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क्या है चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का पद, कारगिल युद्ध के बाद उठी थी मांग

1999 में हुए कारगिल युद्ध के बाद तत्कालीन डिप्टी पीएम लाल कृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता में गठित ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स(GOM)ने चीफ ऑफ डिफेंस(CDS) पद की सिफारिश की थी. ताकि तीनों सेनाओं के बीच उचित तालमेल रहे. अब जाकर स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी ने इस पद को बनाने की घोषणा की है.

लाल किले से संबोधन के दौरान पीएम मोदी(फोटो-एएनआई) लाल किले से संबोधन के दौरान पीएम मोदी(फोटो-एएनआई)
नवनीत मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 15 अगस्त 2019,
  • अपडेटेड 11:16 AM IST

1999 में हुए कारगिल युद्ध के बाद जब 2001 में तत्कालीन डिप्टी पीएम लाल कृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता में गठित ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स(GOM) ने समीक्षा की तो पाया कि तीनों सेनाओं के बीच समन्वय की कमी रही. अगर तीनों सेनाओं के बीच ठीक से तालमेल होता तो नुकसान को काफी कम किया जा सकता था. उस वक्त चीफ ऑफ डिफेंस(CDS) पद बनाने का सुझाव दिया गया, जिसका आज करीब 20 साल बाद 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया है. हालांकि तब वाजपेयी सरकार में मंत्रियों के समूह की सिफारिश पर सेना के तीनों अंगों के बीच सहमति न बन पाने के कारण इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था. 

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  हालांकि बाद में बीच का रास्ता निकालते हुए बाद में तीनों सेनाओं के बीच उचित समन्वय के लिए Chiefs of Staff Committee(CoSC) का पद सृजित किया गया. हालांकि  इसके चेयरमैन के पास कोई खास शक्ति नहीं होती, बस वह तीनों सेनाओं के बीच तालमेल करता है. फिलहाल एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के चेयमैन हैं. कुछ समय बाद चीफ ऑफ डिफेंस का स्थाई पद बनाने की फिर मांग उठी. रक्षा मंत्री रहते के दौरान मनोहर पर्रिकर ने भी दावा किया था कि दो साल के अंदर सेना में चीफ ऑफ डिफेंस का पद बनेगा.

अब जाकर स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी ने इसका ऐलान किया है. इसके बन जाने से युद्ध के वक्त तीनों सेनाओं तालमेल के साथ काम कर सकेंगी. सिंगल प्वॉइंट से आदेश जारी होने से सेनाओं की मारक क्षमता और प्रभावी होगी. क्योंकि तब सेना के तीनों अंगों के बीच किसी तरह का कोई कन्फ्यूजन नहीं होगा. जैसा कि पाकिस्तान और चीन से हुए युद्धों के दौरान तीनों सेनाओं में समन्वय की चूक सामने आ चुकी थी.

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एयरफोर्स ने तब किया था सीडीएस सिस्टम का विरोध

लालकृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता वाले जीओएम की सिफारिशों को तत्कालीन कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी(सीसीएस) ने स्वीकार कर लिया था, फिर भी इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था. दरअसल आर्मी और नेवी के अफसरों ने इस पद का तब सपोर्ट किया था, मगर एयरफोर्स ने विरोध किया था. वहीं राजनीतिक स्तर से भी इस पद को बनाने की इच्छाशक्ति नहीं दिखाई गई. एडमिल अरुण प्रकाश और पूर्व ऑर्मी चीफ जनरल बिक्रम सिंह ने सेना के तीनों अंगों में सुधार और इंटीग्रेशन  के लिए इस पद CDS की जरूरत बताई थी. हालांकि पूर्व वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एस कृष्णास्वामी ने चीफ ऑफ डिफेंस के पद का विरोध करते हुए इसे अनावश्यक बताया था.

कई देशों के पास CDS सिस्टम

अमेरिका, चीन, यूनाइटेड किंगडम, जापान सहित दुनिया के कई देशों के पास चीफ ऑफ डिफेंस जैसी व्यवस्था है. नॉटो देशों की सेनाओं में ये पद हैं. बताया जा रहा है कि विस्तृत भूमि, लंबी सीमाओं, तटरेखाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौतियों को सीमित संसाधनों से निपटने के लिए भारत के पास एकीकृत रक्षा प्रणाली के लिए चीफ ऑफ डिफेंस पद की बहुत जरूरत थी.

 मौजूदा समय प्रचलित चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी में सेना, नौसेना और वायुसेना प्रमुख रहते हैं. सबसे वरिष्ठ सदस्य को इसका चेयरमैन नियुक्त किया जाता है. यह रस्मी पद वरिष्ठतम सदस्य को रोटेशन के आधार पर रिटायरमेंट तक दिया जाता है. धनोआ 31 मई से सीओएससी के चेयरमैन बने हैं.  चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के चेयरमेन के पास तीन सेनाओं के बीच तालमेल सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी होती है. देश के सामने मौजूद बाहरी सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए सामान्य रणनीति तैयार करने का दायित्व भी सीओएससी का ही होता है.

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