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मध्‍य प्रदेश: फिर कहर बरपा रहा मलेरिया

राज्‍य के लचर स्वास्थ्य तंत्र और मच्छरों के बढ़ते प्रकोप ने ली 100 से ज्‍यादा जानें, हालत बिगड़ने पर मरीजों से मिले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान.

शिवराज सिंह चौहान शिवराज सिंह चौहान
जयश्री पिंगले
  • भोपाल,
  • 19 नवंबर 2011,
  • अपडेटेड 10:59 PM IST

मध्य प्रदेश इन दिनों मलेरिया की चपेट में है. सरकार के मुताबिक सीधी जिले में पल्सीफव्रम मलेरिया के कारण 46 मौतें हुई  हैं. मौत के मुंह में जाने वालों में अधिकतर बच्चे हैं, जिनकी सही परीक्षण और दवा के अभाव में जान गई.

प्रदेश के सिंगरौली, जबलपुर, मंदसौर, नीमच, झबुआ तक बढ़ते 'ए मलेरिया का यह प्रकोप पूरे प्रदेश में फैल गया है. कुल मौतों का सरकारी आंकड़ा 100 से ज्‍यादा है जबकि गैर-सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अकेले सीधी में ही 80 मौतें हो चुकी हैं और मंदसौर नीमच में तो यह आंकड़ा 60 के पार है. सरकारी रिपोर्ट में प्रदेश के भिंड, मुरैना, धार, झबुआ, अलीराजपुर, खरगोन, उज्‍जैन, रतलाम, दतिया, अशोक नगर और गुना जैसे इलाकेहाइ अलर्ट में हैं.  इंदौर और भोपाल भी मलेरिया के प्रकोप से बचे नहीं है. लेकिन निजी अस्पतालों की बेहतर सुविधाओं के कारण यहां हालात नियंत्रण में हैं.

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आखिर ऐसी क्या वजह है कि बरसात खत्म होने के बाद मौसमी बीमारी के तौर पर फैलने वाले मलेरिया ने प्रदेश में प्रकोप का रूप ले लिया. और सरकार मच्छर काटने पर होने वाली इस बीमारी को काबू करने में नाकाम साबित हुई है. मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व उपाध्यक्ष और शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. भरत छापरवाल बताते हैं कि पल्सीफव्रम मलेरिया में मरीज का जल्दी परीक्षण होना जरूरी है.

यह शरीर से रक्त कोशिकाओं को खत्म करती है और सीधे दिमाग पर असर करती है. इसमें मरीज का इलाज कठिन है, इसलिए उसे तुरंत उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती करना जरूरी है. मरीज की जांच नहीं हो सकी और उचित दवा नहीं मिल पाई तो इसमें मरीज को बचाना असंभव हो जाता है. सामान्य मलेरिया की दवा इसमें काम नहीं करती. डॉ. छपरवाल के मुताबिक बच्चे यदि कुपोषण के शिकार हैं तो हालात जल्दी बिगड़ जाते हैं.

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हालात बिगड़ते देख मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तीन दिन तक सीधी के प्रभावित इलाकों का दौरा किया. उन्होंने जिला कलेक्टर एस.एन. शर्मा, चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ. एम.पी. तिवारी, और जिला मलेरिया अधिकारी डॉ. आर.के. दीक्षित को हटाते हुए मलेरिया पीड़ित  व्यक्ति के लिए 10,000 रु. मुआवजे की भी घोषणा की.

हालांकि तब तक हालात इतने बेकाबू हो चुकेथे कि मरीजों के लिए अस्पताल कम पड़ गए. यह शायद पहली बार हुआ है कि प्रमुख सचिव स्तर के आइएएस अधिकारी सुधीर रंजन मोहंती, जिन्हें स्वास्थ्य विभाग से पिछले दिनों हटा दिया था, वापस ओएसड़ी के बतौर फिर से लाया गया.

दरअसल, पिछले पांच साल से यह देखा जा रहा है कि हर साल मौसम बदलते ही मच्छरों के काटने की वजह से प्रदेश में चिकनगुनिया, पल्सीफव्रम मलेरिया, मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियां  लोगों पर कहर बरपा रही हैं. लेकिन प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग समस्या की जड़ में जाने की बजाए इसे छिपाने में अपनी बहादुरी समझ्ता है. प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्र इन हालात से अनभिज्ञता जताते रहे और वरिष्ठ अधिकारी मुंह छिपाते रहे. मिश्र ने इंडिया टुडे  के साथ बातचीत में दावा किया कि मलेरिया से जो हालात पैदा हुए हैं, उनकी पूरी चिंता की जा रही है, उपचार की कमियों को पूरा किया जा रहा है, लोगों में जागरूकता पैदा की जा रही है और अब हालात नियंत्रण में हैं.''

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लेकिन स्वास्थ्य विभाग से जुड़े सूत्र बताते हैं कि सीधी की स्थिति पर आशा वर्कर्स की रिपोर्ट  को स्वास्थ्य विभाग तथा जिला प्रशासन गंभीरता से लेता तो शायद अक्तूबर महीने में ही हालात नियंत्रण में आ जाते और इतने मासूम बच्चों की जान नहीं जाती.

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव बादल सरोज तथा उनकेसहयोगियों की टीम ने सीधी के प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया है, उन्होंने इंडिया टुडे को बताया कि 22 अक्तूबर को उनकेजिला अध्यक्ष सुंदरसिंह बघेल ने जिला कलेक्टर को सूचना दी थी कि चौफाल क्षेत्र के 10 लोगों की मौत पल्सीफव्रम मलेरिया के कारण हुई है, जिनमें बच्चे भी शामिल हैं. इसे बजाए गंभीरता से लेते हुए कलेक्टर ने उन्हें दार्शनिक अंदाज में यह कह कर रवाना कर दिया कि यह तो ईश्वर आज्ञा है, आत्मा और शरीर का बिछोह है. अफसोसनाक बात यह है कि 6 नवंबर तक यहां 45 मौतें हो चुकी थीं.

