Advertisement

भगत सिंह पर वायरल मैसेज का ये है सच, जानिए 14 फरवरी से रिश्ता

कहा जाता है कि 1 फरवरी 1931 को महान क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर के एक जेल में फांसी दी गई थी. साथ ही कई मैसेज में इस दिन भगत सिंह को फांसी सुनाए जाने का जिक्र होता है.

भगत सिंह भगत सिंह
मोहित पारीक
  • नई दिल्ली,
  • 14 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 5:21 PM IST

हर साल वेलेंटाइन डे के आसपास एक मैसेज वायरल होता है, जिसमें कहा जाता है कि 14 फरवरी को वेलेंटाइन डे के रूप में नहीं, बल्कि भगत सिंह की याद में मनाया जाना चाहिए. कहा जाता है कि 14 फरवरी 1931 को महान क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर के एक जेल में फांसी दी गई थी. साथ ही कई मैसेज में इस दिन भगत सिंह को फांसी सुनाए जाने का जिक्र होता है. हालांकि आपको बता दें कि सोशल मीडिया पर वायरल होने वाले ये मैसेज गलत है.

Advertisement

23 मार्च को हुई थी फांसी

ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 14 फरवरी को फांसी नहीं दी गई थी, बल्कि उन्हें 23 मार्च को फांसी पर लटकाया गया था. 23 मार्च को पूरा देश शहीदी दिवस के रूप में भी मनाया है. कई रिपोर्ट्स में यह जिक्र जरूर है कि इन तीन महान क्रांतिकारियों को फांसी देने की तारीख 24 मार्च 1931 तय की गई थी, लेकिन अचानक ही उनकी फांसी का समय बदल कर 11 घंटे पहले कर दिया गया और 23 मार्च 1931 को लाहौर जेल में शाम 7:30 बजे उन्हें फांसी दे दी गई.

फांसी से पहले जेल में ये किताबें पढ़ रहे थे भगत सिंह

इस दिन सुनाई गई सजा

कई मैसेज में फांसी पर चढ़ाने का दावा नहीं, बल्कि फांसी सुनाए जाने की बात कही जाती है. हालांकि यह दावा भी गलत है, क्योंकि 7 अक्टूबर 1930 को ब्रिटिश कोर्ट ने अपने 300 पेज का जजमेंट सुनाया, जिसमें भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को सांडर्स मर्डर और एसेंबली बम कांड में दोषी करार दिया गया और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई.

Advertisement

भगत सिंह को बेगुनाह साबित करने के लिए फांसी के 86 साल बाद भी चल रही कानूनी लड़ाई

क्या है 14 फरवरी से रिश्ता

कई इतिहास के जानकारों का कहना है कि 14 फरवरी से भगत सिंह का रिश्ता ये है कि 14 फरवरी 1931 को मदन मोहन मालवीय जी ने फांसी से ठीक 41 दिन पहले एक मर्सी पिटीशन ब्रिटिश भारत के वायसराय लॉर्ड इरविन के दफ्तर में डाली थी, जिसको इरविन ने खारिज कर दिया था. हालांकि कई रिपोर्ट्स का कहना है कि इतिहास में ऐसे भी किसी दावे की पुष्टि नहीं होती.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement