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कुलभूषण जाधव केस: अंतरराष्ट्रीय कोर्ट का आदेश PAK के लिए कितना बाध्यकारी?

भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव की फांसी की सजा की तामील पर अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत (ICJ) ने अंतरिम रोक लगा दी है. जाधव को पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने जासूसी का दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई है.

जाधव को पाकिस्तानी सैन्य अदालत ने जासूसी का दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई है. जाधव को पाकिस्तानी सैन्य अदालत ने जासूसी का दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई है.
साद बिन उमर
  • नई दिल्ली,
  • 10 मई 2017,
  • अपडेटेड 1:11 PM IST

भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव की फांसी की सजा की तामील पर अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत (ICJ) ने अंतरिम रोक लगा दी है. जाधव को पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने जासूसी का दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई है.

भारत ने पाकिस्तानी की सैन्य अदालत के इस फैसले के खिलाफ ICJ में 8 मई को अपील की थी. बताया जाता है कि ICJ के अध्यक्ष रोनी अब्राहम ने पाकिस्तान सरकार को एक पत्र लिख कर कहा है कि वह इस तरह कार्रवाई करे, जिससे इस मामले में जारी होने वाले अदालत के किसी आदेश का क्रियान्वयन संभव हो सके.

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अब आगे क्या?
भारत की कोशिशों के बाद अब कुलभूषण जाधव के केस पर अंतरराष्ट्रीय अदालत में 15 मई को सुनवाई होगी. भारत और पाकिस्तान को अब यहां लिखित हलफनामा देना होगा. हालांकि यह हलफनामा सार्वजनिक नहीं किया जाएगा, बशर्ते कि दोनों देश इस पर राजी हों.

इसके बाद कुलभूषण जाधव मामले में अगले दौर की सुनवाई के दौरान जिरह शुरू होगी. इस मामले में जिरह पूरी होने के बाद अंतरराष्ट्रीय अदालत सार्वजनिक रूप से अपना फैसला सुनाएगा. ICJ का यह आदेश अंतिम माना जाएगा, जिसके खिलाफ भारत या पाकिस्तान अपील नहीं कर पाएंगे.

कुलभूषण पर ICJ का फैसला

अंतरराष्ट्रीय कोर्ट का आदेश कितना बाध्यकारी?
ICJ ने अपनी वेबसाइट पर बताया है कि उसके आदेश पूरी तरह बाध्यकारी हैं और चूंकि संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश अंतरराष्ट्रीय अदालत के आदेश को मानने की शपथ लिए होते हैं, ऐसे में यह विरले ही होता है कि उसके फैसले लागू ना किए गए हों.

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यहां गौर करने वाली बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय अदालत के पास अपने आदेश को लागू करवाने के लिए सीधे कोई शक्ति नहीं होती. ऐसे में किसी देश को अगर लगता है कि दूसरे देश ने ICJ के आदेश की तामील नहीं की, तो वह इस पर संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में गुहार लगा सकता है. इस पर फिर सुरक्षा परिषद उस आदेश को लागू करवाने के लिए उस देश के खिलाफ कदम उठा सकता है.

हालांकि ऐसे भी कई मौके आए हैं, जब सुरक्षा परिषद इस हालत में कदम उठाने में नाकाम रहा है. उदाहरण के लिए निकारागुआ और अमेरिका के बीच का केस लें, तो 1986 में अमेरिका ने उसे अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन का दोषी करार देने वाले ICJ के आदेश के क्रियांव्यन पर वीटो लगा दिया था.

उस मामले में अंतरराष्ट्रीय अदालत ने पाया था कि अमेरिका ने निकारागुआ सरकार के खिलाफ खड़े विद्रोहियों का समर्थन किया था. हालांकि यह लातिन अमेरिकी देश वीटो लगने की वजह से उस आदेश को तामील नहीं करा सका था.

वहीं कुलभूषण जाधव के मामले में अगर मान लें कि ICJ का आदेश पाकिस्तान के खिलाफ जाता है, तो भी इसे अमल में लाना मुश्किल ही होगा. इस मामले में उसे सुरक्षा परिषद से मदद की दरकार होगी. हालांकि पाकिस्तान का 'सदाबहार साथी' चीन भी इस शक्तिशाली समूह का सदस्य हैं. ऐसे में आंशका है कि वह ICJ के आदेश पर वीटो लगा सकता है, जिससे इसे लागू करवा पाना मुश्किल ही प्रतीत होता है.

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बता दें कि भारतीय नौसेना के पूर्व कर्मचारी कुलभूषण जाधव रिटायरमेंट लेकर ईरान में बिजनेस कर रहे हैं, जहां पाकिस्तानी खुफिया अधिकारियों ने उन्हें अगवा कर लिया. हालांकि पाकिस्तान का दावा है कि उसके सुरक्षा बलों ने 3 मार्च, 2016 को बलुचिस्तान से जाधव को गिरफ्तार किया. उसका आरोप है कि जाधव बलूचिस्तान और कराची में जासूसी और आतंकवाद फैलाने का काम कर रहे थे.

जाधव की गिरफ्तारी की खबर मिलने के बाद भारतीय उच्चायोग ने दर्जनों बार उनसे मिलने की इजाजत मांगी थी. लेकिन पाकिस्तान ने सभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों को दरकिनार करते हुए इसकी इजाजत नहीं दी. फिर 11 अप्रैल, 2017 को अचानक खबर आई कि पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई है.

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