
कांग्रेस के बड़े नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा समाप्त होने के दो दिन पहले उमा भारती ने दिज्विजय सिंह को एक चिठ्ठी लिखी है. और इस खत ने नए सियासी समीकरणों को जन्म दे दिया है.
एक समय उमा ने दिग्विजय को 'मिस्टर बंटाधार' कहकर उनसे सत्ता छीनी थी. अब यदि उमा और दिग्विजय में नजदीकियां बढ़ीं तो ये न सिर्फ शिवराज के लिए चुनौती साबित होगा, बल्कि कांग्रेस की ओर से खुद को सीएम चेहरा मानकर चलने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए भी मुश्किलें खड़ी करेगा. यहां कांग्रेस कई खेमों में बंटी है.
शिवराज सिंह ने अपनी नर्मदा यात्रा में उमा भारती को अहमियत नहीं दी थी, लेकिन दिग्विजय ने उमा के प्रभाव को परखते हुए अपनी नर्मदा परिक्रमा के समापन के मौके पर उमा भारती को व्यकितगत निमंत्रण भेजकर सियासी बिसात बिछानी शुरू कर दी है. दरअसल, उमा भारती पहले ही यह घोषणा कर चुकीं हैं कि वह लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगीं. वे मध्य प्रदेश की राजनीति में हमेशा से ही सक्रिय रहीं हैं और इसके पीछे यहीं माना जा रहा है कि उमा भारती इस बार होने वाले विधानसभा चुनाव में अपने प्रभाव को पुनर्जीवित कर एक बार फिर ताकतवर रूप से उभरना चाहती हैं.
पिछले कुछ दिनों से उमा भारती मध्य प्रदेश में पिछड़ा वर्ग सम्मेलनों खासकर लोध समाज के कार्यक्रमों में लगातार शिरकत कर समाज के लोगों को एक होने का संदेश देती रहीं हैं.
उमा ने दिज्विजय से मांगा नर्मदा परिक्रमा का पुण्य
नर्मदा परिक्रमा के समापन के मौके पर दिग्विजय सिंह को लिखे पत्र में उमा भारती ने कहा,
आदरणीय भाई साहब, प्रिय दिग्विजय सिंह जी.
आपकी सपत्नीक नर्मदा यात्रा सानन्द संपन्न हुई इसके लिए आपको बधाई देती हूं. आपने एवं आपकी धर्मपत्नी ने नर्मदा परिक्रमा की पुरातन मान्यताओं की मर्यादा रखते हुए इस परिक्रमा को सम्पन्न किया यह अनुकरणीय है. मेरी अभिलाषा थी कि यदि आप नर्मदा परिक्रमा के भण्डारे में बुलाएंगे तो मैं जरूर जाऊंगी तथा आपने मुझे सम्मान के साथ टेलीफोन करके बुलाया भी, किन्तु मेरा दुर्भाग्य है कि जिन तिथियों में आपकी परिक्रमा के समापन का भण्डारा होना है चम्पारण बिहार में दिनांक 10 अप्रैल को प्रधानमंत्री जी स्वच्छता सम्मेलन को संबोधित करेंगे.
यह कार्यक्रम हमारे ही विभाग द्वारा आयोजित हुआ है. इसलिए मैं तो 8 अप्रैल की शाम को ही चम्पारण चली जाउंगी. आप तो जानते ही होंगे कि वर्ष में एक बार स्वयं गंगा जी भी नर्मदा जी में स्नान करके स्वयं को पवित्र करने आती हैं. मेरे पास अभी गंगा की स्वच्छता का दायित्व है इसलिए मुझे स्वयं भी नर्मदा जी के आशीर्वाद की आवश्यकता है. चम्पारण का कार्यक्रम समाप्त होते ही 10 अप्रैल के बाद आप दोनों जहां होंगे, आप दोनों को गंगाजल भेंट करके आप दोनों का आशीर्वाद लूंगी तथा इस परिक्रमा से प्राप्त पुण्य में से थोड़ा सा हिस्सा आप दोनोंं मुझे भी दीजिएगा.
इसी मनोकामना के साथ आपकी छोटी बहन..
