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कुर्द की वो मर्दानी, जिन्होंने ISIS और बगदादी को पिलाया था पानी

सीरिया में जब बगदादी अपना प्रभाव बढ़ाने लगा तो इसकी तपिश से कुर्द भी प्रभावित हुए. मुश्किल की इस घड़ी में अपनी मातृभूमि की रक्षा करने के लिए बड़ी संख्या में महिलाएं सेना में शामिल हुईं. सीरियाई कुर्द बलों का एक तिहाई हिस्सा महिलाओं का है.

 बगदाद के अरबिल में महिला कुर्दिश पेशमार्गा फाइटर का ट्रेनिंग सेशन (रॉयटर्स फाइल फोटो, October 2 बगदाद के अरबिल में महिला कुर्दिश पेशमार्गा फाइटर का ट्रेनिंग सेशन (रॉयटर्स फाइल फोटो, October 2
पन्ना लाल
  • नई दिल्ली,
  • 29 अक्टूबर 2019,
  • अपडेटेड 7:33 PM IST

  • कुर्दिश महिला फाइटर्स ने 5 साल तक बगदादी की नाक में दम कर रखा था

  • सीरिया, इराक में बगदादी की फौज से लड़ती रहीं कुर्द फाइटर
  • बगदादी की सत्ता को सीरिया, इराक में दी चुनौती

दुनिया का कुख्यात आतंकी अबु बकर अल बगदादी अपने आखिरी पलों में भले रोता-गिड़गिड़ाता रहा हो, लेकिन 2015-16 में जब सीरिया के रक्का, सिंजर, इडलिब में उसकी तूती बोलती थी तो उसके खौफ से सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद की सेनाएं भी कांपती थीं. लेकिन जब बगदादी का आतंक अपने चरम पर था, उस वक्त भी उसे अपने ही गढ़ में चुनौती मिली थी, ये चुनौती दी थी कुर्द की महिला मर्दानियों ने. 2014 से ही इन महिलाओं ने न सिर्फ ISIS आतंकियों को पीछे धकेले रखा, बल्कि उत्तरी सीरिया में टिगरिस नदी के पास अपने गढ़ पर बगदादी की सत्ता कायम नहीं होने दी.

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2014 में बगदादी के आतंकियों ने जब सीरिया में कुर्द बहुल इलाकों की ओर रुख किया तो बड़ी संख्या में महिला फाइटर्स 'पीपुल्स प्रोटेक्शन यूनिट' (YPG) से जुड़ने लगीं. YPG कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी की सैन्य शाखा है. कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी का मकसद तुर्की, इराक और सीरिया के तुर्क बहुल इलाकों को मिलाकर अलग देश की स्थापना करना है. सीरिया में जब बगदादी अपना प्रभाव बढ़ाने लगा तो इसकी तपिश से कुर्द भी प्रभावित हुए. मुश्किल की इस घड़ी में अपनी मातृभूमि की रक्षा करने के लिए बड़ी संख्या में महिलाएं सेना में शामिल हुईं. सीरियाई कुर्द बलों का एक तिहाई हिस्सा महिलाओं का है.

अपनी सरजमीं के लिए है जंग

अलग कुर्दिस्तान की मांग का तुर्की, सीरिया, इराक समेत सभी देश विरोध करते हैं. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक एक कुर्द फाइटर ने कहा था कि वो अपनी सरमजीं की हिफाजत के लिए लड़ रही है. इस महिला फाइटर ने कहा था कि अब इनके सामने चाहे इस्लामिक स्टेट हो या कोई दूसरी सैन्य ताकत, वो अपनी अपनी सरजमीं की आजादी के लिए लड़ती रहेंगी. एक अनुमान के मुताबिक कुर्द सेना में इनकी संख्या 7 से 10 हजार के बीच है. इनकी उम्र 18 से 25 साल के बीच है.

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सिंजर में तैनात कुर्द महिला फाइटर (रॉयटर्स फाइल फोटो)

यजीदियों की रक्षा में सामने आई

अगस्त 2014 में ISIS इराक के सिंजर में आगे बढ़ने लगा था. IS आतंकी बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक यजीदियों को मारने लगे थे. इस दौरान बगदादी के खिलाफ इन कुर्दिश मर्दानियों ने काउंटर ऑफेंसिव शुरू किया. इन्होंने हजारों की यजीदी अबादी को इनके कब्जे से मुक्त कराया. इस संघर्ष के बाद ISIS के खिलाफ इनकी जंग जारी है. 2017 में कुर्दिश महिला लड़ाकों ने एक वैसी महिला को ISIS आतंकियों के चंगुल से आजाद कराया था जो पांच बार बेची-खरीदी गई थी. यजीदियों के ठिकानों पर हमला कर ISIS महिलाओं को गुलाम बना लेते थे और मर्दों को गोली मार लेते थे.

रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में कुर्दिश महिला कमांडर निसरीन अब्दल्लाह ने कहा था कि उनकी टीम ने ISIS आतंकियों के ठिकाने पर छापा मारकर 200 महिलाओं और बच्चों को आजाद कराया था. 

कमिशली शहर में ट्रेनिंग के दौरान कुर्द महिला फाइटर्स (फाइल फोटो- रॉयटर्स)

यौन हिंसा का होना पड़ता है शिकार

बगदादी के खिलाफ जंग में इन महिलाओं को दो मोर्चे पर लड़ना पड़ा. एक तो इनके सामने ISIS जैसा खतरनाक दुश्मन था, दूसरा अगर कभी-कभार ये महिला फाइटर्स बगदादी के गुर्गों के कब्जे में आ जातीं तो उन्हें यौन हिंसा का शिकार होना पड़ जाता. आतंकियों के कब्जे में आई महिलाओं की जिंदगी नरक के समान हो जाती थी. कई बार इन्हें तब तक सेक्स स्लेव बने रहना पड़ता था, जब तक इनकी मौत न हो जाती थी.

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जर्मनी में नौकरी छोड़कर लड़ने आईं

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने सीरिया में लड़ रही कुर्द महिला फाइटर एरिन की जिंदगी के बारे में लिखा है कि 27 साल की ये महिला जर्मनी में एक अस्पताल में नर्स थी, लेकिन 2013-14 में शुरू हुए इस युद्ध की पुकार उसे सीरिया ले आई थी. एरिन ने कभी कहा था, "ये एक युद्ध है, हमें लड़ने की जरूरत है, अगर हम अपने बच्चे और महिलाओं की रक्षा नहीं करेंगे तो कौन करेगा?"

रास-अल-अईन में कुर्दिश महिला सैनिकों की ट्रेनिंग (फाइल फोटो- रॉयटर्स)

सुन्नी इस्लाम से है नाता

ISIS की तरह कुर्द की ये मर्दानियां भी सुन्नी इस्लाम को मानती हैं. लेकिन इनका समाज महिलाओं को लेकर आजाद ख्याल है. इनका कहना है कि इन्हें उम्मीद है कि रणभूमि में मोर्चा संभालने के बाद इनका समाज इन्हें बराबरी में स्वीकार करेगा.

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