Advertisement

बिहारः कानूनसाजों की गैरकानूनी हरकतें

एमएलसी मनोरमा देवी और कुख्यात बिंदी यादव के बेटे की करतूत ने फिर उजागर किया कि राज्य में कानून बनाने वाले ही लगातार तोड़ रहे हैं कानून

अमिताभ श्रीवास्तव
  • पटना,
  • 18 मई 2016,
  • अपडेटेड 4:38 PM IST

पटना से करीब 100 किमी दूर गया के कारोबारी श्याम सुंदर सचदेव का किशोरवय बेटा आदित्य अपने दोस्त की मारुति स्विफ्ट कार में दोस्तों संग 7 मई की शाम को सैरसपाटे के लिए निकला था. वापस गया लौटते हुए रास्ते में उसके एक दोस्त ने पीछे आ रही लैंड रोवर के हॉर्न को अनसुना कर दिया. इससे पीछे आ रही एसयूवी का मालिक 24 वर्षीय रॉकी यादव गुस्सा हो उठा. रॉकी जेडी(यू) की एमएलसी मनोरमा यादव और आरजेडी के बाहुबली बिंदेश्वरी प्रसाद यादव उर्फ बिंदी यादव का बेटा है. रॉकी ने कथित तौर पर पहले हवा में गोलियां चलाईं और मारुति स्विफ्ट कार को रुकने पर मजबूर कर दिया. लड़कों ने हाथ जोड़कर माफी मांगी. पर जब रॉकी ने बंदूक लहराई तो लड़कों ने गाड़ी चलाते हुए भाग निकलने की कोशिश की. रॉकी ने कथित तौर पर दोबारा गोलियां चलाईं. एक गोली कार के शीशे को भेदती पीछे बैठे आदित्य को लगी और उसकी मौत हो गई.

रॉकी को 9 मई की रात को जब पुलिस ने गिरफ्तार किया, तब भी उसके पास बंदूक थी. उसके चेहरे पर पछतावे के कोई निशान नहीं थे और उसने हत्या में अपना हाथ होने से इनकार किया. वह अपनी मां के कार्बाइन से लैस पुलिस बॉडीगार्ड के साथ जिस एसयूवी में चल रहा था, वह दिल्ली से एक करोड़ रुपए में खरीदी गई थी. विधानसभा चुनावों के दौरान भी रॉकी पर उसकी गाड़ी को ओवरटेक करने पर एक पिकअप वैन के ड्राइवर पर पिस्तौल तानने का आरोप लगा था. उसके पिता 1990 के दशक में गया के कारोबारियों के लिए आतंक हुआ करते थे.

पुलिस इसे आम तौर पर होने वाली रोड रेज की घटना बता पल्ला छुड़ाने की कोशिश कर रही है. लेकिन इस वारदात का मुजरिम और उसकी पृष्ठभूमि उस कहीं ज्यादा गहरी बीमारी की ओर इशारा कर रही है जिसने बिहार के सियासी फलक पर गहरी जड़ें जमा ली हैं. बिंदी यादव को रॉकी को भागने देने के लिए पकड़कर सीखचों के पीछे डाल दिया गया है. किसी जमाने में साइकिल की चोरी के लिए पकड़े गए बिंदी 1990 में लालू प्रसाद के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान नेता बन गए. करीब 55 साल के बिंदी के पास आज अकूत दौलत और रौब है. वह मॉल, होटलों और पेट्रोल पंपों का मालिक है. उसके खिलाफ 19 मुकदमे चल रहे हैं और वह 1990 के दशक में सबसे खूंखार मुजरिम से सियासतदां बने लोगों में से एक है. उसने अपनी पत्नी मनोरमा देवी को 2003 में आरजेडी से विधान परिषद के लिए नामित करवा लिया था. 2009 में जब उनकी सदस्यता की मियाद खत्म हुई तब मनोरमा अपनी सीट कायम नहीं रख पाईं, क्योंकि तब तक जेडी(यू)-बीजेपी गठबंधन के उस दौर में आरजेडी की किस्मत का सितारा डूब चुका था. 2015 में लालू ने नीतीश से हाथ मिला लिया, और मनोरमा एक बार फिर एमएलसी बन गईं. साफ है, बिंदी आरजेडी और जेडी(यू) दोनों को ही काम का शख्स लगा.

बनाने वाले ही तोड़ रहे कानून
इस हत्या के बाद मचे हंगामे के बीच सफाई देते हुए 9 मई को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर दावा किया कि ''कानून के लंबे हाथों से कोई बच नहीं सकता.'' मगर यह घटना उनकी सरकार के लिए चेतावनी होनी चाहिए. 

