Advertisement

बीजेपी के दिग्गज नेता हैं सर्बानंद सोनोवाल, असम में दिलाई सत्ता

असम गण परिषद से अपना कैरियर शुरू करने वाले सर्बानंद सोनोवाल ने 2011 में बीजेपी ज्वॉइन की और देखते ही देखते बीजेपी में बड़ा स्थान हासिल कर लिया. 2016 के चुनाव में बीजेपी ने उन्हें असम के मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया और विधानसभा चुनाव में सत्ता मिलने के बाद उन्हें सीएम बना दिया.

सर्बानंद सोनोवाल (फाइल फोटो) सर्बानंद सोनोवाल (फाइल फोटो)
अमित राय
  • नई दिल्ली,
  • 07 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 6:25 AM IST

सर्बानंद सोनोवाल की गिनती बीजेपी के कद्दावर नेताओं में होती है. वो एक ऐसे नेता हैं जिन्होंने पूर्वोत्तर में भारतीय जनता पार्टी को पहचान ही नहीं दिलाई असम जैसे बड़े राज्य में बीजेपी को सत्ता भी दिलाई. बीजेपी का दामन थाम थामने से पहले वह असम गण परिषद में थे और उनकी गिनती असम के जातीय नायकों में होती है. 2014 के चुनाव में सर्बानंद असम की लखीमपुर सीट से बीजेपी के सांसद चुने गए. पार्टी ने उनकी मेहनत का इनाम दिया और उन्हें खेल और युवा मामलों के मंत्री का स्वतंत्र कार्यभार दिया गया.

Advertisement

2016 में होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी के सामने दुविधा की स्थिति थी. बीजेपी को लग रहा था कि असम में पार्टी की सरकार बन सकती है लेकिन उनके पास सर्बानंद सोनोवाल से बड़ा कोई चेहरा नहीं था. तमाम अटकलों को विराम देते हुए बीजेपी ने सर्बानंद सोनोवाल को असम का मुख्यमंत्री कैंडिडेट घोषित कर दिया. फिलहाल वह असम के माजुली से विधायक हैं.  

विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तो पूरे देश में चर्चा का विषय बन गए. राजनीतिक पंडित यह मानकर चल रहे थे कि पूर्वोत्तर में बीजेपी सीटें तो जीत सकती है लेकिन सरकार नहीं बना सकती है. हालांकि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, पीएम नरेंद्र मोदी के साथ सर्बानंद सोनोवाल का मानना था कि असम की जनता कांग्रेस की सरकार और उसके भ्रष्टाचार से आजिज आ चुकी है और परिवर्तन चाहती है.

Advertisement

सर्बानंद सोनोवाल बीजेपी के फायर ब्रांड नेता माने जाते हैं. उन्होंने असम में बढ़ रहे बांग्लादेशी नागरिकों का मामला जोर-शोर से उठाया. उनका मानना है कि बांग्लादेशी नागरिकों को साजिश के तहत और वोट की राजनीति के लिए असम में बसाया गया और हालात ऐसे ही रहे तो असम के मूल लोग असम में अल्पसंख्यक हो जाएंगे. नागरिकता संशोधिन विधेयक के पक्ष में भी उन्होंने हमेशा अपनी आवाज बुलंद रखी है.

सर्बानंद सोनोवाल का जन्म 31 अक्टूबर 1962 में हुआ था. उन्होंने 24 मई 2016 को असम के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. सोनोवाल असम के 14वें मुख्यमंत्री हैं. सोनोवाल ने कानून की पढ़ाई की है और छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय हो गए थे. 1996 से 2000 तक सोनोवाल पूर्वोत्तर छात्र संगठन (एनईएसओ) के अध्यक्ष भी रहे.

