
फरवरी की 1 तारीख को 2018 के अपने बजट भाषण के दौरान 41वें मिनट केआसपास केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सबसे अहम ऐलान किया, ''स्पीकर महोदया, मेरी सरकार ने स्वास्थ्य सुरक्षा को और ज्यादा आंकाक्षीस्तर पर ले जाने का फैसला किया है." साथी मंत्रियों के मेजें थपथपाने के बीच उन्होंनेराष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (एनएचपीएस) का खाका सामने रखा और 10 करोड़ गरीब औरकमजोर परिवारों या 50 करोड़ भारतीयों को अस्पताल में भर्ती होने के खर्चों के लिएसालाना 5 लाख रु. का बीमाकवर देने की पेशकश की. उन्होंने भरोसा दिलाया कि ''यह सरकारी धन से चलाया जाने वाला दुनिया का सबसे बड़ा स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रमहोगा." और इशारा कियाकि यह ''न्यू इंडिया 2022" और ''सार्वभौम स्वास्थ्य सेवा" की दिशा में बड़ा कदम है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भीमेज थपथपाकर अपना जोरदार समर्थन जाहिर किया.
मोदी जानते हैं कि सपनों के जादुई असर को मुट्ठी में कैसेकैद किया जाता है. सत्ता में अपने पिछले 44 महीनों मेंदुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री ने ''दुनिया की सबसे बड़ी" योजनाओं के एकपूरे बेड़े का ऐलान किया हैः आधार से लेकर जन धन योजना तक, पहल से लेकरस्वच्छ भारत तक,डिजिटल साक्षरतासे लेकर प्रधानमंत्री आवास योजना तक, सहज बिजली हर घर योजना से लेकर जीएसटी तक. अबइस कड़ी में आयुष्मान भारत योजना के तहत एनएचपीएस जुड़ गया है. लाई गई है.प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया, ''गरीब लोगों की जिंदगी लगातार हलकान रहती है किबीमारियों का इलाज कैसे करवाएं. उन्हें इस परेशानी से मुक्ति मिलेगी."
यह जानना दिलचस्प होगा कि आखिर भारत में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए इतने बड़े पैमाने पर ऐलान की क्या जरूरत थी. असल में, दुनिया में बीमारियों का बोझ सबसे ज्यादा भारत में होता है. समय से पहले मौत, अपंगता और खराब स्तर की जिंदगी से भारत 70 करोड़ डीएएलवाइ या डिजाबिलिटी-एडजस्टेड लाइफ ईयर्स गंवाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (ड्ब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, एनसीडी की वजह से 2012 और 2030 के बीच भारत पर आर्थिक बोझ 6.2 खरब डॉलर का होगा.
1990 में देश में कम्युनिकेबल, मैटरनल, नियोनटल और न्यूट्रीशनल बीमारियां 61 फीसदी हुआ करती थीं, जबकि 2016 में यह कुल बीमारियों का 33 फीसदी रह गईं. नन-कम्युनिकेबल बीमारियां (एनसीडी) 1990 में 9 फीसदी हुआ करती थीं जो 2016 में बढ़कर 12 फीसदी हो गईं. इसी तरह चोट (इंजुरीज) की प्रतिशतता 1990 में 30 फीसदी थी जो 2016 में बढ़कर 55 फीसदी हो गई.
2007 से 2017 के बीच दिल की बीमारी, दौरों और मधुमेह से 236.6 अरब डॉलर गंवाए गए, यानी जीडीपी के 1 फीसदी का नुक्सान हुआ.
सिर्फ यही नहीं है. स्वास्थ्य क्षेत्र में दोहरी मार बी झेलनी पड़ती है और वह संक्रामक और जीवन-शैली से जुड़ी बीमारियों की. इन घातक बीमारियों में भारत का स्थान उन देशों में है जहां प्रति एक लाख की आबादी में सबसे ज्यादा मौतें होती हैं.
संक्रामक और गैर संक्रामक रोगों से होने वाली मौतों में देखें तो भारत में यह 253 और 682 है. जबकि पाकिस्तान में 296 और 669 है. दक्षिण अफ्रीका में 612 और 711, अमेरिका में 31 और 413, जर्मनी में 22 और 365, ब्रिटेन में 29 और 359, बांग्ला देश में 235 और 549 है. संक्रामक और गैर संक्रामक रोगों से होने वाली मौतों में वैश्विक औसत 178 और 539 है.
इसका अर्थ यह हुआ कि भारत वैश्विक स्तर से काफी नीचे है.
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