
ये बड़ा ही मुश्किल सवाल है जब कोई ये पूछता है कि प्रेम के बारे में आप क्या सोचती हैं? उससे भी ज्यादा मुश्किल जब इस एहसास को शब्दों की सीमा में बांधने की हिदायत दे दी जाए.
ये ठीक वैसे ही है जैसे आपसे कोई कहे कि अपनी आत्मकथा एक वाक्य में बताइए जैसे जी हुई ज़िन्दगी एक वाक्य, एक शब्द बल्कि एक आत्मकथा रूपी पुस्तक में नहीं समेटी जा सकती वैसे ही प्रेम का भी हिसाब-किताब है.
आश्चर्य की बात ये कि दुनिया में लोगों ने इस विराट भाव और एहसास को भी एक दिन के उत्सव में बांधकर जीने और जश्न मनाने की कोशिश की है पर ये भी ठीक है कम से कम साल में एक दिन तो ऑफिशियली घोषित हुआ प्रेम के लिए.
ये वैसे ही है जैसे साल में एक दिन वुमन डे के नाम से घोषित कर दिया गया हो और व्यवहार में क्या होता है ये अलहदा बात है. वैलेंटाइन डे को पसंद करने न करने या मानने न मानने के अलग-अलग पक्ष हैं मेरे सामने पहला तो ये जिससे कि मेरी असहमति है– मुझे लगता है प्रेम ऐसा भाव है जो हर क्षण, हर दिन हम जीते हैं.
जब आप प्रेम में होते हैं. तो हर दिन खास होता है. हर लम्हा खास होता है. और प्रेम हर दिन, हर क्षण और क्षणांश को विशिष्ट बनाता है. बाकि हर मुद्दे पर, हर एहसासात पर जनता की जुदा-जुदा राय होती है और ये बहुत ही स्वाभाविक है मुझे नहीं लगता कि कोई ऐसा एक दिन होता है जब आपका प्रेमी या प्रेमिका खास होते हैं, आप उनके लिए महंगे तोहफे खरीदें, अच्छे कपड़े, इत्र, फूल, बुके, चॉकलेट आदि से लैश होकर उन्हें खास फील कराएं.
मैं ये नहीं कह रही कि ये प्रेजेंट और प्रेजेंटेशन गलत है. मेरे कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि किसी एक विशेष दिन की दरकार क्यों है? ऐसे मौके हर दिन हर मौके पर आने चाहिए जब आप अपने प्यार को सिर्फ स्पेशल ही नही सुपर स्पेशल फील कराएं. प्रेम अपने आप में एक उत्सव है उसे किसी एक दिन की दरकार नहीं.
हम प्रेमियों के लिए रोज ही वैलेंटाइन है और होना चाहिए. रही बात इसकी कि प्रेमी युगल के लिए ये प्रपोज करने का सही दिन और मौका होता है तो ये बात भी मुझे बहुत बचकानी लगती है. ह्रदय के आवेगों को व्यक्त करने के लिए सही समय और सही दिन का तर्क क्या है?
अगर आपकी किस्मत सही है, आग दोनों तरफ बराबर लगी है फिर तो वैलेंटाइन तक का इंतजार करना हम जैसे प्रेमियों के लिए असम्भव है.
वो इश्क ही क्या जिसमे इज़हार में भी इतना सब्र रखा जाए? सो मेरे लिए इस तर्क से भी वैलेंटाइन डे का महत्व बहुत समझ में नहीं आता. इसकी सार्थकता या उपयोगिता मैं सिर्फ इस बात में समझती हूं कि ये भी एक मौका है, एक अवसर है जब आप अपने प्यार को और स्पेशल फील कराएं.
अपने-अपने तरीकों से प्यार की अनुभूतियों को सघनता से महसूस करने के लिए पूरी जिन्दगी कम पड़ती है. यहां एक दिन की बात है?
वैलेंटाइन डे की सार्थकता केवल इस बात में है कि अगर आप किसी को प्रपोज नहीं कर पा रहे तो ये मौका आपको हिम्मत देता है. जैसे होली में आप लगभग आज़ाद होते हैं किसी के गाल पर हल्का सा गुलाल मलने के लिए.
छूट लेते हुए आपके अंदर उत्सव का उत्साह स्वाभाविक रूप से आ जाता है. ये ठीक उसी प्रकार है खास दिवस के प्रभाव में की गयी हिम्मत और अच्छी सार्थक शुरुआत है. मेरे लिए प्रेम जीवन की ऐसी नितांत आवश्यकता है जिसके बिना सहज होना मुश्किल है.
इस जरुरत के अंश भर को भी अगर इस एक दिन समझा या समझाया जा सके, दिखाया जा सके, बताया जा सके, जताया जा सके और ये दिन कोई भी अलख जगा सके तो ऐसे वैलेंटाइन का स्वागत है.
लेखिका कवयित्री हैं.
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