
पूर्वी लद्दाख में गलवान नदी ऐसे सेक्टर्स में से एक है जो हाल में भारत और चीन की सेनाओं के बीच गतिरोध होने की वजह से सुर्खियों में हैं. हाल की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दोनों सेनाएं हालांकि लाइन-ऑफ-एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर अपने-अपने क्षेत्र में हैं लेकिन अभी तक स्थिति सामान्य नहीं हुई है.
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि 1962 के बाद पहली बार इस क्षेत्र में तनाव पैदा हुआ है, और वह भी तब जब LAC को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है और दोनों ही प्रतिद्वंद्वी पक्षों की ओर से स्वीकार किया गया है.
जहां इतिहास और भूगोल मिलते हैं
आइए 1962 पर लौटते हैं जब चीन ने भारत पर अपनी पूर्वी और उत्तरी सीमाओं पर हमला किया. अन्य फैक्टर्स के अलावा इस युद्ध के लिए बड़ी वजह में से एक शिनजियांग और तिब्बत के बीच सड़क का निर्माण था. यह राजमार्ग आज G219 के रूप में जाना जाता है और इस सड़क का लगभग 179 किमी हिस्सा अक्साई चिन से होकर गुजरता है, जो एक भारतीय क्षेत्र है.
भारतीय सहमति के बिना सड़क का निर्माण करने के बाद, चीनी दावा करने लगे कि ये क्षेत्र उन्हीं का है.
1959 तक जो चीनी दावा था, उसकी तुलना में सितंबर 1962 (युद्ध से एक महीने पहले) में वो पूर्वी लद्दाख में और अधिक क्षेत्र पर दावा दिखाने लगा. नवंबर 1962 में युद्ध समाप्त होने के बाद चीनियों ने अपने सितंबर 1962 के दावे लाइन की तुलना में भी अधिक क्षेत्र पर कब्जा कर लिया.
चीन के क्षेत्रीय दावे और इसकी दावा लाइन के एलायनमेंट के पीछे ड्राइविंग फैक्टर क्या था?
चीन अपने शिनजियांग-तिब्बत राजमार्ग से भारत को यथासंभव दूर रखना चाहता था. इसी के तहत चीन ने अपनी दावा लाइन को इस तरह तैयार किया कि सभी प्रमुख पहाड़ी दर्रों और क्रेस्टलाइन्स पर उसका कब्जा दिखे.
पर्वत श्रृंखलाओं के बीच आने-जाने के लिए पहाड़ी दर्रों की आवश्यकता होती है, उन्हें नियंत्रित करके, चीन चाहता था कि भारतीय सेना पश्चिम से पूर्व की ओर कोई बड़ा मूवमेंट न हो सके. इसी तरह, चीन यह सुनिश्चित करना चाहता था कि एलएसी उच्चतम क्रेस्टलाइन्स से गुजरे जिससे कि भारत प्रभावी ऊंचाइयों को नियंत्रित नहीं कर सके.
क्रेस्टलाइन्स को लेकर चीन ने यह सुनिश्चित किया कि एलएसी न केवल उच्चतम क्रेस्टलाइन से गुजरे, बल्कि वह जितनी संभव हो सके पश्चिम की ओर रहे. इस तरह़ एलएसी और चीनी G219 राजमार्ग के बीच अधिक दूरी होगी.
गलवान नदी के मामले में उच्चतम रिजलाइन अपेक्षाकृत नदी के पास से गुजरती है जो चीन को श्योर रूट के दर्रों पर चीन को हावी होने देती है. इसके अलावा, अगर चीनी गलवान नदी घाटी के पूरे हिस्से को नियंत्रित नहीं करता तो भारत नदी घाटी का इस्तेमाल अक्साई चिन पठार पर पर उभरने के लिए कर सकता था और इससे वहां चीनी पोजीशन्स के लिए खतरा पैदा होता.
जैसा कि ऊपर के नक्शे में देखा जा सकता है, एलएसी एलायनमेंट क्षेत्र में उच्चतम क्रेस्टलाइन के बाद पश्चिम की ओर तेजी से मुड़ता है. इसलिए, इस क्षेत्र में, LAC श्योक नदी के पास होकर चलती है. और चूंकि हाल ही में निर्मित दरबुक-श्योक गांव - दौलत बेग ओल्डी सड़क (डीएस-डीबीओ सड़क) श्योक नदी के एलायनमेंट के साथ चलती है. कम्युनिकेशन की महत्वपूर्ण रेखा भी एलएसी के करीब है.
गलवान नदी और 1962 युद्ध
गलवान नदी पूर्वी लद्दाख के उन क्षेत्रों में से एक थी, जहां चीन को भारतीय ध्वज दिखाने के लिए और क्षेत्र पर स्वामित्व सेना की चौकियों की स्थापना की गई थी. इन चौकियों पर तैनात सैनिकों के हौसले और मजबूत इरादों से अलग हटकर देखा जाए तो इन चौकियों पर मानवसंसाधन और फायरपावर को लेकर मजबूती की कमी थी जो बेहतर चीनी सेनाओं को कोई सार्थक प्रतिरोध देने में सक्षम हों.
1962 के मध्य में 1/8 गोरखा राइफल्स (1/8 GR) के सैनिक चांग-चेनमो नदी घाटी में हॉट-स्प्रिंग्स से उत्तर की ओर गए और समज़ुंग्लिंग में चीनी पोस्ट के सामने एक चौकी स्थापित की. यहाँ दिलचस्प बात यह है कि 1/8 GR चौकी नदी के स्रोत की ओर स्थित थी. ऊपर के नक्शे में, यह बिंदु उस जगह के करीब है जहां गलवान नदी का तीर इशारा कर रहा है. यह श्योक नदी के साथ गलवान के संगम से लगभग 70+ किलोमीटर पूर्व में है.
अपनी शुरुआत से ही, भारतीय सेना की चौकियां सभी तरफ से चीन से घिरी हुई थीं. नतीजतन एमआई -4 हेलीकॉप्टरों के जरिए इन चौकियों को बनाए रखा गया था.
20 अक्टूबर 1962 को चीनी हमले से कुछ दिन पहले, मेजर एच.एस. हसबनीस की कमान में 5 JAT की अल्फा कंपनी ने 1/8 GR सैनिकों को बदल दिया.
गलवान सेक्टर में 20 अक्टूबर की सुबह भारतीय चौकियों को निशाना बनाना शुरू किया गया. हर तरह की विषम स्थिति का सामना करने के बावजूद अगले 24 घंटे तक भारतीय सैनिक मुकाबला करते रहे. लेकिन संख्याबल और मारक क्षमता की कमी आड़े आई.
गलवान घाटी में विभिन्न चौकियों पर 68 सैनिकों में से 36 ने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया. हालांकि कुछ सैनिक चीनी गढ़ को तोड़ने और श्योक-गलवान संगम के साथ भारतीय चौकियों पर वापस आने में कामयाब रहे. मेजर एच.एस. हसबनीस घायल हो गए और युद्धबंदी बना लिए गए.
1962 के युद्ध के बाद, इस क्षेत्र में अधिक कुछ नहीं हुआ और अब तक यह निष्क्रिय पड़ा हुआ था.
मौत की नदी
पुराने समय में, जब लेह और चीन के शिनजियांग में स्थित यारकंद और काशगर के बीच कारवां चलते थे तो वे सर्दियों में श्योक नदी के जमने के दौरान इसके किनारे पर यात्रा करते थे. कारवां लेह से निकल कर चांग ला दर्रे पर लद्दाख रेंज को पार कर, दरबुक पहुंचते, फिर श्योक गांव और वहां से, श्योक नदी के एलायनमेंट के साथ मुर्गो और थेंस पहुंचते. वहीं से डेपसांग मैदान, डीबीओ और काराकोरम दर्रे से गुजरते.
इसी कारण इसे सर्दियों का रूट कहा जाता था. गर्मियों के दौरान जब श्योक नदी में ग्लेशियर पिघलने की वजह से पानी का स्तर बहुत बढ़ जाता था. इसमें पानी का बहाव भी बहुत तेज होता था. कारवां रूट का एलायनमेंट ऐसा था कि श्योक नदी के एक किनारे से दूसरे किनारे को कई बार पार करना पड़ता था. गर्मियों में इस रूट का इस्तेमाल करने की कोशिश में कई लोगों और पशुओं को जान से हाथ धोना पड़ता. इसलिए इस नदी का नाम श्योक यानि मौत की नदी रखा गया.
सब-सेक्टर नॉर्थ की ओर सड़क
केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के उत्तर-पूर्वी कोने को (जो भारतीय नियंत्रण में है) सब-सेक्टर नॉर्थ (SSN) या DBO (दौलत बेग ओल्डी) सेक्टर के रूप में जाना जाता है. DBO सेक्टर अक्साई चिन पठार पर भारतीय मौजूदगी की नुमाइंदगी का प्रतीक है, अन्यथा ये पठार अधिकतर चीनियों की ओर से नियंत्रित है.
इस क्षेत्र को जोड़ने वाली कोई समुचित सड़क न होने की वजह से इसे फिक्स्ड विंग एयरक्राफ्ट और हेलीकॉप्टर्स की मदद से मेंटेन किया जाता था.
एक दशक से अधिक समय पहले, सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने एक सड़क पर काम करना शुरू किया जो डीबीओ को डरबुक और थेंस से जोड़ेगी और फिर मौजूदा सड़कों के जरिए लेह से संपर्क जुड़ता. बीआरओ की प्लान की गई सड़क क्षेत्र में श्योक नदी के एलायनमेंट के साथ चलती. हालांकि ये कवायद पूरी तरह कामयाब नहीं रही क्योंकि सड़क श्योक नदी के पश्चिमी किनारे के साथ चलती है और गर्मियों में जब ग्लेशियर पिघलते हैं तो श्योक नदी का पानी का स्तर ऊंचा हो जाता है. ऐसे में सड़क के बहने, डूब जाने या या कई स्थानों पर उखड़ जाने का खतरा रहता,
कुछ साल पहले, बीआरओ ने रणनीति बदली और कमजोर स्थानों पर नदी के पश्चिमी किनारे पर पहाड़ों की दीवारों पर सड़क का निर्माण करना शुरू किया. इसके लिए पहाड़ की दीवारों को उडाया गया फिर इसके साथ सड़क बनाई गई.
इस सड़क के चालू हो जाने के बाद, भारतीय सेना ने अधिक तेजी से डीबीओ क्षेत्र में सैनिकों और सामग्री को स्थानांतरित नहीं किया. जहां पहले यह मुख्य रूप से एयर-मेंटनेंस पर निर्भर करता था, अब जमीनी ट्रांसपोर्ट के माध्यम से भी ऐसा किया जा सकता है.
गलवान नदी घाटी में चीनी इन्फ्रास्ट्रक्चर
अतीत की सैटैलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि 2016 तक, चीन ने गलवान घाटी के मध्य बिंदु तक पक्की सड़क का निर्माण कर लिया था. यह माना जा सकता है कि मौजूदा समय में, चीन इस सड़क को सेक्टर में एलएसी के पास स्थित किसी बिंदु तक बढ़ा चुका होगा.
इसके अलावा, चीन ने नदी घाटी में छोटी-छोटी चौकियों का निर्माण किया है, जो कि संभवत: चीनी सैनिकों के गश्त करने के लिए फॉरवर्ड पोजीशन्स का काम करती हैं. सबसे बड़ा चीनी बेस हेविएटन में है, जो कि -48 किलोमीटर नॉर्थ-ईस्ट है.
मौजूदा परिदृश्य में, यह सुरक्षित रूप से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इस क्षेत्र में गतिरोध पैदा करने के लिए चीनी सैनिक अपेक्षाकृत कम संख्या में पीछे स्थित ठिकानों से आगे आए थे.