कहां से कहां पहुंचे सर्बानंद सोनोवाल

सर्बानंद सोनोवाल ने छात्र जीवन से ही राजनीति शुरू कर दी. वे सबसे पहले असम गण परिषद से जुड़े. बीजेपी से जुड़ने से पहले तक वह असम गण परिषद के साथ थे. 2001 में असम गण परिषद से ही सोनावाल पहली बार विधायक चुने गए थे. 2004 में वह असम गण परिषद से ही सांसद चुने गए थे. सर्बानंद सोनोवाल असम में गृह मंत्री और उद्योग-वाणिज्य मंत्री का रह चुके हैं. वे फुटबॉल और बैडमिंटन के बढ़िया खिलाड़ी भी रहे हैं.

Advertisement

कैसे आए बीजेपी में

बीजेपी को पूर्वोत्तर में अपना पैर जमाने के लिए किसी कद्दावर नेता की तलाश थी जो पार्टी की नीतियों को समझता हो. दूसरी ओर सर्बानंद सोनोवाल को भी लगने लगा था कि जिस असम गण परिषद के लिए वह अपना खून-पसीना बहा रहे हैं वह पार्टी असम में दिन पर दिन अपनी प्रासंगिकता खोती जा रही है. सर्बानंद जैसे बड़े खिलाड़ी और ऊर्जावान व्यक्ति के लिए ऐसे हालाता ठीक नहीं थे. कांग्रेस में वो जा नहीं सकते थे क्योंकि असम गण परिषद कांग्रेस का विरोध करके ही सत्ता में आई थी हालांकि बाद में दोनों के संबंध ठीक हो गए थे.

ऐसे में उन्होंने बोल्ड स्टेप लेते हुए 2011 में बीजेपी ज्वॉइन कर ली. बीजेपी में आते ही उनके कद को देखते हुए उन्हें कार्याकारिणी का सदस्य बनाया गया. वह असम में बीजेपी के प्रवक्ता भी रहे. असम में पार्टी को सत्ता में लाने के लिए उन्होंने दिन रात एक कर दिया. 2014 आते-आते वह बीजेपी के बड़े नेताओं में शुमार हो चुके थे और 2014 के लोकसभा में लखीमपुर सीट से जीत हासिल कर उन्होंने अपनी योग्यता साबित कर दी. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

अवैध घुसपैठ के खिलाफ नायक बनकर उभरे

असम में अवैध बांग्लादेशियों का मुद्दा हमेशा से ज्वलंत रहा. असम गण परिषद में रहते हुए भी सर्बानंद सोनोवाल का मानना था कि अवैध बांग्लादेशियों को अपने देश वापस जाना चाहिए. इल्लीगल माइग्रेंट्स डिटर्मिनेशन बाई ट्रिब्यूनल एक्ट 1983 अस्तित्व में आया था. इसके अनुसार असम में 1971 से पहले आए हुए बांग्लादेशी लोगों को वहां रहने की इजाजत दी गई थी. सोनोवाल इसके खिलाफ चले गए और सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को खत्म करने का आदेश दे दिया. कोर्ट ने इस कानून को असंवैधानिक करार दिया.

Advertisement

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद असम के लोगों में सर्बानंद सोनोवाल की अलग इमेज बनी और वहां के लोगों को लगने लगा कि सोनोवाल उनके लिए लड़ाई लड़ सकते हैं. इसके बाद उन्हें जातीय नायक माना जाने लगा. सुप्रीम कोर्ट की जीत के बाद सोनोवाल आरएसएस को भी भाने लगे और ऐसा माना जाता है कि अवैध बांग्लादेशियों के मुद्दे पर दोनों में बातचीत होती रही. ऐसे में मौके की नजाकत को देखते हुए सोनोवाल ने बीजेपी ज्वाइन कर ली. आरएसएस से अच्छे संबंधों की बदौलत उन्हें बीजेपी में शुरू से ही तवज्जो मिलती रही.   

व्यक्तिगत जानकारी

सर्बानंद सोनोवाल का जन्म 31 Oct 1961 को मोलोक गांव डिब्रूगढ़ में हुआ. उनके पिता का नाम जिबेश्वर सोनोवाल और माता का नाम देनेश्वरी सोनोवाल है.

ई-मेल-  sarbananda.sonowal@sansad.nic.in

फेसबुक- @SarbanandaSonowal

ट्विटर हैंडल- @sarbanandsonwal

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement