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बिहारः लालू के बगैर राजद

एक में सजा और कई मुकदमों के आने वाले फैसले को लेकर लालू, उनके परिजन और राजद सांसत में

चारे का चक्कर रांची की सीबीआइ अदालत में 6 जनवरी को पहुंचे लालू यादव चारे का चक्कर रांची की सीबीआइ अदालत में 6 जनवरी को पहुंचे लालू यादव

लालू प्रसाद यादव के लिए नए साल की शुरुआत इससे बुरी नहीं हो सकती. बिहार के चारा घोटाले के मामलों में से एक में उन्हें छह जनवरी को साढ़े तीन वर्ष जेल की सजा सुनाई गई है, पर राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो को शीघ्र राहत मिलने के आसार नहीं हैं. तीन महीने में घोटाले से संबंधित तीन और मामलों में सुनवाई पूरी होने वाली है. कानूनी विशेषज्ञ कहते हैं कि प्रतिकूल फैसलों से मुसीबत में फंसे इस नेता के लिए ऊंची अदालतों से जमानत पाना असंभव लगता है.

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और यह मुश्किल सिर्फ लालू यादव के लिए नहीं है. जिस दिन सीबीआइ अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया, उसी सुबह प्रवर्तन निदेशालय ने उनकी बड़ी बेटी और राज्यसभा सदस्य मीसा भारती के खिलाफ मनी लांड्रिंग मामले में आरोपपत्र दाखिल किया. उनकी पत्नी राबड़ी देवी फिलहाल चुप हैं. वहीं छोटे पुत्र तेजस्वी होटल के लिए जमीन घोटाले में सीबीआइ के केस का सामना कर रहे हैं, यह मामला लालू यादव के यूपीए-1 सरकार में रेल मंत्री रहने के समय का है.

अब वास्तविक भय यह है कि लगातार कानूनी चुनौतियां राजद को पटरी से उतार सकती हैं. लेकिन लालू को खारिज करना अभी जल्दबाजी होगी, उनमें वापसी करने की विलक्षण क्षमता है. चारा घोटाला मामले में पहली बार दोषी ठहराए जाने (सितंबर, 2013) के मात्र छह महीने बाद लालू ने नरेंद्र मोदी के रथ को रोकने के लिए कांग्रेस के साथ गठजोड़ किया और 2014 के आम चुनाव में छह सीटों पर जीत दर्ज की. एक वर्ष बाद उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा को परास्त करने के लिए नीतीश कुमार से सारे मतभेद भुला दिए. 243 सीटों वाली विधानसभा में 80 विधायकों के साथ उनकी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनी.

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राजद नेतृत्व लालू को जेल की सजा को जातिगत पूर्वाग्रह से प्रेरित बता रहा है. राजद नेता पहले से ही इसी मामले में पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र को दोषमुक्ति और लालू को सजा पर सवाल उठा रहे हैं. लोगों को यही समझाने के लिए तेजस्वी यादव ने 14 जनवरी के बाद राज्य के दौरे की योजना बनाई है, जिसमें वे राजद के यादव और मुस्लिम मतदाताओं तक पहुंचेंगे. 

पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि समर्थक लालू की सजा को राजनीतिक उत्पीडऩ के रूप में देखेंगे. लेकिन वे यह भी जानते हैं कि अब नीतीश राजग के खेमे में हैं, ऐसे में राजद की संभावना बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करती है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी के साथ किस तरह पेश आती है.

जमीनी खबरें बताती हैं कि चारा घोटाले के दूसरे मामले में लालू यादव को सजा का उनके मुस्लिम-यादव समर्थकों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है. हालांकि कुछ समय के लिए सार्वजनिक जीवन से उनकी अनुपस्थिति बिहार की राजनीति में एक बड़े शून्य का कारण बनेगी. पुत्र तेजस्वी और तेज प्रताप को पिता का स्थान लेने से पहले काफी कुछ करना होगा. उनके लिए एकमात्र राहत यह है कि 2019 का लोकसभा चुनाव अभी एक वर्ष दूर है. लेकिन क्या पलटवार करने के लिए पार्टी के लिए यह पर्याप्त समय होगा?

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