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मध्‍य प्रदेश में अफीम तस्करों का कारनामा

डेढ़ साल पहले मृत घोषित अफीम तस्कर जिंदा निकला, लेकिन यह तो एक सनसनीखेज कहानी का महज ट्रेलर था.

महेश शर्मा
  • भोपाल,
  • 06 नवंबर 2012,
  • अपडेटेड 6:53 PM IST

मध्य प्रदेश के नीमच में हाल में हुआ घटनाक्रम बॉलीवुड की सनसनीखेज फिल्मी कहानी से कम नहीं है. इसमें सस्पेंस है, ड्रामा है, अपराध है, भ्रष्ट पुलिसकर्मी हैं तो ईमानदार अधिकारी भी हैं. यह कहानी डेढ़ साल पहले सड़क दुर्घटना में मारे गए एक व्यक्ति से शुरू होती है, जिसके पास से मिले पहचान-पत्र के आधार पर उसकी शिनाख्त नशीले पदार्थों के कुख्यात तस्कर 36 वर्षीय घनश्याम धाकड़ के रूप में होती है. बाद में पुलिस को पता चलता है कि धाकड़ जिंदा है और तस्करी कर रहा है.

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इससे भी बड़ा खुलासा उस वक्त होता है जब वह पुलिस की गिरफ्त में आता है. पता चलता है कि यह तो महज ट्रेलर है, पूरी फिल्म तो अभी बाकी है. गिरफ्तार धाकड़ बताता है कि पुलिस रिकॉर्ड में मृत साबित हो जाना तस्करी का सबसे सुरक्षित तरीका है और यह तरकीब उसे एक अन्य तस्कर बंसी गुर्जर ने बताई थी, जो पुलिस दस्तावेजों में कथित रूप से मुठभेड़ में मारा जा चुका था.

देशभर में अफीम की खेती के लिए पहचाना जाने वाला मंदसौर-नीमच क्षेत्र इसकी तस्करी के लिए भी कुख्यात है. इस घटना की वजह भी तस्करी ही थी. तस्करी का धंधा आराम से चलता रहे इसलिए घनश्याम ने एक व्यक्ति की हत्या कर अपना परिचय-पत्र और मोबाइल उसकी जेब में रख दिया और शव का चेहरा बुरी तरह से बिगाड़ दिया ताकि उसे पहचाना न जा सके. घनश्याम के परिजनों ने भी लाश की पहचान घनश्याम के रूप में की. इस तरह वह पुलिस फाइलों में मृत घोषित हो गया और उसके खिलाफ  चल रहे सभी मामले बंद कर दिए गए.

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उज्जैन रेंज के आइजी उपेंद्र जैन बताते हैं, ‘‘धाकड़ 2008 में 50 किलो अफीम की तस्करी के मामले में गिरफ्तार हुआ था, दो साल बाद 2010 में वह जमानत पर रिहा हुआ और फरार हो गया. मार्च 2011 में उसने खुद को मरा हुआ साबित करने की योजना बनाई. इसमें उसके घर वाले भी शामिल थे.’’

इस मामले में पुलिसकर्मियों की भूमिका भी संदिग्ध है. धाकड़ पर मामले पहले से दर्ज थे यानी पुलिस रिकॉर्ड में उसका फोटो, पहचान के अन्य चिन्ह होने चाहिए. ऐसे में पुलिस ने घनश्याम के परिजनों की बात पर कैसे विश्वास कर लिया?

आइजी जैन कहते हैं, ‘‘तत्कालीन थाना प्रभारी रवीन्द्र बोयट, जांच अधिकारी सहायक उप निरीक्षक एम.आर. गर्ग और हवलदार उमेश चौहान को निलंबित कर दिया गया है. इस मामले में या तो उनकी मिलीभगत है या लापरवाही है.’’ सूत्र बताते हैं कि घनश्याम के मोबाइल कॉल डीटेल से वे पुलिसकर्मी बेपरदा हो सकते हैं जिन्होंने इस षड्यंत्र में भागीदारी की. अब पुलिस यह पता लगाने में जुटी है कि वह लाश, जिसे घनश्याम की मान लिया गया था, आखिर किसकी थी.

घनश्याम ने पूछताछ में जो खुलासे किए उससे पुलिस भी हैरान रह गई. बल्कि एक बार फिर पुलिस की कार्यशैली कठघरे में आ गई. घनश्याम ने बताया कि यह साजिश कुख्यात तस्कर बंसी गुर्जर और उसके साथी पप्पू गुर्जर के दिमाग की उपज है. इससे भी बड़ा खुलासा यह हुआ कि बंसी गुर्जर, जिसे फरवरी 2009 में कथित तौर पर मुठभेड़ में मार गिराया गया था, वह भी दरअसल जिंदा है.

