम जब किसी शख्स को गांव-देहात-कस्बों या शहर के सड़कों पर साइकिल दौड़ाते देखते हैं तो लगता है जैसे मानवता सुरक्षित है. लगता है जैसे एक दिन सब-कुछ ठीक हो जाएगा, मगर क्या आप जानते हैं कि साइकिल को पूरे देश में सर्वसुलभ करवाने वाले हीरो साइकिल समूह के संस्थापक सदस्य सत्यानंद मुंजाल का आज इंतकाल हो गया है.
वे 95 वर्ष के थे और इतनी उम्र होने के बावजूद चंचल और चपल भी. वे अपने परिवार के साथ साल 1944 में हिंद-पाक विभाजन पर हिंदुस्तान आए थे.
पाकिस्तान से चलकर हिंदुस्तान आए...
वैसे तो हिंद-पाक विभाजन ने कितनों से न जाने क्या-क्या छीन लिया. किन्हीं से उनके अपने तो किसी से उनकी जमीन-जायदाद और विरासत. अपनी यादों को सहेजे हुए लोग पाकिस्तान से हिंदुस्तान की सरजमीं पर चले आए और यहीं सांमजस्य बिठा कर आगे की जिंदगी बिताने और संघर्ष करने का निर्णय लिया. मुंजाल टाइटिल के नाम से खुद को मार्केट में स्थापित करने वाला यह परिवार साल 1944 में पाकिस्तान के कमालिया से अमृतसर आया था.
लुधियाना में स्थापित किया हीरो का साम्राज्य...
मुंजाल परिवार साल 1944 में पाकिस्तान के कमालिया से हिंदुस्तान के अमृतसर शहर आया था, और सत्यानंद मुंजाल ने उनके भाईयों बृजमोहन और ओपी मुंजाल के साथ अमृतसर में साइकिल के कल-पुर्जों की सप्लाई शुरू की और अपने कारोबार को बढ़ाते हुए अमृतसर से लुधियाना तक ले गए.
उन्होंने हीरो को दुनिया की अग्रणी साइकिल कंपनी के तौर पर स्थापित किया और साइकिल को देश के गली-गली और मोहल्लों तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभायी. हीरो समूह आज भारत के साइकिल उद्योग का 48 फीसदी हिस्सेदारी रखता है, और इसी वजह से इनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है.
साल 2012 में हीरो समूह द्वारा कुल बनाए गए साइकिलों की संख्या 13 करोड़ के आंकड़े को भी पार कर गयी. अब इससे शानदार सफर आखिर किसे कहेंगे...