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लातूरः चारों ओर प्यास ही प्यास

मराठवाड़ा में सूखे की सबसे ज्यादा मार लातूर पर पड़ रही है. यहां के 12 लाख बाशिंदे पीने के पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहे हैं. दुर्भाग्य से पानी के इस संकट के लिए प्रकृति से ज्यादा प्रशासन की लापरवाही जिम्मेदार है.

किरण डी. तारे
  • लातूर,
  • 04 अप्रैल 2016,
  • अपडेटेड 1:34 PM IST

लातूर के बाहरी इलाके में करीब 1,500 की आबादी वाले एक गांव पाखरसांगवी के 20 लोग पेयजल के एक सार्वजनिक नल पर एक “हांडा” पानी लेने के लिए लाइन लगाकर खड़े हैं. इस नल को धानेगांव बांध से सीधे पानी मिलता है. वे तपती धूप में छह घंटे तक इंतजार करते हैं, लेकिन सारी मेहनत बेकार चली जाती है. उस नल से सूं-सूं की आवाज के साथ सिर्फ गर्म हवा बाहर आती है, पानी की एक बूंद भी नहीं.
उनसे करीब 200 मीटर पीछे व्हाइट फील्ड नाम की एक निर्माणाधीन इमारत खड़ी है, जो वहां के विधायक अमित देशमुख का निवास है. वे महाराष्ट्र के दो बार मुख्यमंत्री-पहली बार 1999 से 2002 के बीच और दूसरी बार 2004 से 2008 के बीच-रह चुके दिवंगत नेता विलासराव देशमुख के बेटे हैं. यह एक बड़ा विरोधाभास है कि व्हाइट फील्ड के भीतर पानी की कोई किल्लत नहीं है. बाहरी लोगों को इस इमारत के भीतर झांकने तक की इजाजत नहीं है. चिलचिलाती धूप में परेशान एक शिक्षित युवक शशिकांत गोखले अपना गुस्सा जाहिर करते हुए कहता है, “यहां के सुरक्षा गार्डों के पास पौधों में पानी देने के लिए पानी है, लेकिन हमारे लिए नहीं है...हम उस बिल्डिंग के आसपास भी अगर जाते हैं तो हमें भगा दिया जाता है. हमें मजबूरी में दुकानदारों से 10 लीटर पानी 150 रु. में खरीदना पड़ता है.”

हाल के कुछ हफ्तों में लातूर तालुका का यह नजारा महाराष्ट्र के मराठवाड़ा इलाके में हर कहीं देखा जा सकता है. इस इलाके में इतना भयानक सूखा पहले कभी देखने को नहीं मिला था. बीड और उस्मानाबाद जैसे दूसरे जिले भी पानी के संकट का सामना कर रहे हैं, लेकिन वहां समस्या इतनी गंभीर नहीं है. देश में अनाज के सबसे बड़े बाजारों में से एक लातूर तालुका के करीब 12 लाख निवासियों को नेताओं और स्थानीय प्रशासन की “घोर लापरवाही” और “कुप्रबंधन” की कीमत चुकानी पड़ रही है. प्रशासन को अच्छी तरह पता था कि खराब मानसून की वजह से इलाके में पानी का संकट पैदा हो सकता था, लेकिन उसने पानी के रिसाव और चोरी को रोकने के लिए कोई उपाय नहीं किया, न ही पास के नागजिरी और साईं बैराजों में पानी संरक्षित करने की कोई कोशिश की. अगर पहले से इस तरह की कोशिश की गई होती तो धानेगांव के लिए विकल्प हो सकते थे.
इतना ही नहीं, प्रशासन गन्ना किसानों को बोरवेल से पानी का इस्तेमाल करने से भी रोक नहीं पाया. अगर प्रशासन ने आम लोगों के लिए बोरवेल का अधिग्रहण किया होता तो पानी की इतनी जबरदस्त कमी नहीं हुई होती. 22 फरवरी से नगर निगम ने पानी की राशनिंग शुरू कर रखी है और नलों के जरिए पानी की आपूर्ति भी रोक दी है. हर घर को हफ्ते में एक बार 200 लीटर पानी मुक्रत दिया जाता है, जबकि हर व्यक्ति को रोजाना 85 लीटर पानी की जरूरत होती है. ज्यादा पानी के लिए पानी के विक्रेताओं के पास जाना पड़ता है. यह स्थिति इसलिए और भी बदतर बन गई कि धानेगांव बांध मार्च के तीसरे हफ्ते में पूरी तरह सूख चुका है. 1981 में यह बांध बनने के बाद ऐसा पहली बार हुआ है. 646 मीटर ऊंचा बांध, जिसकी भंडारण क्षमता 227 अरब क्यूबिक मीटर है, लातूर, कलांब और केज जैसे तीन बड़े शहरों के लिए जीवनरेखा है. लातूर के करीब 70 प्रतिशत निवासियों के पास अपने बोरवेल हैं, लेकिन वे भी सूख चुके हैं.

गृहिणी सुरेखा भांडेकर लातूर नगर निगम के मुख्यालय से दो किमी की दूरी पर सावे वाडी में रहती हैं, लेकिन नगर निगम का पानी का टैंकर अभी तक उनके इलाके तक नहीं पहुंचा है, जबकि फरवरी में ही वह अधिकृत हो चुका था. उनके लिए एक ही उम्मीद के तौर पर नगर निगम के परिसर में स्थित सार्वजनिक नल है. वे पीने का पानी जमा करने के लिए सात बर्तन लेकर हफ्ते में एक बार जाती हैं. लेकिन वह भी आसानी से नहीं मिलता है. भांडेकर कहती हैं, “मैं दोपहर 12 बजे आती हूं, लेकिन रात के 9.30 बजे पानी मिल पाता है. वहां हमेशा लंबी कतार लगी होती है. पानी धीमी रक्रतार से आता है, इसलिए एक बाल्टी भरने में 10 मिनट लग जाते हैं...मैं हर रोज इतना समय नहीं लगा सकती, इसलिए मैं एक ही दिन में हफ्ते भर के लिए पानी जमा कर लेती हूं.”

शहर के बीच में करीब 20,000 की आबादी वाली कॉलोनी हरिभाऊ नगर के निवासी, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे होते हैं, पीने का पानी हासिल करने के लिए इलाके के एकमात्र बोरवेल पर रोजाना करीब दो घंटे कतार में खड़े रहते हैं. एक अवकाशप्राप्त पुलिस अधिकारी उत्तमराव मोरे, जिन्होंने सबको बराबर मात्रा में पानी दिलाने का जिम्मा खुद ही उठा रखा है, कहते हैं, “आश्चर्य की बात है कि यहां का पानी मीठा है...हर किसी को पांच बर्तनों में पानी भरने की इजाजत है. यह बोरवेल दिन में 18 घंटे चलता है, जिससे 40,000 लीटर पानी निकलता है.”

सूखे से ग्रस्त इस इलाके में सर्राफा बाजार के एक जौहरी बजरंग वर्मा की कहानी इसके बिल्कुल विपरीत है. उन्होंने सूखे के इस मौसम में भी भरपूर मात्रा में पानी खरीदकर रंगपंचमी का पारंपरिक त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया. वे कहते हैं, “दरअसल, योजना का अभाव है. अगर निजी विक्रेता पानी हासिल कर सकते हैं तो नगर निगम क्यों नहीं हासिल कर सकता है.” निश्चित रूप से उनकी बात में दम है. शहर में पानी के निजी विक्रेताओं का कारोबार खूब चमक रहा है. आपको 6,000 लीटर वाले एक टैंकर पानी के लिए 800-1,200 रु. चुकाने होते हैं. नगर निगम लातूर से 40 किमी की परिधि में आने वाले तीन बैराजों-डोंगरगांव, भंडारवाडी और लोवर तेरना-से अपने टैंकर भरता है.

निजी विक्रेता कुछ किसानों के निजी बोरवेल और कुओं से पानी लेते हैं. पानी की मांग इतनी ज्यादा है कि लोगों को दो दिन पहले से ही टैंकर बुक करना होता है. अनाज के व्यापारी ओम प्रकाश मुनदादा ने अपने मोती नगर के घर में 50,000 रु. खर्च करके 22,000 लीटर पानी की क्षमता वाला एक भूमिगत टैंक बनवा लिया है. वे कहते हैं, “इसके अलावा हम 12 सदस्यों वाले अपने परिवार के लिए हर महीने करीब 10,000 रु. खर्च करते हैं.”

स्थिति की गंभीरता को देखते हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मुंबई में 21 कलेक्टरों से बात की और स्थिति का जायजा लिया. उन्होंने उन्हें निर्देश दिया कि वे भूमिगत जल सर्वेक्षणों और विकास एजेंसी की मदद से जल संरक्षण के लिए उपयुक्त जगहों का पता लगाएं. फडऩवीस कहते हैं, “हमने कलेक्टरों को काम करने का पूरा अधिकार दे रखा है. हमने उन्हें एक “वार-रूम” और प्रशासन से संपर्क करने के लिए चौबीसों घंटे की मुफ्त हेल्पलाइन बनाने का भी आदेश दे रखा है. उन्हें जल आपूर्ति पर ध्यान देने और पानी का गैरकानूनी धंधा चलाने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाने के लिए भी कह रखा है.”

