
चीन की हिरासत में बंद नोबेल शांति पुरस्कार विजेता लू श्याबाओ का गुरुवार को निधन हो गया. पिछले लंबे वक्त से लिवर कैंसर से जूझ रहे 61 साल के श्याबाओ पिछले 11 साल से चीन की जेल में बंद थे. चीन में कई लोगों के लिए लू श्याबाओ एक हीरो की तरह थे, लेकिन अपनी सरकार के लिए वो एक खलनायक थे. आखिर एक मानवाधिकार कार्यकर्ता कैसे चीन के लिए खतरा माना जाने लगा.
कौन थे लू श्याबाओ?
साल 2010 में लू श्याबाओ को शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया. श्याबाओ को चीन में मानवाधिकार के लिए संघर्ष करने वालों में अगुआ माना जाता रहा है. प्रदर्शनों के लिए कई बार लू श्याबाओ को जेल भी जाना पड़ा. यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफ़ेसर, 61 वर्षीय लू को लिवर कैंसर था और वो मेडिकल परोल पर जेल से बाहर थे. अपने विद्रोही राजनीतिक विचारों और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की तीखी आलोचना के लिए जाने जाने वाले लू लगातार लोकतंत्र और मुक्त चीन के लिए अभियान चलाते रहे.
पहली बार कब आए थे चर्चा में
लू श्याबाओ सबसे पहले 1989 में तियानमेन नरसंहार के बाद चर्चा में आए. वे तब कोलंबिया विश्वविद्यालय में विजिटिंग स्कॉलर थे. उन्होंने छात्रों के चल रहे प्रदर्शन में भाग लेने के चीन वापस आने का फैसला किया. चीन में उनके खिलाफ दमन की नीति अपनाई गई. कई देशों से उन्होंने शरण देने की पेशकश हुई लेकिन उन्होंने चीन में रहकार अपना संघर्ष जारी रखने का फैसला किया. 11 साल तक उन्हें जेल में रखा गया.
नोबेल पुरस्कार से भड़का था चीन
लू श्याबाओ को शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया. पुरस्कार चुनने वाले जजों ने उनके लंबे और अहिंसक संघर्ष की तारीफ की. चीन ने इस पर गुस्से में प्रतिक्रिया दी. लू को पुरस्कार समारोह में शामिल होने की भी इजाजत नहीं दी गई और उस समय अंतरराष्ट्रीय मीडिया में खाली कुर्सी की तस्वीरें सुर्खियां बनीं. इस पुरस्कार के कुछ ही दिन बाद लू की पत्नी लू शिया को घर के अंदर नजरबंद कर दिया गया और उन्हें उनके परिवार और समर्थकों से अलग-थलग कर दिया गया. चीनी अधिकारियों ने कभी भी उनकी नज़रबंदी का कारण नहीं बताया.
निधन पर व्हाइट हाउस की प्रतिक्रिया
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने लियू शियाओबो के निधन पर प्रितिक्रिया देते हुए कहा- एक कवि, विद्धान और साहसी अधिवक्ता लियू शियाओबो ने लोकतंत्र और आजादी के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. सीनेटर जॉन मैक्केन ने कहा- चीन की कैद में लियू शियाओबो की मौत मौलिक मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन है जिसके लिए लियू ने अपना पूरा जीवन बिता दिया.
नोबेल समिति की प्रतिक्रिया
वहीं, नोर्वे की नोबेल समिति ने कहा कि नोबेल शांति पुरस्कार विजेता लियू शियाओबो के ‘समयपूर्व’ निधन के लिए चीन की ‘भारी जिम्मेदारी’ बनती है. नोबेल समिति के प्रमुख बेरिट रेस एंडरसन ने एक बयान में कहा, ‘हम इसे काफी परेशान करने वाला पाते हैं कि लियू शियाओबो को उस जगह नहीं भेजा गया जहां उनको उचित उपचार मिल सकता था. उनके समयपूर्व निधन के लिए चीन की सरकार की भारी जिम्मेदारी बनती है.’ उधर, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख जैद राद अल हुसैन ने शियाओबो के निधन पर दुख प्रकट करते हुए बयान में कहा, ‘चीन और दुनिया भर में मानवाधिकार आंदोलन ने एक सिद्धांतवादी योद्धा खो दिया है जिसने अपना पूरा जीवन मानवाधिकार की रक्षा करने और उसे बढ़ावा देने में लगा दिया.’