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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सुरेश भैय्याजी जोशी एक बार फिर सरकार्यवाह बनाए गए, लेकिन उनके चुने जाने के बाद यह चर्चा जोरों पर है कि संघ का एक धड़ा भैयाजी जोशी के सरकार्यवाह बनने से खुश नहीं है?
इस बारे में संघ से जुड़े सूत्र बताते हैं कि इससे पहले दत्रात्रेय होसबोले को सरकार्यवाह बनाए जाने की अटकलें थीं. कई न्यूज चैनल और अखबारों में यह खबर भी आई कि होसबोले सरकार्यवाह बनेंगे. लेकिन अंत में भैय्याजी जोशी के नाम पर मुहर लगी. अब वे आगामी तीन वर्ष (2018-2021) के लिए सरकार्यवाह रहेंगे.
आपको याद दिला दें कि सरकार्यवाह चुनाव के पहले भैय्याजी जोशी ने उम्र का हवाला देते हुए दोबारा सरकार्यवाह बनने की इच्छा से इनकार कर दिया था. ऐसे में इस चर्चा ने जोर पकड़ लिया था कि 63 वर्षीय होसबोले उनकी जगह लेंगे.
क्योंकि इसके दो कारण माने जा रहे थे. पहला तो यह कि होसबोले, पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यश अमित शाह के करीबी थे, जबकि दूसरा कारण यह कि आने वाले समय में कर्नाटक चुनाव हैं और 63 वर्षीय होसबोले कर्नाटक से ताल्लुक़ रखते हैं. ऐसे में होसबोले कर्नाटक में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं.
संघ सूत्रों का एक तर्क यह भी है कि होसबोले को सरकार्यवाह बनवाकर प्रधानमंत्री मोदी आरएसएस पर भी अपनी पकड़ मज़बूत करना चाहते थे. इससे संघ के एक धड़े में यह धारणा भी बनी कि होसबोले सरकार्यवाह बनते हैं तो आरएसएस पर प्रधानमंत्री मोदी का समर्थक तबका हावी हो जाएगा. इससे भाजपा के लिए मार्गदर्शक की भूमिका में संघ कमजोर पड़ने लगेगा.
कहा जाता है कि संघ के चुनाव में पहली बार लॉबिंग देखने को मिली. इससे संघ कोर कमिटी का एक वर्ग नाराज भी हो गया और होसबोले की जगह दोबारा भैय्याजी जोशी को चुना गया.
क्यों होसबोले को लेकर है संघ में बेचैनी...
बता दें कि दत्तात्रेय होसबोले संघ कोर कमिटी के ऐसे पहले शख्स हैं जिनके सार्वजनिक जीवन की शुरूआत संघ प्रचारक बनने से पहले ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से हुई थी. वे एबीवीपी में ही आरएसएस की तरफ से दो दशक तक संगठन महामंत्री भी रहे. उन्होंने पूरी तरह अपने आप को आरएसएस की गतिविधियों में लगाया. बीजेपी में आला नेताओं तक पहुंच रखने का उन्हें यह फायदा मिला कि वे सीधे-सीधे संघ की कोर कमिटी में शामिल हो गए.
क्या है सरकार्यवाह पद...
संघ में सबसे बड़ा पद सरसंघचालक का होता है. इस पद पर अभी मोहन भागवत हैं. आरएसएस के संविधान के अनुसार, उन्हें मार्गदर्शक-पथप्रदर्शक का दर्ज़ा मिला है, इसलिए वे संघ की रोजमर्रा की गतिविधियों में सक्रिय भूमिका नहीं निभाते.
ऐसे में उनके मार्गदर्शन में संघ का पूरा कामकाज सरकार्यवाह और उनके साथ चार सह-सरकार्यवाह ही देखते हैं. यदि कॉर्पोरेट की भाषा में कहा जाए तो सरकार्यवाह असल में किसी कंपनी के सीईओ की तरह भूमिका निभाते हैं.
क्या होता असर?
राजनीतिक जानकारों की मानें तो यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह सरकार्यवाह के पद पर दत्तात्रेय होसबोले को लाने में कामयाब होते तो टिकट और मंत्रीपद बंटवारे में संघ के होने वाले हस्तक्षेप पर असर होता. साथ ही संघ के कार्यकर्ताओं का इस्तेमाल पूर्ण रूप से राजनीतिक गठजोड़ करने में हो सकता था.