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फसलों की कटाई के अवसर पर पोंगल के समय मदुरै में आयोजित होने वाला तमिलनाडु का विवादित खेल जल्लीकट्टू इन दिनों चर्चा का केंद्र बना हुआ है.
तमिलनाडु में आज पोंगल, प्रतिबंध के बावजूद कई जगह जल्लीकट्टू का आयोजन
पर ये जल्लीकट्टू है क्या. किस खेल का नाम है. इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने अंतरिम रोक क्यों लगा दी है... आदि जैसे सवाल आपके मन में भी उठते होंगे. यहां जल्लीकट्टू के बारे में वो सब कुछ है, जिसे आप जानना चाहते हैं...
क्या होता है जल्लीकट्टू
जल्लीकट्टू, दरअसल मट्टू पोंगल का हिस्सा है, जिसे पोंगल के तीसरे दिन खेला जाता है. तमिल में मट्टू
का अर्थ होता है बैल या सांड. पोंगल का तीसरा दिन मवेशियों को समर्पित होता है. इसलिए इस दिन सांडों वाला
खेल यानी कि जल्लीकट्टू आयोजित किया जाता है.
कितना पुराना खेल और कैसे खेला जाता है
तमिलनाडु में इस खेल की प्रथा 2500 साल पुरानी है. इसमें सांडों की सींघों में सिक्के या नोट फंसाकर
रखे जाते हैं. फिर उन्हें भड़काकर भीड़ में छोड़ दिया जाता है, ताकि लोग सींघों से पकड़कर उन्हें काबू में करें.
सांडों को भड़काने के लिए उन्हें शराब पिलाने से लेकर उनकी आंखों में मिर्च डाला जाता है और उनकी पूंछ को मरोड़ा जाता है, ताकि वो तेज दौड़ सकें.
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खेल में पराक्रम दिखाकर जीतने वाले को नकद इनाम भी दिया जाता है.
तमिलनाडु में क्यों है इसका इतना महत्व
दरअसल, जल्लीकट्टू के जरिये तमिलनाडु के किसान अपनी और अपने सांढ़ की ताकत का प्रदर्शन करते
हैं. इससे उन्हें यह पता चल जाता है कि उनका सांढ़ कितना मजबूत है और ब्रिडिंग के लिए उनका उपयोग किया
जाता है.
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बैन क्यों
पशु कार्यकर्ताओं और पशु कल्याण संगठनों जैसे कि फेडरेशन ऑफ इंडिया एनिमल प्रोटेक्शन एजेंसी
(FIAPO) और पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) आदि द्वारा दस साल की लड़ाई
लड़ने के बाद 7 मई 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने जानवरों के साथ हिंसक बर्ताव को देखते हुए इस खेल को बैन कर
दिया था.