
सोमवार को लाल किले की प्राचीर से पीएम मोदी ने पाकिस्तान को घेरना शुरू किया तो बलूचिस्तान, गिलगित और पीओके का जिक्र किया. भारतीय प्रधानमंत्री ने अपने बयान से पाकिस्तान की दुखती रग पर हाथ रख दिया. साथ ही अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को नया मोड़ दे दिया है. मोदी के भाषण से पाकिस्तान तो घबराया ही है, बलूचिस्तान के नेताओं ने भारतीय पीएम के इस बयान का स्वागत करते हुए इस मुद्दे पर ब्रिटेन और अमेरिका से सहयोग मांगा है. बलूच नेताओं ने कहा है कि इस अशांत प्रांत में हो रही हत्याओं के लिए जिम्मेदार पाकिस्तान का सच सामने आना ही चाहिए.
यहां यह जानना जरूरी है कि आखिर बलूचिस्तान की समस्या है क्या? दशकों से हिंसा की मार झेल रहे इस प्रांत को लेकर भारत अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान को किस तरह घेर सकता है?
अंग्रेजी शासन में बलूचिस्तान में 4 राज्य थे. बंटवारे के बाद तीन राज्यों ने पाकिस्तान में विलय स्वीकार कर लिया लेकिन कलात राज्य ने पाकिस्तान में विलय से इंकार कर दिया. कलात ने 11 अगस्त 1947 को खुद को आजाद प्रांत घोषित किया. कलात की बगावत पर जिन्ना ने पाकिस्तानी सेना वहां भेजी. पाकिस्तानी सेना ने वहां हमला कर दिया. पाकिस्तान ने 27 मार्च 1948 को स्वायत्त बलूच के कलात राज्य पर कब्जा कर लिया. तभी से यहां विद्रोह की आग जल रही है. यह राज्य पाकिस्तान और ईरान के बीच बंटा हुआ है. पाकिस्तान के कब्जे वाले बलूचिस्तान प्रांत की राजधानी क्वेटा है.
बलूचों की बगावत को कुचलने के लिए पाकिस्तान ने कई बात सैन्य हमले किए. पहला 1948 में, फिर 1958-59 में, 1962-63 में और 1973-77 में. हालिया संघर्ष 2000 के दशक में शुरू हुआ जो अब भी जारी है.
बलूचिस्तान पाकिस्तान अलग एक आजाद मुल्क की मांग कर रहा है. नाएला कादरी बलूच ने बलूचिस्तान को पाकिस्तान से आजाद करने के लिए दखल देने की मांग भारत सरकार से की है.
क्षेत्रफल के लिहाज से यह पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है लेकिन जनसंख्या के लिहाज से सबसे छोटा प्रांत है. यहां खनिज संपदा का अकूत भंडार भी है लेकिन आर्थिक रूप से यह काफी पिछड़ा है और गरीबी दर में अव्वल है.
1998 में पाकिस्तान ने यहां परमाणु परीक्षण भी किया था. बलूच नेताओं का दावा है कि उनका आजाद बलूचिस्तान परमाणु हथियार से मुक्त होगा. आतंकवाद से मुक्त होगा. धर्मनिरपेक्ष होगा. लोकतांत्रिक होगा. और यहां समाज के सभी वर्गों को समान अधिकार दिए जाएंगे.
केवल बलूच नेता ही नहीं, बल्कि कई ऐसे हथियारबंद अलगाववादी संगठन भी पाकिस्तान से आजादी की मांग कर रहे हैं. इनमें बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी और लश्कर-ए-बलूचिस्तान जैसे गुट भी शामिल हैं.
पाकिस्तान सरकार पर बलूच लोगों पर अत्याचार करने और उन्हें हाशिये पर रखने के आरोप लगते रहे हैं. पाकिस्तानी हुक्मरानों ने हजारों बलूच राष्ट्रवादियों को हिरासत में ले रखा है. बलूच नेताओं ने 4000 लोगों की गुमशुदगी का आरोप लगाया है. सरकारी महकमे और सेना में बलूच लोगों को नौकरी पर नहीं रखा जाता है. तमाम बलूच नेताओं को दिनददहाड़े मौत के घाट उतार दिया गया है. धार्मिक कट्टरवाद को बढ़ावा देने के लिए मदरसों को फंडिंग की जाती है और चुनावों के दौरान बलूच नेताओं को टक्कर देने के लिए तालिबान को सपोर्ट किया जाता है.
पाकिस्तान की सरकार ने यहां प्रेस की आजादी पर हद से ज्यादा पाबंदी लगा रखी है. संघर्ष वाले इलाके में रिपोर्टिंग से इंटरनेशनल मीडिया को रोक दिया गया है. इन इलाकों में काम कर रहे विदेशी पत्रकारों को खुफिया एजेंट या तो टॉर्चर करते हैं या यहां से भागने पर मजबूर कर दिया जाता है. एजेंसियों पर एक्स्ट्रा-ज्यूडिशल किलिंग का आरोप लगा है.
1.3 करोड़ की आबादी वाले इस प्रांत में 2004 से कत्लेआम जारी है. यहां 2004 से अबतक करीब 3580 लोगों की हत्या कर दी गई है. बलूच नेताओं का आरोप है कि इस इलाके में पाकिस्तान सुरक्षा बलों ने मानवाधिकार उल्लंघन की सारी हदें पार कर दी है. पाकिस्तानी सेना बलूच लोगों को मार तो रही ही है, महिलाओं से रेप किया जाता है और इन्हें रेप सेल में डाल दिया जाता है. बलूचों को टॉर्चर करने के लिए भी सेल बना रखे हैं. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी इसपर सवाल उठाए हैं.
आरोप है कि पाकिस्तान ने इस इलाके में अल-कायदा और आईएआईएस के लोकल ग्रुप तैयार कर रखे हैं. पाकिस्तान ने एक समय बांग्लादेश में भी इसी तर्ज पर अल-शम्स और अल-बद्र का गठन किया था.
पाकिस्तान यहां मौजूदा संसाधनों का भरपूर दोहन करता है. आरोप है कि यहां के ऊर्जा संसाधनों पर बलूच लोगों को कोई हक नहीं मिलता और इसे पाकिस्तान दूसरों में बांट देता है. बलूचिस्तान में प्राकृतिक गैस का भंडार है और इसका फायदा बलूचिस्तान को न मिलकर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत को मिलता है.
पीएम मोदी के भाषण और उसके बाद करवट लेती कूटनीति से यही सवाल उठ रहे हैं कि क्या नरेंद्र मोदी पाकिस्तान को बड़ा सबक सिखाने की तैयारी में है? क्या बलूचिस्तान का हश्र बांग्लादेश जैसा होने वाला है?