
सत्तर के दशक में समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया ने कभी नारा दिया था 'समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी ने बांधी गांठ पिछड़ा पावे सौ में साठ.' लोहिया ने ये नारा बिहार और उत्तर प्रदेश में सत्ता पर ब्राह्मण और सवर्ण वर्चस्व को तोड़ने के लिए दिया था. पहले 2014 और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान पीएम मोदी ने भी खुद के पिछड़े वर्ग से होने का कार्ड खेलकर सियासी जंग फतह की थी. अब महाराष्ट्र की सियासी जमीन पर एक बार फिर बीजेपी ने कमल खिलाने के लिए ओबीसी दांव चला है.
बीजेपी अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ओबीसी को साधने की कमान संभाली है और उन्होंने मंगलवार को महाराष्ट्र के बीड में कहा, 'पिछली सरकारें बीते 70 वर्षों के दौरान अन्य पिछड़े वर्ग के लिए कुछ नहीं कर सकीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही संवैधानिक ढांचे के माध्यम से पिछड़े वर्ग के लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए ओबीसी आयोग का गठन किया.'
ओबीसी त्रिमूर्ति सीन से बाहर
महाराष्ट्र में बीजेपी के तीन प्रमुख ओबीसी नेता गोपीनाथ मुंडे, एकनाथ खडसे और विनोद तावड़े माने जाते थे, जो ओबीसी के वोट को लेकर पार्टी में आए थे. ये तीनों ओबीसी नेता अलग-अलग कारणों से इस बार के विधानसभा चुनाव में सीन से बाहर हैं. यही वजह है कि खुद ही अमित शाह ने ओबीसी को साधे रखने की कवायद शुरू की है.
महाराष्ट्र में ओबीसी नेता नितिन चौधरी ने कहा कि ओबीसी वर्ग के विभिन्न समुदायों में एक सशक्त नेटवर्क के नहीं होने के चलते वे सब एक मंच पर नहीं हैं, ज़्यादातर नेताओं का आधार महज अपनी जातियों में है. लेकिन बदले हुए राजनीतिक माहौल में ओबीसी का बीजेपी में भले ही कोई चेहरा न हो, लेकिन वोटर और कार्यकर्ता बीजेपी के साथ खड़े नजर आ रहे हैं.
महाराष्ट्र में ओबीसी सियासत
बता दें कि महाराष्ट्र में ओबीसी करीब 356 जातियों में विभाजित हैं और इन्हें 19 फीसदी आरक्षण मिलता है. 1931 में अंतिम बार हुई जातिगत जनगणना के मुताबिक देश की कुल आबादी का 52 फीसदी हिस्सा अति पिछड़ा वर्ग का था. महाराष्ट्र में ओबीसी की आबादी करीब 40 फीसदी है, जिसमें धनगर, घुमंतु, कुनबी, बंजारा, तेली, माली, लोहार और कुर्मी जैसी जातियां शामिल हैं.
महाराष्ट्र में ओबीसी वर्ग की राजनीति को तब गति मिली जब मंडल आयोग की सिफारिशों को सरकार ने लागू किया. इसमें बीजेपी के गोपीनाथ मुंडे, एनसीपी के छगन भुजबल, एकनाथ खड़से, नाना पटोले जैसे चेहरे उभरकर सामने आए.
मुंडे माने जाते थे बीजेपी का ओबीसी चेहरा
महाराष्ट्र की सियासत में ओबीसी एक बड़ी ताकत है, लेकिन मराठा वर्चस्व की राजनीति के चलते उन्हें वो सियासी मुकाम नहीं मिल सका. यही वजह है कि इतनी बड़ी आबादी होने के बाद भी महाराष्ट्र में एक भी सीएम ओबीसी समुदाय से नहीं बना. जबकि, महाराष्ट्र बीजेपी का राजनीतिक आधार मजबूत होने में ओबीसी समुदाय की अहम भूमिका रही है, जिसमें गोपीनाथ मुंडे ने अहम किरदार निभाया था. वह महाराष्ट्र में बीजेपी का चेहरा माने जाते थे, लेकिन 2014 में कार दुर्घटना में उनका निधन हो गया.
एकनाथ खड़से और विनोद तावड़े सीन से बाहर
मुंडे के बाद एकनाथ खडसे और विनोद तावड़े बीजेपी का सबसे बड़ा ओबीसी चेहरा बनकर महाराष्ट्र में उभरे. बीजेपी के ये दोनों नेता काफी कद्दावर माने जाते थे, लेकिन पार्टी ने इस बार दोनों नेताओं को चुनावी मैदान में नहीं उतारा है. बीजेपी ने एकनाथ खड़से की जगह उनकी बेटी को टिकट दिया है. वहीं, विनोद तावड़े के बारे में ऐसा कहा जा रहा कि उन्हें पूरी तरह से साइडलाइन कर दिया गया है. इस तरह से चुनावी मैदान में बीजेपी की ओर से ओबीसी का कोई बड़ा चेहरा नहीं बचा है.
शिवसेना की नजर ओबीसी पर
सियासी नब्ज को देखते हुए कभी मराठी भाषा और अस्मिता के मुद्दों पर लड़ने वाली शिवसेना इस चुनाव में विभिन्न जातियों के वोट बटोरने के प्रयास में है. शिवसेना ने ओबीसी समुदाय को साधने अपने पाले में लाने की कवायद शुरू कर दी थी. शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बीते दिनों पिछड़ा वर्ग के धनगर, घुमंतु, कुनबी, बंजारा, तेली, माली और अन्य जातियों के प्रधिनिधियों से मुलाकात कर उनकी समस्याएं सुनीं और विश्वास दिलाया कि सरकार में आने पर उनकी हर समस्या सुलझाएंगे. हालांकि ऐसे में देखना होगा कि महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना की कोशिशों के बीच ओबीसी समुदाय की पहली पसंद कौन बनता है.