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मुंबई में तमिलों का मसीहा था माफिया डॉन वरदराजन मुदालियर

मायानगरी मुंबई में एक लंबे अरसे तक अंडरवर्ल्ड डॉन हाजी मस्तान ने राज किया. लेकिन एक नाम ऐसा भी है जिसे खुद हाजी ने माफिया बनाया. वो नाम है वरदाराजन मुदालियर का जो एक बाहुबली और ताकतवर गैंगस्टर बनकर उभरा. उसने मुंबई आकर एक कुली के रूप काम की शुरुआत की लेकिन बाद में वह जुर्म की दुनिया के दलदल में धंसता चला गया. हाजी की छत्रछाया में उसने करीब दो दशक तक मुंबई के एक बड़े इलाके पर राज किया था.

वरदराजन ने दो दशकों तक मुंबई के एक बड़े इलाके पर राज किया वरदराजन ने दो दशकों तक मुंबई के एक बड़े इलाके पर राज किया
परवेज़ सागर
  • मुंबई,
  • 31 मई 2016,
  • अपडेटेड 2:55 PM IST

मायानगरी मुंबई में एक लंबे अरसे तक अंडरवर्ल्ड डॉन हाजी मस्तान ने राज किया. लेकिन एक नाम ऐसा भी है जिसे खुद हाजी ने माफिया बनाया. वो नाम है वरदाराजन मुदालियर का जो एक बाहुबली और ताकतवर गैंगस्टर बनकर उभरा. उसने मुंबई आकर एक कुली के रूप काम की शुरुआत की लेकिन बाद में वह जुर्म की दुनिया के दलदल में धंसता चला गया. हाजी की छत्रछाया में उसने करीब दो दशक तक मुंबई के एक बड़े इलाके पर राज किया था.

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कौन है वरदराजन मुदालियर
वरदराजन मुदालियर का जन्म 1926 में मद्रास प्रेसीडेंसी थूटुकुडी में हुआ था. उसका परिवार आर्थिक रूप से ज्यादा संपन्न नहीं था. वहीं उसने बेसिक शिक्षा हासिल की. जवानी की दहलीज पर कदम रखने के बाद वरदराजन तरक्की के रास्ते तलाशने लगा. वह अपने इलाके में ही छोटे मोटे काम करता था. लेकिन उसे ज्यादा पैसा नहीं मिल रहा था. जिसकी वजह से वह हमेशा बैचेन रहा करता था. वह अमीर बनना चाहता था.

अपराध की दुनिया में पहला कदम
वरदराजन मुदालियर छोटे मोटे काम करके तंग आ चुका था. वो बड़े शहर में जाकर काम करना चाहता था. ताकि उसकी ज्यादा कमाई हो सके. 34 साल की उम्र में उसने अपना घर छोड़ने का इरादा किया. और 1960 के दशक में वह मुंबई चला गया. मुंबई जाकर जब कोई अच्छा काम नहीं मिला तो उसने वीटी स्टेशन पर एक कुली के रूप में काम करना शुरू कर दिया. वरदराजन वहीं स्टेशन के पास बाब बिस्मिल्लाह शाह की दरगाह पर गरीबों को खाना खिलाने लगा. उसकी किस्मत का तारा वहीं से चमका. एक दिन स्टेशन पर उसकी मुलाकात कुछ ऐसे लोगों से हुई जो अवैध शराब के कारोबार से जुड़े थे. उसने भी पैसे की खातिर अवैध शराब के धंधे में कदम रख दिया. बस यहीं से शुरू हुआ उसका आपराधिक जीवन. और मुंबई के लोग उसे वरदाभाई के नाम से जानने लगे.

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हाजी मस्तान से मुलाकात
उन मुंबई में दो ही माफियाओं का राज चलता था. एक था हाजी मस्तान और दूसरा करीम लाला. वरदराजन अवैध शराब की धंधे में आगे बढ़ चुका था. पहले वह खुद गुर्गे के तौर पर शराब की तस्करी करता था. लेकिन कुछ ही समय बाद उसने खुद का धंधा शुरू कर दिया. अब वह शराब बंटवाने का काम करने लगा था. दक्षिण भारतीय होने की वजह से उसके साथ मुंबई में रहने वाले तमिल समुदाय के लोग जुड़ने लगे थे. अब वरदराजन अपना कारोबार बढाने की तैयारी में था. लेकिन हाजी मस्तान की मर्जी के बिना वह इस काम को नहीं कर सकता था. लिहाजा उसने हाजी मस्तान तक पहुंचाने का रास्ता बनाया. एक दिन उसकी मुलाकात मुंबई के सबसे बड़े तस्कर हाजी मस्तान हुई. हाजी वरदराजन से प्रभावित हुआ और उसे काम करने के लिए साथ मिला लिया.

