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विधि आयोग का फॉर्मूला- लोकसभा के साथ 12 राज्यों में एक साथ हो सकते हैं चुनाव

आयोग ने रिपोर्ट में कहा है कि, यदि एक साथ चुनाव कराना कुछ कारणों से संभव नहीं होता है तो एक कैलेंडर वर्ष में होने वाले सभी चुनाव एक साथ आयोजित किए जा सकते हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
विवेक पाठक/संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 30 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 7:42 AM IST

देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने को लेकर विधि आयोग ने सरकार को अपनी मसौदा रिपोर्ट में एक साथ कराने के प्रस्ताव का समर्थन करते हुए संविधान में संशोधन करने की सलाह दी है.

हालांकि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में  कहा है कि आधे राज्यों में एक साथ चुनाव कराने लिए संवैधानिक संशोधन जरूरी नहीं है. 12 राज्यों और एक केंद्र शाषित प्रदेश का चुनाव 2019 के आम चुनावों के साथ किए जा सकते हैं. वहीं 2021 के अंत तक 16 राज्यों और पुडुचेरी के चुनाव आयोजित किए जा सकते हैं. जिसके परिणाम स्वरूप भविष्य में पांच साल की अवधि में केवल दो बार  चुनाव होगा.

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इस मसौदा रिपोर्ट में विधि आयोग ने कहा है कि आयोग इस तथ्य से अवगत है कि संविधान के मौजूदा प्रावधानों में एक साथ चुनाव कराना संभव नहीं है. लिहाजा आयोग की सलाह है कि, सरकार इसके लिए निश्चित संवैधानिक संशोधन करे.

इस रिपोर्ट में आयोग ने लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने का समर्थन करते हुए यह सुनिश्चित किया है कि संविधान और अन्य कानून में कम से कम संशोधन करना पड़े.

गौरतलब है कि केंद्र की मोदी सरकार देश में एक साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन कर रही है. जिसके पीछे तर्क है कि इससे देश के नागरिकों पर चुनावी खर्चों का अतिरिक्त भार कम होगा और बार-बार चुनाव कराने के लिए संसाधनों के इस्तेमाल की बचत होगी.

अब विधि आयोग ने सरकार के समक्ष एक देश, एक चुनाव पर विभिन्न सिफारिशों के साथ रिपोर्ट सौंपी है. हालांकि सरकार इन सिफारिशों को मानने के लिए बाध्य नहीं है.

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इससे पहले चुनाव आयोग चुनाव आयोग एक साथ चुनाव कराने को लेकर अपनी राय स्पष्ट कर चुका है. चुनाव आयोग का मानना है कि मौजूदा संवैधानिक प्रावधानों में यह संभव नहीं है, लिहाजा सरकार को पहले संवैधानिक प्रावधानों पर ध्यान देना चाहिए.  

बता दें कि देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव की वकालत करते हुए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने विधि आयोग को पत्र भी लिखा था. जिसमें अमित शाह ने कहा था कि इससे चुनाव में बेतहाशा खर्च पर लगाम लगागी और देश के संघीय स्वरूप को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी.

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