महागठबंधन की सरकार को अभी पांच माह भी नहीं हुए हैं, पर कई कानून बनाने वाले ही उसे तोड़ते पाए गए हैं. सबसे जघन्य मामला नवादा के आरजेडी विधायक राज बल्लभ यादव का है. उन पर इस साल फरवरी में एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार का आरोप लगा. जाने-माने स्वतंत्र चिंतक प्रो. नवल किशोर चौधरी कहते हैं, ''मुख्यमंत्री और उनकी इच्छाशक्ति पर मुझे पूरा भरोसा है. उन्होंने कड़ाई से शराबबंदी लागू करवाई. वक्त आ गया है कि अपराध पर काबू के लिए भी वे ऐसा ही जोश दिखाएं.'' इसके पहले जेडी(यू) विधायक सरफराज आलम पर 17 जनवरी को डिब्रूगढ़ राजधानी एक्सप्रेस में एक महिला यात्री के यौन उत्पीडऩ का आरोप लगा. दोनों मामलों में जेडी(यू) और आरजेडी ने अपने-अपने विधायकों को मुअत्तल जरूर किया, पर उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया जो दूसरों के लिए सबक बने. मार्च में बिहार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री अब्दुल गफूर और रघुनाथपुर के आरजेडी विधायक हरिशंकर यादव की आरजेडी के पूर्व सांसद सजायाख्ता मोहम्मद शहाबुद्दीन से सीवान जेल में 'सौजन्य मुलाकात' को लेकर भी सरकार को शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी.

नीतीश सब जानते हैं
नीतीश ने 30 अप्रैल को जुर्म साबित होने के मामलों में तेज गिरावट के लिए पुलिस की खिंचाई की. 2006 में उन्होंने स्पीडी ट्रायल की व्यवस्था शुरू की थी, उस पर अमल में गलतियां गिनाईं. मुकदमों का तेजी से निपटारा और आरोप से छूटने आदि के मामलों पर इस समीक्षा बैठक में उन्होंने पुलिस अफसरों से कहा, ''आरोपपत्र समय पर दाखिल किए जाएं. एक दशक पहले हालात अलग थे. मुकदमों में देरी क्यों होती है? सरकारी वकीलों को इस पर सोचना चाहिए.'' उन्होंने वाकई दुखती रग पर उंगली रखी थी. मुजरिमों को सजा मिलने के मामलों की तादाद जहां 2010 में सबसे ज्यादा बढ़कर 14,311 पर पहुंच गई थी, वहीं 2015 में 4,513 पर आ गई.

केवल पुलिस पर तोहमत नहीं मढ़ा जा सकता. एक वरिष्ठ आइपीएस अफसर कहते हैं, ''नौकरशाह तेजी से वह भी समझ लेते हैं जो लिखा नहीं गया है. यहां तक कि बिना दिए गए हुक्म भी जान लेते हैं.'' मुख्यमंत्री या लालू प्रसाद यदि मुजरिम नेताओं के खिलाफ सख्त कदम उठाने में कोई जल्दबाजी नहीं दिखाते, तो पुलिस भी आगे बढ़कर ऐसा कुछ नहीं करती जिससे उन्हें जोखिम उठाना पड़े. ये अफसर कहते हैं, ''चूंकि ऊपर से कोई आदेश नहीं है, सो पुलिस भी अपनी चाल से चलती रहती है.''

बिंदी पर हत्या की कोशिश, धमकाने और अवैध वसूली के मामले दर्ज होने के बावजूद उसे हथियार का लाइसेंस मिलना मौजूं उदाहरण है. विधानसभा और संसदीय चुनाव से पहले हथियार लाइसेंसों की समीक्षा की जाती है, पर उसके लाइसेंस रद्द करने की किसी ने जरूरत नहीं समझी. यही नहीं, मनोरमा देवी के खिलाफ भी दो आपराधिक मामले अदालत में हैं, फिर भी उन्हें हथियारों के तीन लाइसेंस दे दिए गए. एक राइफल, एक रिवॉल्वर और एक दोनाली बंदूक के लिए. हो सकता है, रॉकी ने उस वारदात में भी इन्हीं हथियारों में से किसी का इस्तेमाल किया हो, जिसमें एक बेकसूर की मौत हो गई और वह मौत सरकार की साख पर सवालिया निशान बन गई है. 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement