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कोचिंग सिटी कोटा में चार दिन में चार आत्महत्या

मेडिकल, इंजीनियरिंग और आइआइटी प्रवेश परीक्षाओं की कोचिंग का गढ़ कोटा 4 जून के बाद से लगातार चार दिनों में हुई चार आत्महत्याओं से सदमे में है.

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aajtak.in
  • जयपुर,
  • 09 जून 2015,
  • अपडेटेड 4:39 PM IST

मेडिकल, इंजीनियरिंग और आइआइटी प्रवेश परीक्षाओं की कोचिंग का गढ़ कोटा 4 जून के बाद से लगातार चार दिनों में हुई चार आत्महत्याओं से सदमे में है. आत्महत्या की इन घटनाओं से देश भर के वे लाखों माता-पिता शोक और चिंता में डूब गए हैं, जिनके बच्चे घर से दूर रहकर कोचिंग में पढ़ाई कर रहे हैं.

चार जून को झारखंड की छात्रा विभा ने आत्महत्या कर ली . विभा एलन कोचिंग सेंटर में मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए कोचिंग कर रही थी. आत्महत्या की वजह उसने अपनी रूममेट को बताया है. अगले दिन पुलिस को बदायूं के कुलदीप रस्तोगी और उनकी बेटी दीपांशी का शव मिला. अपने सुसाइड नोट में कुलदीप ने लिखा कि वह महंगी कोचिंग का खर्च उठा पाने में अपनी असमर्थता के कारण आत्महत्या कर रहा है.

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लेकिन कुलदीप के परिवार का कहना है कि घर में कोई आर्थिक संकट नहीं था. पुलिस मामले की पड़ताल कर रही है कि कहीं इस आत्महत्या के पीछे कोई और कहानी तो नहीं है क्योंकि आत्महत्या करने से पहले कुलदीप ने अपनी बेटी की भी हत्या की. एलन कोचिंग के ही छात्र सार्थक यादव ने भी 8 जून को आत्महत्या कर ली.

कोटा में तकरीबन डेढ़ लाख बाहर से आए हुए छात्र पढ़ते हैं. इनमें से अधिकांश अपने परिवारों से दूर प्राइवेट हॉस्टलों में या बतौर पेइंग गेस्ट रहते हैं. कोटा सबसे पहले एम्स और आइआइटी प्रवेश परीक्षा के लिए कोचिंग के प्रमुख केंद्र के रूप में उभरा. उस समय बंसल क्लासेज का नाम था. बाद में फिटजी भी आ गया, लेकिन पिछले कुछ साल एलन कोचिंग भी काफी लोकप्रिय हो गया है.

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छात्र प्रवेश परीक्षाओं के लिए कोचिंग में इसलिए प्रवेश लेते हैं क्योंकि सीबीएसइ और स्टेट बोर्ड इस बात को सुनिश्चित करने में असमर्थ साबित हुए हैं कि बारहवीं की पढ़ाई के साथ स्कूलों में प्रवेश परीक्षाओं की पढ़ाई भी बेहतर ढंग से करवाई जाएगी.

घर-परिवार से दूर होने के कारण छात्र अक्सर कोचिंग की पढ़ाई का दबाव नहीं झेल पाते. ऐसे में वे अवसाद के शिकार हो जाते हैं. कुछ तो ड्रग्स और आपराधिक गतिविधियों में भी लिप्त हो जाते हैं. कुकुरमुत्ते की तरह उग रहे कोचिंग सेंटर समस्या बन गए हैं और सरकार से लेकर सीबीएसइ और राज्य बोर्डों के पास फिलहाल इससे निजात पाने का कोई रास्ता नहीं है.

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