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अब नया सवाल यह था कि गुर्जर जिंदा है तो मुठभेड़ में मारा गया व्यक्ति कौन था और पुलिस ने उसकी शिनाख्त बंसी गुर्जर के रूप में कैसे की? रतलाम रेंज के डीआइजी सतीश सक्सेना कहते हैं, ‘‘मुठभेड़ वाले दिन पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली थी कि बंसी वहां से गुजरने वाला है. एक व्यक्ति वहां आया और मुठभेड़ में मारा गया. इसके बाद बंसी के परिजनों ने आकर उसकी शिनाख्त बंसी के रूप में की.’’ नीमच के पुलिस अधीक्षक रामाश्रय चौबे कहते हैं, ‘‘परिवार वालों ने उसे पहचान लिया था तो शक का सवाल ही नहीं उठा.’’ पुलिस को घनश्याम के अलावा और भी कई लोगों से बंसी के जीवित होने की बात पता चली है. पुलिस के हाथ लगी एक वीडियो क्लिप में बंसी साथियों के साथ दिख रहा है. सक्सेना कहते हैं ‘‘अब तक मिले सबूतों से साफ है कि बंसी गुर्जर जिंदा है.’’

अब तत्कालीन पुलिस अधिकारी इस फर्जी मुठभेड़ से पल्ला झाड़ रहे हैं. नीमच के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक और वर्तमान में शहडोल रेंज के आइजी वेद प्रकाश शर्मा कहते हैं, ‘‘मेरे कार्यकाल में पुलिस मुठभेड़ में मारे गए व्यक्ति की शिनाख्त बंसी गुर्जर के रूप में हुई थी. उसके परिजनों ने उसकी पहचान की थी. संबंधित थाना प्रभारी ने भी पुलिस रिकॉर्ड में मौजूद गुर्जर से संबंधित तथ्यों के आधार पर उसे बंसी गुर्जर ही बताया था.’’

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पुलिस अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने के सवाल पर डीआइजी सक्सेना  कहते हैं, ‘‘जब तक बंसी गुर्जर नहीं मिल जाता, उसका डीएनए टेस्ट नहीं हो जाता तब तक कुछ नहीं कहा जा सकता.’’ अब बंसी को ढूंढ़ निकालना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती है. चौबे कहते हैं ‘‘सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक बंसी बीहड़ का लाभ उठा रहा है.’’ अफीम तस्करी के अलावा बंसी के खिलाफ लूट-डकैती और जबरन वसूली जैसे संगीन मामले भी दर्ज थे और बताया जाता है कि नीमच जिले के रामपुरा और मनासा क्षेत्र में उसका अच्छा-खासा खौफ था.

इस कहानी का असली खलनायक अफीम और उसकी तस्करी है. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में अफीम की खेती के करीब 61,000 लाइसेंस दे रखे हैं, जिनमें से 27,000 से ज्यादा मध्य प्रदेश के हैं जहां 13,000 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर अफीम उगाई जाती है.

प्रदेश का 99 फीसदी  अफीम उत्पादक क्षेत्र मंदसौर-नीमच में है इसीलिए इस इलाके में तस्करी के मामले भी ज्यादा होते हैं. इस साल 29 जून को नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने नीमच की रतनगढ़ तहसील के एक गांव से 7 लोगों को हिरासत में लेकर 65 किलोग्राम अफीम जब्त की थी. इससे पहले 26 फरवरी को नीमच जिले से ही 14 किलो 500 ग्राम अफीम बरामद की गई थी.

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4 मार्च को नीमच से 9 किलो 50 ग्राम अफीम जबकि 9 मार्च को मंदसौर के नजदीक करीब 1 किलो 800 ग्राम हेरोइन बनाने का रसायन जब्त किया गया था. देश में सालाना औसतन 700 टन अफीम का उत्पादन होता है, जिसका लगभग 400 टन इसी क्षेत्र से मिलता है. इसीलिए देश के वैध अफीम उत्पादक क्षेत्रों में मध्य प्रदेश के मंदसौर-नीमच का महत्वपूर्ण स्थान है. यहां का एक किसान बताता है, ‘‘तस्करी का अफीम ऐसे किसानों से मिलती है जो लाइसेंस लेने के बाद उत्पादन तो करते हैं लेकिन या तो उसे दर्शाते नहीं हैं या बहुत कम दर्शाते हैं.’’

बहरहाल पुलिस ने साजिशकर्ताओं की धरपकड़ शुरू कर दी है. घनश्याम के बयान और वीडियो क्लिप में मौजूदगी के आधार पर शराब व्यवसायी पप्पू गुर्जर को गिरफ्तार कर लिया है और शव की पहचान घनश्याम के रूप में करने वाले उसके पिता सहित अन्य परिजनों को भी गिरफ्तार किया गया है.

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