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कांग्रेस में सेंधमारी कर ‘आत्मनिर्भर’ हो रहे शिवराज, सिंधिया पर घटेगी निर्भरता

मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार में सिंधिया समर्थकों का जबरदस्त दबदबा कायम है, लेकिन कांग्रेस विधायक जिस तरह से एक के बाद एक पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थामते जा रहे हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अब अपनी सरकार को पूरी तरह से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 24 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 11:25 AM IST

  • शिवराज सरकार में सिंधिया गुट का जबरदस्त दबदबा
  • उपचुनाव में शिवराज को बहुमत के लिए 9 सीट चाहिए
  • कांग्रेस से बीजेपी में आए 8 एमएलए गैर-सिंधिया गुट के

मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के सहारे बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब रही है. इसी का नतीजा है कि शिवराज सरकार में सिंधिया समर्थकों का जबरदस्त दबदबा कायम है, लेकिन कांग्रेस विधायक जिस तरह से एक के बाद एक पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थामते जा रहे हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अब अपनी सरकार को पूरी तरह से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.

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मध्य प्रदेश में गुरुवार को खंडवा जिले की मांधाता से कांग्रेस विधायक नारायण पटेल ने पार्टी व विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थाम लिया है. शिवराज सरकार बनने के बाद यह कांग्रेस के तीसरे विधायक हैं, जिन्होंने पार्टी छोड़कर बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की है. नारायण पटेल से पहले हाल ही में कांग्रेस के नेपानगर से विधायक सुमित्रा देवी और बड़ामलहरा से प्रद्युमन सिंह लोधी ने इस्तीफा दे दिया था और बीजेपी में शामिल हो गए थे.

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दरअसल, मध्य प्रदेश में बीजेपी को अपने दम पर सत्ता में बने रहने के लिए 9 सीटों की आवश्यकता है. बीजेपी के पास फिलहाल 107 विधायक हैं. कांग्रेस के 3 विधायकों के पार्टी छोड़ने के बाद प्रदेश में 27 सीट रिक्त हो गई हैं, जहां उपचुनाव होने हैं. 27 में 22 वो सीट हैं, जहां से विधायक ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में आए थे. हालांकि, इन 22 समर्थकों में से 3 बागी विधायक ऐसे हैं, जो सिंधिया गुट के नहीं माने जाते हैं. ऐसे में प्रदेश की सियासत में 8 ऐसी सीटें रिक्त हो गई हैं, जिनका सिंधिया खेमे से सीधा कोई वास्ता नहीं है. अब इन सीटों पर उपचुनाव होने हैं.

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ज्योतिरादित्य सिंधिया का दखल शिवराज सरकार में काफी बढ़ गया है. एमपी में कैबिनेट का विस्तार भी लंबा खिंचा है. इतना ही नहीं, मंत्रियों के विभागों के बंटवारे में 11 दिन लग गए थे और भोपाल से लेकर दिल्ली तक खूब माथापच्ची हुई थी. शिवराज सिंह चौहान समेत बीजेपी के कई केंद्रीय नेताओं और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच कई राउंड बैठक के बाद कहीं जाकर विभाग बंटवारे पर सहमति बन सकी थी. शिवराज कैबिनेट में सिंधिया गुट की 41 फीसदी हिस्सेदारी है. इसी के चलते बीजेपी के तमाम दिग्गज नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल सकी है.

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शिवराज सिंह चौहान अब ऐसे राजनीतिक समीकरण बनाने में जुटे हैं, जिसके दम पर वो आत्मनिर्भर हो सकें और सिंधिया के प्रभाव और दबाव से मुक्त हो सकें. इसके लिए शिवराज सिंह चौहान की नजर उपचुनाव पर है और अगर वो सिंधिया गुट के अतिरिक्त कांग्रेस से आए विधायकों को जीत दिलाने में कामयाब होते हैं, तो बीजेपी अपने बल पर सत्ता में रहेगी. इसके साथ ही कुछ निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन हासिल है.

हाल ही में शिवराज सरकार ने निर्दलीय विधायक प्रदीप जायसवाल को खनिज निगम लिमिटेड का अध्यक्ष बनाया है और उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा दिया है. इसके साथ ही निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा भी अभी शिवराज सरकार के साथ खड़े हैं. बीएसपी के 2 और सपा के एक 1 विधायक भी बीजेपी के साथ हैं. ऐसे में अगर कांग्रेस के कुछ और विधायक बीजेपी का दामन थामते हैं तो निश्चित तौर पर शिवराज अपनी सरकार को आत्मनिर्भर बनाने में कामयाब हो जाएंगे.

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