मौजूदा गतिरोध
उपलब्ध जानकारी के मुताबिक मई के पहले हफ्ते में भारतीय और चीनी सैनिकों का गलवान नदी क्षेत्र में आमना-सामना हुआ. समझा जाता है कि चीनी सैनिकों ने अपने पीछे के बेस निकल कर गलवान नदी के साथ यात्रा करते हुए इस क्षेत्र में एलएसी को पार किया. और इनका सामना पैट्रोल पॉइंट 14 (PP14), जो भारतीय पक्ष में था, पर भारतीय सैनिकों से हुआ. ये जगह LAC के बहुत करीब थी. एंगेजमेंट के बाद समझा जाता है चीनी सैनिक एलएसी में अपनी साइड की तरफ चले गए.
सोशल मीडिया पर कुछ विश्लेषकों की ओर से साझा की गई सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि एलएसी के दोनों ओर दोनों देशों का सैनिक बिल्ड अप बना हुआ है. हालांकि, अभी तक इस बात का कोई सबूत नहीं है कि चीन ने एलएसी के भारतीय हिस्से की तरफ कोई कब्जा किया है या किसी क्षेत्र पर कब्जा जमाया है.
जैसा कि पहले बताया गया है, LAC इस सेक्टर में श्योक नदी के एलायनमेंट के बहुत करीब है और विस्तार से नई DS-DBO सड़क तक जाती है. श्योक और गलवान नदी का संगम LAC से करीब 8 किलोमीटर है. ये सब इस क्षेत्र को बहुत संवेदनशील बनाता है.
इस क्षेत्र में मौजूदा चीनी आक्रमकता के लिए कथित ट्रिगर भारतीय सेना की ओर से DS-DBO सड़क से निकलने वाली फीडर सड़क बनाने की कोशिश है जो और जो PP-14 तक आती है. इस तरह की सड़क से इस क्षेत्र में गश्त करने के साथ किसी भी आकस्मिकता का जवाब देने के लिए भारत की क्षमता में सुधार होगा.
भारत सरकार ने पहले ही सूचित कर दिया है कि गलवान नदी क्षेत्र सहित पूरे लद्दाख क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे का काम जारी रहेगा और इसे मूल जरूरतों के मुताबिक पूरा किया जाएगा.
निष्कर्ष
DS-DBO सड़क की LAC से निकटता और चीनियों की पांबंदियों के खतरे के कारण गलवान सेक्टर एक संवेदनशील क्षेत्र बना हुआ है. हालाँकि, यह भारतीय रणनीतिकारों को शुरू से ही पता था, इसके अलावा, यह DS-DBO सड़क का एकमात्र खंड नहीं है जिसे चीन से खतरे का सामना है. ऐसे और भी कई खंड हैं. इसके अलावा, किसी भी संघर्ष के दौरान, सड़क लंबी दूरी की आर्टिलरी फायर की भी जद में आएगी.
लेकिन इससे सड़क की अहमियत कम नहीं होती. यह शांति काल में सेना की काम आना जारी रखेगी और किसी भी टकराव के शुरू होने से पहले पहले अपने सैनिकों और साजोसामान के बिल्ड अप में मदद करेगी. इसके अलावा, आप सेना से सड़क की सुरक्षा के लिए पर्याप्त उपाय करने की अपेक्षा कर सकते हैं. इसी समय, सेना DBO सेक्टर के लिए एक वैकल्पिक मार्ग विकसित करने पर भी काम कर रही है जो लद्दाख के भीतर गहराई में है. साथ ही DS-DBO सड़क के समान खतरे से ग्रस्त नहीं है.
मौजूदा गतिरोध के लिए इस क्षेत्र में कोई अलग धारणा नहीं है, और न ही चीन के LAC के भारतीय साइड की तरफ आने का कोई सबूत है. ऐसे में गतिरोध का समाधान आसानी से होना चाहिए. हालांकि मौजूदा स्थिति में ये कोई स्पष्टता नहीं है कि ऐसा कब होने की संभावना है.
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