सरोज बताते हैं कि सीधी में मरीजों की हालत इतनी खराब थी कि उन्हें एंबुलेंसों में ठूस-ठूस कर लाया जा रहा था और एक ऐसे कैंप में रखा जा रहा था मानो कोई पशु चिकित्सा शिविर हो. इनमें से ज्‍यादातर मरीज गोंड और बैगा आदिवासी समुदाय के थे जिनमें कुपोषण एक बड़ी समस्या है. अस्पतालों में उन्हें दूध तक मुहैया नहीं हो पा रहा था.

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दूध पावडर के पैकेट इतने कम थे कि कुछ बच्चों की मौत का कारण मलेरिया के साथ कुपोषण रहा. बादल आरोप लगाते हैं कि सीधी में  स्वास्थ्य सेवा सेमरिया स्थित अस्पताल पर  निर्भर है, जहां  एक मंत्री का बेटा डॉक्टर के रूप में पदस्थ है लेकिन वह डेढ़ साल से ड्यूटी पर नहीं गया है. इसी तरह विधायक का रिश्तेदार पदस्थ है जिससे काम लेना मुश्किल है.

दरअसल 1,500 विशेषज्ञ डॉक्टर, 4,500  सिविल सर्जन, 6,000 एमबीबीएस डॉक्टर, 46,000 आशा वर्कर्स, 16,000 से ज्‍यादा कर्मचारियों की फौज वाले स्वास्थ्य विभाग में व्यवस्था पूरी तरह चौपट है. एनआरएचएम, आरसीएच, केंद्र, राज्‍य को मिलाकर करीब  3,000 करोड़ के सालाना बजट वाले स्वास्थ्य विभाग की पहचान पिछले कुछ सालों में सिर्फ भ्रष्टाचार तंत्र के बतौर उभर कर सामने आई है.

जब विभाग के आइएएस कमिश्नर डॉ. राजेश राजौरा, तथा डायरेक्टर डॉ. योगीराज शर्मा को अनुपातहीन संपत्ति के मामले में आयकर वालों ने घेरा. डॉ. शर्मा के यहां तो आयकर विभाग को पलंग के गद्दे में नोट मिले. बाद में इन अधिकारियों  के खिलाफ लोकायुक्त में भी मामले दर्ज हुए. पूर्व स्वास्थ्य मंत्री के भाई को भी आयकर विभाग ने घेरा. तमाम दबावों के चलते तब के स्वास्थ्य मंत्री अजय विश्नोई को मंत्री पद से हटना पड़ा था. विभाग के एक आला अधिकारी मानते हैं कि एनआरएचएम की करोड़ों रु. की फंडिंग प्रदेश का स्वास्थ्य सुधारने के लिए है, लेकिन इससे ऊपर से लेकर नीचे तक अपनी सेहत सुधारी जा रही है.

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स्वास्थ्य विभाग से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने इंडिया टुड़े को बताया कि जो अंदरूनी रिपोर्ट सीधी मामले में आई है वह चौंकाने वाली है. दरअसल वहां पर काम कर रहे फील्ड वर्कर स्लाइड परीक्षण की बजाए विभाग का लेखा-जोखा देख रहे थे. मरीजों का जो परीक्षण हो रहा था उसकी आंख मूंद कर निगेटिव रिपोर्ट तैयार की जा रही थी. इस घोर लापरवाही के कारण यह पता ही नहीं चल पाया कि इस क्षेत्र में मलेरिया का प्रकोप फैल रहा है.

स्वास्थ्य विभाग के सचिव स्तर के अधिकारी मानते हैं कि ढर्रा इतना बिगड़ा हुआ है कि उनकेपास मलेरिया कोई समस्या है यह रिपोर्ट लेकर ही कोई नहीं आता और न ही किसी बैठक में यह मुद्दा होता है. चार साल पहले शासन ने मलेरिया के परीक्षण के लिए जो माइक्रोस्कोप दिए, वे इतने घटिया हैं कि उन पर काम ही नहीं हो सकता.

इसकी लिखित शिकायत कई जिला मलेरिया अधिकारियों ने की. घटिया खरीद का यह मामला विधानसभा तक में उठा लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. शासन सेंट्रल दवा खरीदी की नीति चलाता है जिसका खामियाजा यह है कि हर छोटी दवा के लिए जिला मलेरिया अधिकारी शासन का मुंह ताकते हैं. मच्छर मारने के लिए फॉगिंग मशीन काम नहीं करती है. 

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जन संगठन विकास संवाद के चिन्मय मिश्र तथा अपरा विजयवर्गीय आरोप लगाते हैं कि यह प्रदेश का स्वास्थ्य नहीं भ्रष्टाचार विभाग है जहां प्रदेश की गरीब जनता के नाम पर खिलवाड़ कर लूट मची हुई है. ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टर नहीं है वहीं इंदौर, भोपाल, जैसे बड़े शहरों में स्वीकृत पदों से ज्‍यादा की भरमार है. लेकिन मोहंती कहते हैं ''मलेरिया से निबटने के लिए सभी परंपरागत तरीकेअपनाने के निर्देश दे दिए गए हैं.'' उम्मीद करें सरकारी अमला इन निर्देशों का पालन करेगा और लोगों को बीमारियों से निजात मिलेगी.

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