
आधार विधेयक पर राज्यसभा द्वारा सुझाये गए पांच संशोधनों को लोकसभा ने बुधवार को ध्वनिमत से अस्वीकार कर दिया. इसके साथ ही लोकसभा की कार्यवाही 25 अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दी गई.
राज्यसभा ने भेजा था प्रस्ताव
इससे पहले आधार बिल पर संशोधन राज्यसभा में मंजूर कर लिए गए. उसके बाद इस विधेयक को लोकसभा में भेजा गया था. वित्तमंत्री अरुण जेटली ने राज्यसभा में आधार बिल पेश किया था. बिल पेश करते वक्त वित्तमंत्री ने बताया कि यह मनी बिल के तौर पर पेश किया गया है, क्योंकि UIDAI के तहत यह सिर्फ व्यक्ति की पहचान तक सीमित नहीं है, बल्कि सरकार इसके आधार पर देश के खजाने से निकलने वाले सब्सिडी के पैसे को सही तरीके से खर्च कर पाएगी और सब्सिडी का फायदा सही लोगों तक पहुंच पाएगा.
मनी बिल के रूप में हुआ था पेश
अरुण जेटली ने यह भी कहा कि लोकसभा अध्यक्ष इस बिल के मनी बिल होने को लेकर संतुष्ट हैं और इसे चुनौती नहीं दी जा सकती. जेटली ने कहा कि आधार नंबर का विचार यूपीए के दौर में आया, जो एक अच्छा विचार है हालांकि तब हमारे दल के कई लोगों ने भी इस पर ऐतराज़ जताए थे, लेकिन जब नए विचार आते हैं तो उनका विरोध भी होता ही है.
व्यक्तिगत गोपनीयता भंग होने की आशंका
जेटली ने कहा कि इस बिल के तहत व्यक्तिगत गोपनीयता भंग होने की जो आशंका जताई गई है उसकी कोई वजह नहीं है. इसके तहत जो डेटा है उसे राष्ट्रीय सुरक्षा के अलावा किसी और चीज के लिए किसी भी हाल में सार्वजनिक नहीं किया जाएगा. जेटली ने कहा कि कोई व्यक्ति खुद अपनी मर्ज़ी से अगर अपनी पहचान साझा करना चाहता है तो कर पाएगा लेकिन उसका कोर बायोमीट्रिक डेटा उसकी खुद की मंजूरी के बाद भी साझा नहीं किया जा सकेगा.
फैसलों की समीक्षा के लिए बनेगी कमेटी
राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में जानकारी साझा करने का फैसला एक अथॉरिटी करेगी जिसका मुखिया सरकार में वरिष्ठ स्तर का एक अफसर होगा और उसके फैसलों की समीक्षा कैबिनेट सेक्रेटरी की अध्यक्षता में बनी कमेटी करेगी.
येचुरी ने जताया था ऐतराज
अरुण जेटली ने सीपीएम सांसद सीताराम येचुरी के उस ऐतराज को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है लिहाजा इस पर संसद में बहस नहीं की जा सकती. जेटली ने कहा कि कोर्ट में किसी फैसले के विचाराधीन होने का मतलब यह नहीं है कि संसद उस पर क़ानून बनाने का अपना हक खो दें.