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भगत सिंह के आखिरी खत के वो अल्फाज़, जो बन गए थे इंकलाब की आवाज

आइए जानें कि भगत सिंह ने अपनी शहादत से ठीक कुछ घंटे पहले ऐसा क्या लिखा जो इंकलाब की आवाज बन गया. यहां पेश है उस उर्दू खत का हिंदी मजमून.

फाइल फोटो: भगत सिंह फाइल फोटो: भगत सिंह
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 28 सितंबर 2019,
  • अपडेटेड 8:14 AM IST

  • जिस दिन फांसी दी गई थी उस दिन भगत सिंह मुस्कुरा रहे थे
  • फांसी की सजा के ऐलान के बाद भगत सिंह का वजन बढ़ गया था

कल फांसी का दिन मुकर्रर था और आज भगत सिंह अपने साथियों को खत लिख रहे थे. सोचिए, जब मौत सामने खड़ी हो तो ऐसे में कोई रणबांकुरा ही मुस्कुरा सकता है. कोई मतवाला ही आजादी का परचम लेकर मुस्कुराते हुए मातृभूमि पर खुद को न्योछावर कर पाएगा. ऐसा जज्बा रखने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह का आज जन्मदिन है. तो आइए जानें कि उन्होंने अपनी शहादत से ठीक कुछ घंटे पहले ऐसा क्या लिखा जो इंकलाब की आवाज बन गया. यहां पेश है उस उर्दू खत का हिंदी मजमून.

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कॉमरेड्स,

जाहिर-सी बात है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना भी नहीं चाहता. आज एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं. अब मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता. मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है. क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है. इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊंचा मैं हरगिज नहीं हो सकता.

आज मेरी कमजोरियां जनता के सामने नहीं हैं. यदि मैं फांसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएंगी और क्रांति का प्रतीक चिह्न मद्धम पड़ जाएगा. हो सकता है मिट ही जाए. लेकिन दिलेराना ढंग से हंसते-हंसते मेरे फांसी चढ़ने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी.

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हां, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थीं, उनका 1000वां भाग भी पूरा नहीं कर सका अगर स्वतंत्र, जिंदा रह सकता तब शायद उन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता. इसके अलावा मेरे मन में कभी कोई लालच फांसी से बचे रहने का नहीं आया. मुझसे अधिक भाग्यशाली कौन होगा, आजकल मुझे स्वयं पर बहुत गर्व है. मुझे अब पूरी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है, कामना है कि ये और जल्दी आ जाए.

तुम्हारा कॉमरेड,

भगत सिंह

इस तरह तीनों ने लगा लिया फांसी को गले

भगत सिंह के साथ उनके साथियों राजगुरु और सुखदेव ने भी हंसते- हंसते फांसी के फंदे को आगे बढ़कर चूम लिया था. जिस दिन उन्हें फांसी दी गई थी उस दिन वो मुस्कुरा रहे थे. मौत से पहले तीनों देशभक्तों ने गले लगकर आजादी का सपना देखा था. ये वो दिन था जब लाहौर जेल में बंद सभी कैदियों की आंखें नम हो गईं थीं. यहां तक कि जेल के कर्मचारी और अधिकारियों के भी फांसी देने में हाथ कांप रहे थे. फांसी से पहले तीनों को नहलाया गया. फिर इन्हें नए कपड़े पहनाकर जल्लाद के सामने लाया गया. यहां उनका वजन लिया गया. मजे की बात ये कि फांसी की सजा के ऐलान के बाद भगत सिंह का वजन बढ़ गया था.

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