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मुंबई हमले के गुनाहगार हाफिज सईद की रिहाई पर अमेरिका की पाक को दी गई नसीहत क्या भारत सहित दुनिया की आंखों में धूल झोंकने के लिए है. ये सवाल इसलिए क्योंकि अमेरिका ने सईद की रिहाई के खिलाफ सख्त बयान तो दिया है लेकिन इस मामले में कोई कदम उठाने से वो बच रहा है. ऐसा या तो पाक से उसकी दोस्ती की वजह से है या अफगानिस्तान और मिडिल ईस्ट में अपने हितों के चलते उसकी मजबूरी की वजह से.
दिलचस्प बात यह है कि हाल ही में अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन पाकिस्तान के दौरे पर गए थे. इस दौरान उन्होंने कार्रवाई करने के लिए 75 आतंकियों की सूची पाकिस्तान को सौंपी थी, लेकिन हाफिज सईद का नाम उस सूची में शामिल नहीं था. जबकि अमेरिका ने हाफिज सईद के सिर पर एक करोड़ डॉलर का इनाम भी घोषित कर रखा है. सवाल उठ रहा है कि आखिर अमेरिका ने भारत की तमाम अपील के बावजूद हाफिज सईद का नाम आतंकियों की इस सूची में क्यों शामिल नहीं किया?
आजतक से बातचीत में रक्षा मामलों के जानकार मेजर जनरल अशोक मेहता ने कहा कि पाकिस्तान और अमेरिका की दोस्ती बहुत पुरानी है. पाकिस्तान को सबसे ज्यादा आर्थिक और सैन्य मदद देने वाला देश भी अमेरिका ही है. पाकिस्तान को अमेरिका की यह मदद साल 1947 से जारी है. अमेरिका में सत्ता भी बदली, लेकिन पाकिस्तान को मिलने वाली करोड़ों डॉलर की मदद कम नहीं हुई. यहां तक कि आतंकवाद को लेकर कड़े तेवर दिखाने वाले डोनाल्ड ट्रंप भी पाकिस्तान को मिलने वाली अमेरिकी मदद को कम नहीं कर पाए. हालांकि उन्होंने पाकिस्तान को मिलने वाली सैन्य और आर्थिक मदद के कुछ हिस्से को सशर्त जरूर बना दिया.
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. अमेरिका पहले भी ऐसे दिखावे करता रहा है, लेकिन पाकिस्तान को मदद कभी बंद नहीं की. अमेरिकी मदद को लेकर कई बार सवाल भी उठे. कहा तो यह भी जाता है कि अमेरिकी मदद के बिना पाकिस्तान अपने अस्तित्व को भी नहीं बचा सकता है. भारतीय मूल के कनाडाई रक्षा जानकार राहील रजा ने तो एक बार यहां तक कह दिया था कि पाकिस्तान का जब से जन्म हुआ है, तब से अमेरिका उसको सैन्य और आर्थिक मदद दे रहा है. अगर पाकिस्तान को यह मदद बंद हो जाए, तो वह खुद का अस्तित्व तक नहीं बचा पाएगा.
जनरल मेहता ने कहा कि अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ लड़ने के लिए अमेरिका को पाकिस्तान की जरूरत है. इसके समर्थन के बिना अमेरिका वहां अपनी जंग जारी नहीं रख सकता है. वहीं, अमेरिका के रवैये से तो लगता है कि आतंकवाद के खिलाफ उसकी रणनीति स्पष्ट नहीं है. वो भी अच्छे और बुरे आतंकियों में फर्क कर रहा है. रक्षा जानकारों का यह भी कहना है कि एशिया में अमेरिका की चिंता चीन, रूस और हक्कानी नेटवर्क हैं, जिनके खिलाफ भारत को अपने पाले में लाने के लिए वो पाकिस्तान कार्ड खेल रहा है. हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ अमेरिका की सख्ती की वजह यह है कि अफगानिस्तान में अमेरिका के सैन्य ठिकानों और नागरिकों को हक्कानी नेटवर्क लगातार निशाना बनाता रहा है.
खास बात यह है कि हाफिज सईद की रिहाई उस समय आई है, जब पाकिस्तान में आम चुनाव के लिए एक साल ही बचा है. दरअसल पाकिस्तानी सेना हाफिज सईद को राजनीति की मुख्य धारा में लाना चाहती है. इसके लिए हाफिज ने मिल्ली मुस्लिम लीग नाम से एक राजनीतिक पार्टी भी बनाई है, जिसने नवाज शरीफ के अयोग्य घोषित किए जाने के बाद चुनाव भी लड़ा था. हालांकि पाकिस्तान चुनाव आयोग उसको राजनीतिक दल की मान्यता देने से इनकार कर रहा है, लेकिन चुनाव के दौरान हाफिज सईद जेल में जरूर था, लेकिन चुनाव प्रचार के पोस्टरों में उसकी तस्वीर का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया गया.