पानी का अभाव बढऩे से राजनैतिक आरोप-प्रत्यारोप का खेल भी शुरू हो चुका है. कांग्रेस शासित नगर निगम और अमित देशमुख मुख्य रूप से विरोधियों के निशाने पर हैं. बीजेपी सांसद सुनील गायकवाड़ कहते हैं, “नगर निगम का कुप्रबंधन, देशमुख के नियंत्रण वाली चीनी मिलें और विधायक की सुस्ती ही इस भयानक संकट के लिए जिम्मेदार हैं.” एनएएम फाउंडेशन, जिसे फिल्म अभिनेता नाना पाटेकर और मकरंद अनासपुरे ने जल संरक्षण के लिए शुरू किया था, के जिला संयोजक विलास चामे और जरूरतमंदों को पानी मुहैया कराने वाले मारवाड़ी युवा मंच के मधुसूदन पारीख भी इस अव्यवस्था के लिए नगर निगम को दोषी बताते हैं. उनके पास ऐसा करने के लिए वजहें भी हैं, क्योंकि नगर निगम धानेगांव से लातूर तक 45 किमी लंबी मुख्य पाइपलाइन से करीब 45,000 रिसावों को ठीक कराने में विफल रहा है. 2006 में लातूर जल आपूर्ति प्रबंधन कंपनी ने नगर निगम को एक रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें बताया गया था कि अगर रिसाव को ठीक नहीं किया गया तो सिर्फ 50 फीसदी पानी ही शहर तक पहुंच पाएगा. लेकिन अब तक उस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है.

कांग्रेस के विधायक दिलीप देशमुख इन आरोपों का खंडन करते हैं कि पानी के संकट के लिए चीनी मिलें जिम्मेदार हैं. वे कहते हैं, “चीनी मिलों को पानी की ज्यादा जरूरत नहीं होती है. इसके अलावा हम गन्नों के लिए इस्तेमाल हो चुके पानी को दुबारा इस्तेमाल में लाते हैं.” देशमुख परिवार के पास इस इलाके में चार चीनी मिलें मांजरा, विकास, रेना और जागृति हैं. पूरे लातूर जिले में पैदा होने वाला गन्ना इन मिलों में बिकता है. देशमुख कहते हैं, “अगर हमने किसानों से गन्ना न खरीदा होता तो उन्हें करीब 700 करोड़ रु. का भारी नुक्सान उठाना पड़ता...हम पैसा वापस बाजार में भेज देते हैं. हमारे खिलाफ लगाए जा रहे आरोप राजनीति से प्रेरित हैं.” सीनियर देशमुख अपने भतीजे अमित, जिन पर पूरा समय विदेश में बिताने का आरोप लगता है, का भी बचाव करते हैं, “अमित के नेतृत्व वाला विलासराव देशमुख फाउंडेशन हर किसी को पानी मुहैया करा रहा है.”
नगर निगम आयुक्त सुधाकर तेलंग का कहना है कि पानी के अभाव का डर बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है. वे कहते हैं, “पीने के पानी की कमी है, लेकिन हम स्रोतों का इस तरह प्रबंध कर रहे हैं कि जुलाई के अंत तक चल जाएं. तब तक मानसून आ जाएगा.”

इस बीच लातूर पानी की कमी से निबटने के लिए दो संभावनाओं पर विचार कर रहा हैः एक, पुणे और शोलापुर जिलों की सीमा पर उजानी बांध, जो लातूर से करीब 175 किमी की दूरी पर है, से सीधी पाइपलाइन. दूसरा, धार्मिक शहर पंढरपुर से ट्रेन के जरिए पानी मंगाना. पहला विकल्प काफी खर्चीला है, जिस पर करीब 1,000 करोड़ रु. का खर्च आएगा. दूसरा विकल्प सस्ता है. इसके लिए हर मालगाड़ी के डिब्बे पर मात्र 1.5 करोड़ रु. का खर्च. राहत एवं पुनर्वास मंत्री एकनाथ खडसे कहते हैं कि उन्होंने केंद्र से ट्रेन से परिवहन का खर्च माफ कर देने के लिए कहा है.

इस बीच पाखरसांगवी के निवासियों का धैर्य जवाब देता जा रहा है. वे पानी ले जाने वाली ट्रेन को लूटने की योजना बना रहे हैं, जैसा कि उन्होंने 2012 में किया था. ट्रेन का आखिरी स्टेशन गांव के पास है. सामाजिक कार्यकर्ता रामेश्वर धूमल कहते हैं, “हमारी लगातार उपेक्षा की जा रही है. हम इस बार भी ट्रेन लूटेंगे.” अब प्यास के मारे उन लोगों के पास शायद यही आखिरी उपाय बचा है.

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