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जानें किस तरह व्यापम घोटाले पर सांसत में है बीजेपी और संघ

बीजेपी ने फिलहाल शिवराज को अभयदान देते हुए खुद कमान संभाली. नैतिकता के मुद्दे पर यह पार्टी और संघ के लिए इम्तिहान की घड़ी.

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती
संतोष कुमार
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  • 13 जुलाई 2015,
  • अपडेटेड 1:48 PM IST

पहले तूफान गुजर जाने दो फिर विकास का एजेंडा आगे बढ़ाकर सरकार के खिलाफ बनी अवधारणा को कमजोर करो.” मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) भर्ती घोटाले की आंच में झुलसी बीजेपी के शीर्ष स्तरीय संकटमोचन समूह की दो दौर की बैठक का यही निचोड़ है. अब तक इस मामले को राज्य स्तर पर निबटाने की कोशिश में लगे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कुर्सी अब पूरी तरह से आलाकमान की दया पर निर्भर हो गई है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट की ओर से बिना किसी तल्ख टिप्पणी के मामला सीबीआइ को सौंपना चौहान के लिए फौरी राहत लेकर आया तो बीजेपी आलाकमान ने चौहान को फिलहाल अभयदान दे दिया. लेकिन अभी तक प्रशासनिक मुश्किल में घिरे मुख्यमंत्री अब विरोधियों के साथ-साथ पार्टी की अंदरूनी राजनीति में भी घिर गए हैं. राज्य की राजनीति में क्षत्रप के तौर पर स्थापित चौहान भले मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान रहेंगे लेकिन व्यापम से जुड़े हर मामले और छवि सुधारने के लिए अपनाए जाने वाले विकास के एजेंडे पर उन्हें आलाकमान की हरी झंडी लेनी होगी. हालांकि राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राज्य बीजेपी के प्रभारी विनय सहस्रबुद्धे इंडिया टुडे से बातचीत में कहते हैं, “व्यापम के मामले में प्रशासनिक निर्बलता सामने आई है. इस मामले को कांग्रेस ने नहीं, बीजेपी की ही सरकार ने उजागर किया है और मुख्यमंत्री ने खुद तय किया कि इस मामले की तह में पहुंचा जाए और दोषियों को सजा मिले. इसमें बीजेपी के भी कुछ नेता पकड़े गए, फिर भी कदम पीछे नहीं खींचे. लेकिन हमारा मानना है कि इस बीच के 15-20 दिनों में कुछ संदेहास्पद मृत्यु होने के कारण मीडिया में मामला खूब उछला जिससे हमारे सामने अवधारणा के संकट का निर्माण हुआ.” वे यह भी कहते हैं, “इस मामले में हमारी विश्वसनीयता किसी अपराधी को कानून के सामने दंडित करने की प्रतिबद्धता और प्रखरता से आएगी और उसी माध्यम से हमारे प्रति बनी गलत अवधारणा का हम मुकाबला कर पाएंगे.”

उधर मौत, इधर बैठकों का सिलसिला व्यापम में संलिप्त लोगों की लगातार मौत के बाद पत्रकार और जांच में जुटे अधिकारियों की मौतों ने मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार पर तलवारें लटका दीं तो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, वित्त मंत्री अरुण जेटली और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस घोटाले के राजनैतिक दुष्प्रभाव को लेकर लंबी चर्चा की. इस बैठक के बाद व्यापम की पूरी निगरानी अब केंद्रीय नेतृत्व ने संभाल ली है. 6 जुलाई को इस मुद्दे पर शाह ने राज्य बीजेपी के प्रभारी और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहस्रबुद्धे और संगठन महामंत्री रामलाल के साथ भी बैठक की, जिसमें शीर्ष स्तरीय बैठकों में लिए गए फैसलों को जल्द लागू करने का खाका तैयार किया गया. इस बैठक में टेली कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मुख्यमंत्री को भी शामिल किया गया. हालांकि इस मामले में केंद्रीय नेतृत्व से कोई आधिकारिक तौर पर चौहान के बचाव में नहीं उतरा. लेकिन सूत्रों के मुताबिक, चौहान की सारी दलीलों पर विचार के बाद खुद शाह ने उन्हें निर्देश दिया, “इस मामले से जुड़े जिन-जिन लोगों को भय है और वे सुरक्षा की मांग कर रहे हैं तो सरकार उन्हें फौरन सुरक्षा मुहैया कराए और यह सुनिश्चित करे कि कोई मौत न हो.”
 
छवि दुरुस्त करने को अब होगा बदलाव

राज्य सरकार के खिलाफ बनी अवधारणा को ठीक करने की जिम्मेदारी संभालते हुए बीजेपी आलाकमान ने मुख्य तौर से सरकार को तीन प्रशासनिक बदलाव करने के निर्देश दिए हैं. पहला यह कि परीक्षा तंत्र में नई तकनीकों का इस्तेमाल कर व्यापक बदलाव किया जाए ताकि नकल करने या उत्तर पुस्तिका बदलकर होने वाली धांधली को रोका जा सके. उत्तर पुस्तिका की जांच में मुख्य पन्ने को जांच से पहले हटा लिया जाए ताकि जांच के दौरान कोई धांधली नहीं हो. इसके साथ ही पार्टी ने चौहान सरकार को सुझाव दिया है कि विश्वविद्यालय की परीक्षाएं अमूमन प्रश्न बैंक के आधार पर होती हैं. कक्षा में कोई नकल नहीं हो इसके लिए अलग-अलग कक्षाओं में सवालों के नंबर बदलकर भी दिए जाने का प्रावधान किया जाए. लेकिन सबसे अहम निर्देश यह दिया गया है कि मुख्यमंत्री चौहान खुद राज्य मानवाधिकार आयोग और महिला आयोग को एक चिट्ठी लिखकर यह अपील करें कि जितने लोगों की अभी तक मौत हुई है उसकी जांच कर ले. बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता की दलील है कि भले कोई आरोपी हो, लेकिन जेल में बंद होने के बावजूद उसका मानवाधिकार होता है और कहीं इसका हनन हुआ है या नहीं, इसकी बाकायदा जांच आयोग की ओर से कराने पर सरकार के खिलाफ बनी अवधारणा को दूर किया जा सकता है. साथ ही इस भर्ती घोटाले के आरोप में जेल में बंद लोगों की जमानत याचिका पर राज्य सरकार की ओर से कोई औपचारिक विरोध नहीं करने का निर्देश भी चौहान को दिया गया है. बीजेपी आलाकमान का मानना है कि इस केस में बंद लोग कोई इरादतन या अभ्यस्त अपराधी नहीं हैं इसलिए सरकार को जमानत याचिका का विरोध नहीं करना चाहिए. इस सुझाव को लेकर पार्टी का मानना है कि आत्महत्याओं की प्रमुख वजह युवाओं को हिरासत में लेने और भारी संख्या में दर्ज मुकदमों की वजह से सामाजिक-मानसिक आघात भी है. बीजेपी की बैठकों में शामिल एक नेता का कहना है कि ज्यादातर मुकदमों में छात्रों पर भी धारा-420 के तहत धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज है, जबकि नकल जैसे मामलों में इस धारा को लगाना तर्कसंगत नहीं था. ऐसे छात्रों को पेशेवर अपराधी नहीं माना जा सकता.
 
नेतृत्व परिवर्तन पर भारी राजनैतिक दुविधा
व्यापम घोटाले की वजह से बीजेपी और लोकसभा चुनाव के दौरान ताल ठोककर नैतिकता की दुहाई देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साख पर बट्टा लगा है और पार्टी राज्य में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर जबरदस्त दुविधा में है. इस सवाल पर राज्य बीजेपी के प्रभारी विनय सहस्रबुद्धे कहते हैं, “आज की तारीख में राज” में नेतृत्व परिवर्तन की कोई वजह नहीं है.” लेकिन सूत्रों के मुताबिक, इस मामले में बीजेपी के संकटमोचन समूह ने गहन मंथन किया. सूत्रों के मुताबिक, इस बैठक में मौजूद दस्तावेजों और चौहान की सफाई को ध्यान में रखते हुए महसूस किया गया कि व्यापम के मामले को शिवराज पूरी तरह से समझ नहीं पाए. पहले दौर की बैठक के बाद राजनाथ सिंह ने मुख्यमंत्री से फोन पर बात की और मौखिक तौर से यह बयान देने को कहा कि अगर हाइकोर्ट किसी अन्य एजेंसी से जांच कराना चाहे तो सरकार को आपत्ति नहीं है. राजनाथ ने खुद भी यह बयान सार्वजनिक तौर पर दिया. उस समय पार्टी नेतृत्व की दुविधा यह थी कि एसटीएफ की जांच पर पिछले साल खुद सुप्रीम कोर्ट ने संतोष जताया था, ऐसे में सरकार का आगे बढ़कर सीधे सीबीआइ जांच का ऐलान कर देना उचित नहीं होगा. लेकिन जब मामला नियंत्रण से बाहर जाता दिखा तो संकटमोचन समूह ने फिर बैठक की और राज्य सरकार को निर्देश दिया गया कि वह हाइकोर्ट में खुद आवेदन देकर सीबीआइ को जांच सौंपने की मांग करे ताकि इस तूफान को जल्द थामा जा सके. विपक्ष के बढ़ते दबाव और पार्टी की गिरती साख को लेकर पार्टी ने नेतृत्व परिवर्तन पर भी चर्चा की, पर इसको लेकर आम राय नहीं दिखी इसलिए फिलहाल इस मुद्दे को छोड़ देने की सहमति बनी. आलाकमान का का मानना है कि राज्य में चुनाव अभी कई साल दूर हैं और इस बवंडर के थमने के बाद सरकार अगर पूरी तरह से विकास के एजेंडे पर ईमानदारी से फोकस कर दे तो सरकार के खिलाफ बनी अवधारणा को दुरुस्त किया जा सकता है. लेकिन इसके लिए भी अब शिवराज को केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश पर ही काम करने को मजबूर होना पड़ेगा.

बीजेपी की मुश्किल यह है कि राज्य में शिवराज के मुकाबले का लोकप्रिय चेहरा उसके पास नहीं है. लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा केंद्रीय मंत्री उमा भारती के विरोधी सुर ने भी आलाकमान पर दबाव बढ़ा दिया था. हालांकि एक वरिष्ठ नेता उमा के रुख पर कुछ यों टिप्पणी करते हैं, “उमा का स्वभाव जगजाहिर है, लेकिन इस संकट की घड़ी में उन्हें साधकर साथ रखना भी हमारी मजबूरी है.” लेकिन उमा अगस्त, 2004 में जिस तरह मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री पद से हटीं, उसकी टीस उनके मन में बार-बार उभरकर आ जाती है. बीजेपी के एक वरिष्ठ रणनीतिकार का मानना है कि इस वक्त उमा भारती पूरी तरह से नरेंद्र मोदी-शाह कैंप में शरणागत होकर देर-सबेर 6, श्यामला हिल्स (मुख्यमंत्री का आधिकारिक आवास) का अपना वनवास खत्म करना जरूर चाहेंगी. लेकिन जिस तरह से शाह ने कैलाश विजयवर्गीय को महासचिव बनाकर संदेश दिया है उससे यह भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि बीजेपी का मौजूदा नेतृत्व भविष्य में उन्हें शिवराज का विकल्प बना सकता है. लेकिन बीजेपी के एक पदाधिकारी का कहना है कि ऐसे में शिवराज को साधना मुश्किल होगा क्योंकि वे पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल सकते हैं. उनका कहना है कि व्यापम में सिफारिशों का जो आरोप उन पर लग रहा है वह भी कार्यकर्ताओं का ही काम था. ऐसे में चौहान के प्रति कार्यकर्ताओं की सहानुभूति और बढ़ेगी. उनका मानना है कि विजवयर्गीय को सीएम बनाने की स्थिति में उमा-शिवराज एक साथ भी आ सकते हैं. हालांकि पार्टी में एक धड़ा यह भी मान रहा है कि अगर अमित शाह अध्यक्ष पद पर दोबारा आसीन नहीं होते हैं तो सांगठनिक बदलाव के बहाने शिवराज को दिल्ली लाया जा सकता है. एक संभावना यह भी जताई जा रही है कि सीबीआइ जांच में अगर शिवराज के खिलाफ माहौल बना तो बिहार चुनाव के बाद उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोडऩे को मजबूर कर केंद्र में मंत्री बनाया जा सकता है.
 
बीजेपी से बड़ी मुश्किल में संघ
मोदी सरकार का एक साल पूरा होने पर मंत्रियों और खुद शाह ने गाजे-बाजे के साथ खम ठोका था कि उन्होंने भ्रष्टाचार-घोटालामुक्त शासन दिया है. लेकिन उसके बाद से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और अब व्यापम घोटाले की तपिश ने संघ-सरकार-बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. सुषमा विवाद को पार्टी झेल गई, राजे के मामले में भी बचाव में उतरी, लेकिन व्यापम के मामले में बचाव का कोई आधार ही नहीं बचा था. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता संघ की दुविधा जाहिर करते हैं, “यह संघ के लिए चुनौती है क्योंकि अभी तक उसने मामले को संभाल रखा है. अगर वह पार्टी में इस्तीफे होने देता है तो विकेट गिरने की ऐसी शुरुआत होगी जिसे रोक पाना संघ के लिए आसान नहीं हो पाएगा और उसकी स्थिति मूकदर्शक जैसी हो जाएगी.” ऐसे में संघ को अब यह तय करना होगा कि वह बीजेपी का नैतिक मार्गदर्शक बनना चाहेगा या फिर राजनैतिक संचालक की अपनी भूमिका को जारी रखेगा. इस मामले में पिछले साल मोदी सरकार के गठन के बाद संघ के सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी समेत कुछ अन्य नेताओं की कथित संलिप्तता का खुलासा हुआ तो मुख्यमंत्री और तात्कालीन बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर से संघ भी नाराज हो गया था. साफ है कि चौहान के लिए यह दोहरी चुनौती है क्योंकि वे अब संघ और बीजेपी आलाकमान की दया पर निर्भर हैं तो खुद मोदी-शाह युग में जा चुकी बीजेपी को पार्टी विद डिफरेंस बनाने की मुश्किल.

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