उमा भारती
शिवराज सिंह और उमा के बीच है सियासी टकराव
कभी मध्य प्रदेश में कांग्रेस के हाथ से सत्ता छीनकर कमल खिलाने का पूरा श्रेय उमा भारती को ही जाता है. दिग्विजय सिंह के बाद वह मुख्यमंत्री बनी थीं. बाद में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद वह मध्य प्रदेश में हाशिए पर जाती रहीं. नाराज होकर उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली, लेकिन वह कामयाब नहीं हुईं. शिवराज सिंह ने पूरी ताकत लगाकर उमा भारती को बड़ा मलहरा से चुनाव तक हरवा दिया था. इसी के बाद से उमा और शिवराज में अनबन शुरू हो गई. हाल ही में केन-बेतवा प्रोजेक्ट पर भी शिवराज ने अड़ंगा डालकर उमा को झटका दिया था. वहीं नर्मदा यात्रा में भी उमा भारती को शिवराज ने कोई अहमियत नहीं दी थी.
उमा से शिवराज को इसलिए होगी मुश्किल
पिछले कुछ दिनों में उमा और शिवराज के बीच बढ़ी तल्खियां मध्य प्रदेश में भाजपा के लिए कम समस्या खड़ी करने वाली नहीं हैं. उमा भारती मंत्रिमंडल में किए गए फेरबदल के बाद केन्द्रीय नेतृत्व से लेकर मध्य प्रदेश तक में अपनी नाराजगी के साथ प्रभाव का इशारा कर चुकीं हैं. नेतृत्व भी उनके इस प्रभाव को नजरअंदाज नहीं कर सका है.
उमा लोध समाज की सर्वमान्य नेता मानी जातीं हैं. इस समाज को प्रदेश की करीब 70 सीटों पर प्रभाव है. यानि बिना लोध समाज के सपोर्ट के भाजपा के लिए जीत कठिन है. इसी के मद्देनजर शिवराज सिंह के लिए उमा भारती राजनीतिक बाधा से कम नहीं हैं. शिवराज ने भी इसकी काट के लिए प्रहलाद पटेल जैसे नेताओं को अपने पक्ष में किया है, लेकिन उमा का प्रभाव काफी व्यापक है.
सिंधिया के सामने दिज्विजय सबसे बड़ी चुनौती
मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया को आगामी विधानसभा चुनाव में सीएम फेस का प्रमुख दावेदार माना जा रहा है. कमलनाथ जैसे बड़े नेता भी सिंधिया के समर्थन में देखे जा रहे हैं, लेकिन यहां कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह सिंधिया के समर्थन में नहीं हैं. इनके साथ ही दिज्विजय सिंह भी नहीं चाहते कि चुनाव सिंधिया के नेतृत्व में हो.
नेताओं का यही आपसी टकराव कांग्रेस के लिए चुनौती है.
कांग्रेस के प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी कहते हैं, ''कांग्रेस में कोई टकराव नहीं है. सिंधिया और दिज्विजय सिंह के बीच राजनीतिक टकराव नहीं है. उन्होंने सिंधिया को हमेशा आशीर्वाद दिया है."
हार्दिक ने शुरू की सिंधिया की पैरोकारी
विधानसभा चुनाव के ठीक पहले हार्दिक पटेल की मध्य प्रदेश में सक्रियता के भी सियासी मायने हैं. हार्दिक यहां पाटीदार समाज के साथ पिछड़ों को भाजपा के खिलाफ एकजुट करने की मुहिम में हैं. इसके साथ हार्दिक ने यह भी ऐलान कर दिया कि यदि ज्योतिरादित्य सिंधिया को सीएम चेहरा बनाया गया तो वह कांग्रेस को जिताने के लिए पूरी ताकत लगा देंगे.
हार्दिक का यह बयान दर्शाता है कि वह सिंधिया समर्थक हैं और यही बात सिंधिया के खिलाफ कांग्रेस में लकीर खींचने वाले नेताओं को हजम नहीं हो रही है. शायद दिज्विजय सिंह भी नहीं चाहेंगे कि कोई गुजरात से आकर उनके प्रदेश में सीएम के नाम का समर्थन अपने अंदाज में करे.
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