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ऐनी आपा के नाम से मशहूर शख्सियत क़ुर्तुल ऐन हैदर उर्दू साहित्य की मशहूर कथाकार थीं. वे हमेशा इतिहास, राजनीति, अध्यात्म और संघर्षों के बारे में लिखती रहीं. उनका जन्म 20 जनवरी 1927 को अलीगढ़ में हुआ था. उनके पिता सज्जाद हैदर यलदरम उर्दू के लेखक थे.
साझी संस्कृति की लेखिका क़ुर्तुल ऐन हैदर, इस्मत चुगताई और अमृता प्रीतम के बाद ऐसी महिला थीं, जिनके साहित्य में विभाजन का दर्द और नारी संवेदना को बराबर रूप से जगह मिली थी.
हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार कमलेश्वर ने इस तिकड़ी का जिक्र करते हुए कहा था, 'अमृता प्रीतम, इस्मत चुगताई और क़ुर्तुल ऐन हैदर जैसी विद्रोहिणियों ने हिंदुस्तानी अदब को पूरी दुनिया में एक अलग स्थान दिलाया. जो जिया, जो भोगा या जो देखा, उसे लिखना शायद बहुत मुश्किल नहीं, पर जो लिखा वह झकझोर कर रख दे, तो तय है कि इसमें कुछ खास बात होगी'
जानें क़ुर्तुल ऐन हैदर की 10 बातें...
1. क़ुर्तुल ऐन हैदर जब 17-18 साल की थीं, तभी उनकी कहानी का संकलन 'शीशे का घर' लोगों के सामने आया.
2. उनका पहला उपन्यास 'मेरे भी सनमख़ाने' है.
3. भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद वे पाकिस्तान चली गईं, लेकिन जल्द ही वे भारत लौट आईं और यहीं बस गईं.
4. उनका उपन्यास 'आग का दरिया' आजादी के बाद लिखा जाने वाला सबसे बड़ा उपन्यास माना जाता है. इसका अनुवाद अंग्रेजी के साथ-साथ कई भाषाओं में हो चुका है.
5. उनकी महत्वपूर्ण उपन्यासों में सफ़ीन-ए-ग़मे दिल, आख़िरे-शब के हमसफर, गर्दिशे-रंगे-चमन, चांदनी बेगम है. वहीं, उनकी महत्वपूर्ण कहानियों के संकलन में सितारों से आगे, शीशे के घड़, पतझड़ की आवाज, रोशनी की रफ्तार शामिल है.
6. उन्होंने कुछ जीवनी उपन्यास भी लिखे, जिनमें 'सीता हरन', 'चाय के बाग' और 'अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजो' प्रसिद्ध है.
7. 1967 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया और उनके उपन्यास 'आख़िरी शब के हमसफर' के लिए ज्ञानपीठ पु्रस्कार से नवाजा गया.
8. उनके साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें पदमश्री से भी सम्मानित किया गया था.
9. वे एक साहित्यकार होने के साथ-साथ पत्रकार भी थीं. वह उर्दू और अंग्रेजी भाषा में पत्रकारिता करती थीं.
10. 21 अगस्त 2007 को उनकी मृत्यु हो गई मगर उनकी कलम के जादू का असर अभी तक बरकरार है.