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आजाद हिंद फौज में लेफ्टिनेंट कमांडर रहे एस के वर्धन का बुधवार को लखनऊ के रविंद्रपल्ली में उनके निवास पर निधन हो गया. वो 92 साल के थे और पिछले काफी दिनों से बीमार चल रहे थे.
एस के वर्धन के बेटे के मुताबिक उनके पिता 22 साल की उम्र में ही सिंगापुर में अपनी मेडिकल की पढ़ाई छोड़कर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे. और जब सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज का गठन किया तो नेताजी ने उनके पिता एस के वर्धन को लेफ्टिनेंट कमांडर बनाया था. लेकिन उनकी मौत पर न तो कांग्रेस का कोई बड़ा नेता उन्हें आखिरी सलामी देने पहुंचा और न ही सरकार की तरफ से कोई मंत्री या बड़ा अधिकारी उनको श्रद्धाजंलि देने पहुंचा.
वर्धन के बटे ने बताया, 'पिताजी हमारे 11 फरवरी 1922 में जन्मे और 22 साल की उम्र में ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आवाहन पर अपनी मेडिकल की पढ़ाई छोड़कर इस फ्रिडम मूवमेंट में कूद पड़े और तब से अबतक उनका आदर्श और रोल माडल सिर्फ और सिर्फ नेताजी रहे. हर चीज में उनकी नाराजगी झलकती थी जिससे भारत कहीं से शर्मसार हो या भारत का मान कहीं भी नीचा न हो. उनको आज तक इंडिया के विरुद्ध कहते हुये या कुछ ऐसा करते हुये नहीं पाया जो इंडिया की शान के विरुद्ध हो. वह आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका मार्गदर्शन जो आगे हमारे काम आएगा.
एस के वर्धन की भांजी के मुताबिक एस के वर्धन नेताजी को अपना आर्दश मानते थे और खाली समय में सिर्फ आजादी के गीत और कहानियां गुनगुनाते रहते थे. साथ ही वो नेताजी से इतने प्रभावित थे कि अपनी भांजी की शादी भी नेताजी के जन्मदिन के दिन ही 23 जनवरी को रखी थी.
वर्धन की भांजी पालसी राय दास ने बताया, 'हमारा रोज उनको देखने आना था. जो नेताजी के साथ जुड़ाव था उन्होंने मेरी शादी का दिन भी 23 जनवरी रखा था, नेताजी के बर्थडे के दिन जो कि स्पेशल दिन है. 23 जनवरी को जोश के मारे वो एकदम पागल से हो जाते थे. हम लोग हर बार उनको कहते थे कि अब कि बार लास्ट है, अबकी बार लास्ट है, अब अगली बार नहीं जायेंगे क्योकि स्ट्रेस पड़ता है और उम्र भी हो गयी है. तो उनका जैसे मन ही नहीं मानता था. सिंगापुर में मेडिकल स्टडी कर रहे थे उस समय उन्होंने वो छोड़कर आईएनए ज्वाइन किया था. डॉक्टर लक्ष्मी सहगल भी उस समय वहां थी. मेडिकल स्टडी बीच में ही छोड़ देना बहुत बड़ी बात है, मामूली नहीं है. और बस उनसे जब भी बात करो तो वही एलबम वही कहानियां, गाने भी सुनते थे, वही आजाद हिंद फौज के ही गाने सुनते थे.