तस्करी में साझीदारी
हाजी मस्तान को उस वक्त मुंबई में तस्करी का किंग जाता था. बांबे पोर्ट पर उसका राज चलता था. उसने वरदराजन को भी पोर्ट पर काम करने की इजाजत दे दी. वरदराजन ने इस के आगाज के साथ ही मुंबई पोर्ट पर आने वाले माल की चोरी भी शुरू कर दी थी. धीरे धीरे उसका काम बढ़ता जा रहा था. इसी दौरान हाजी मस्तान ने उसे करीम लाला से भी मिलवा दिया था. अब मुदालियर बेफिक्र था. बाद में उसने नशीले पदार्थों की तस्करी और जमीनों पर कब्जा करना भी शुरू किया. वो ताकतवर हो बनता जा रहा था. कुछ ही सालों में उसने अपने आप को मुंबई में स्थापित कर लिया. हत्या की सुपारी लेने से लेकर जमीन खाली कराने और ड्रग्स की तस्करी करने जैसे मामलों में मुदालियर शामिल था.

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हाजी ने किया इलाकों का बंटवारा
सत्तर के दशक में मुंबई अंडरवर्ल्ड के सबसे बड़े डॉन हाजी मस्तान ने काम के लिए इलाकों का बंटवारा कर दिया. उसने पूर्व और उत्तरी मध्य मुंबई की जिम्मेदारी वरदराजन मुदालियर को दे दी. जबकि दक्षिण और मध्य मुंबई का सारा काम करीम लाला संभालने लगा. हाजी मस्तान खुद तस्करी और अवैध निर्माण से जुड़े मामलों को देखने लगा. हाजी एक मैनेजर की तरह सारे काम को ऑपरेट कर रहा था. वरदराजन अब एक बड़ा नाम बन चुका था. मुंबई के एक बड़े इलाके में उसके नाम की तूती बोलने लगी थी.

वरदराजन का राज
मुंबई में रहने वाले तमिल समुदाय में उसकी बड़ी पैठ बन चुकी थी. वह तमिल बाहुल्य इलाकों में एक समानांतर न्यायिक प्रणाली चला रहा था. वहां उसी का कानून चलता था. वही लोगों के मामलों का निपटारा करता था. माटुंगा और धारावी क्षेत्रों में बड़ी तादाद में रहने वाले तमिल उसका समर्थन करते थे. वह गरीबों और ज़रूरतमंदों की मदद करता था. तमिल समाज के लोग उसे मसीहा मानते थे. वो भी अपने लोगों के लिए पूरी तरह समर्पित था. पुलिस भी उसके इलाके में जाने से बचती थी. और अगर जाती थी तो वरदराजन की इजाजत लेकर.

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वापस चेन्नई चला गया था वरदाभाई
पूरे मुंबई पर हाजी मस्तान, करीम लाल और वरदराजन का राज था. सब इनके हिसाब से चल रहा था. लेकिन अस्सी के दशक में वरदराजन एक तेजतर्रार पुलिस अधिकारी वाई.सी.पवार के निशाने पर आ चुका था. पवार उसके गैंग का खात्मा करना चाहता था. उसने धीरे धीरे वरदराजन गैंग के कई लोगों को मौत की नींद सुला दिया. मामला रुकने का नाम नहीं ले रहा था. वरदराजन हर तरह से पवार को अपने साथ मिलाने की कोशिश कर चुका था. उसने एक बड़ी रकम भी उसे ऑफर की थी. लेकिन पवार नहीं माना. हालात बिगड़े तो वरदराजन को मुंबई छोड़कर वापस चेन्नई जाना पड़ा.

चेन्नई में हुई मौत
2 जनवरी 1988 को चेन्नई में माफिया वरदराजन मुदालियर की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. उसकी अंतिम इच्छा के अनुसार अंडरवर्ल्ड डॉन हाजी मस्तान उसके शव को इंडियन एयरलाइंस के एक चार्टर्ड विमान से अंतिम संस्कार के लिए मुंबई लाए. जब वरदराजन के शव को मुंबई लाया गया तो पूरा धारावी, माटुंगा और सायन कोलीवाडा इलाका उसके अंतिम दर्शन को उमड़ पड़ा था. हजारों लोगों की भीड़ के बीच उसका अंतिम संस्कार किया गया.

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वरदराजन के जीवन पर बनी कई फिल्में
माफिया सरगना वरदराजन मुदालियर के जीवन पर कई फिल्में भी बनाई गईं. वर्ष 1987 में मनी रत्नम ने उसके जीवन पर आधारित नायागन नामक फिल्म बनाई थी. इसी तरह 1988 में हिंदी फिल्म दयावान आई थी जिसमें वरदराजन का किरदार विनोद खन्ना ने निभाया था. इसी तरह से 1991 में बनी मलयालम फिल्म अभिमन्यू में भी एक किरदार वरदराजन से मिलता जुलता था. अमिताभ बच्चन ने खुलासा किया था कि फिल्म अग्निपथ में उन्होंने कुछ डायलॉग वरदराजन की तरह बोले थे. वर्ष 2013 में तमिल फिल्म थलाईवा में सत्याराज नामक किरदार भी वरदराजन पर आधारित था. वर्ष 2015 में आई तमिल फिल्म 'यागावाराईनम ना कक्का' में अभिनेता मिथुन चक्रबर्ती ने भी वरदराजन के जीवन पर आधारित किरदार निभाया था.

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