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मैग्लेव ट्रेन के लिए खोले गए ग्लोबल टेंडर के लिए अबतक तीन विदेशी कंपनियों ने आवेदन किया है. इन कंपनियों में दो अमेरिकी और एक जापानी कंपनी है. इस ग्लोबल टेंडर की आखिरी तारीख 6 सितंबर है. रेल मंत्रालय अब तक मिली प्रतिक्रिया से काफी उत्साहित है. मंत्रालय का कहना है कि मैग्लेव ट्रेन इस देश में रेलवे की बढ़ती मांग को पूरा कर पाने में सक्षम होगी और तमाम शहरों के बीच तेज रफ्तार ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा मिलेगा.
भारतीय रेलवे ने मैग्लेव ट्रेन के लिए एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट के लिए ग्लोबल टेंडर आमंत्रित किए हैं. मैग्लेव की बात करें तो यह दो शब्दों से मिलकर बना है. मैग्नेटिक लेवीटेशन यानी चुंबकीय शक्ति से ट्रेन को हवा में ऊपर उठाकर चलना. मैग्नेटिक लेवीटेशन के जरिए ट्रेन चलाने के लिए रेल मंत्रालय ने पीपीपी यानी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के जरिए मैग्लेव ट्रेन सिस्टम की योजना बनाई है.
रेल मंत्रालय बनेगी टेक्नोलॉजी पार्टनर
रेलवे बोर्ड का कहना है कि इस तकनीक में दिलचस्पी लेने के पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि इसमें नई तकनीक आ चुकी है. जैसे-जैसे सुपर कंडक्टिविटी में तकनीकी महारत हासिल हो रही है, वैसे-वैसे मैग्लेव ट्रेन को चलाना आसान हो रहा है. रेल मंत्रालय का कहना है कि जो भी कंपनी देश में मैग्लेव ट्रेन का सिस्टम डवलप करेगी, वो रेल मंत्रालय को टेक्नोलॉजी पार्टनर बनाएगी.
बंगलुरु-चेन्नई, हैदराबाद और दिल्ली-चंडीगढ़ रूट पर परिचालन
इसके अलावा मैग्लेव ट्रेन के लिए अलग से कंपनी बनाई जाएगी, जो इसको चलाने और बनाने का पूरा जिम्मा उठाएगी. यानी मैग्लेव ट्रेन सिस्टम रेलवे के मौजूदा ढांचे से पूरी तरह से अलग होकर काम करेगा. मंत्रालय के मुताबिक, मोदी सरकार बंगलुरु-चेन्नई, हैदराबाद-चेन्नई, दिल्ली-चंडीगढ़ और नागपुर-मुंबई जैसे रूट्स पर मैग्लेव ट्रेन चलाने की योजना बना रही है. इसी के मद्देनजर मैग्लेव ट्रेन की डिजाइनिंग, बिल्डिंग, कमीशनिंग, ऑपरेशन, रनिंग और मेंटेनेंस के लिए दुनियाभर की कंपनियों से एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट के लिए टेंडर जारी किया गया है.
400-500 किमी प्रति घंटे की रफ्तार
मैग्लेव ट्रेन सिस्टम के लिए रेल मंत्रालय ने जो टेंडर आमंत्रित किया है, उसके मुताबिक भारत सरकार इस प्रोजेक्ट के लिए जरूरी जमीन देगी और संबंधित कंपनी को एलिवेटेड ट्रैक, डिजाइनिंग, मैग्लेव ट्रेन सिस्टम की डिजाइनिंग और डिमॉन्सट्रेशन का जिम्मा खुद उठाना पड़ेगा. इसके लिए 200 से 500 किलोमीटर के ट्रैक के लिए टेंडर भरने वाली कंपनी को योजना देनी होगी और 10 से 15 किलोमीटर के ट्रैक पर अपने मैग्लेव ट्रेन सिस्टम को चलाकर दिखाना होगा. इस ट्रेन को 400 किलोमीटर से लेकर 500 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलाया जाएगा.
चीन, जापान और साउथ कोरिया में सफल
दुनियाभर में मैग्लेव ट्रेन की तकनीक चुनिंदा देशों के पास ही है. ये देश हैं जर्मनी, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और यूएसए. मैग्लेव तकनीक से ट्रेन चलाने का सपना जर्मनी, यूके और यूएसए जैसे कई देशों ने देखा, लेकिन तकनीकी कुशलता के बावजूद इसकी लागत और बिजली की खपत को देखते हुए ये सफल नहीं रही. दुनियाभर में कामर्शियल तरीके से ये सिर्फ तीन देशों चीन, दक्षिण कोरिया और जापान में ही चल रही हैं.