
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की सियासी जंग जीतने के लिए राजनतीकि दल पूरे दमखम के साथ मैदान में उतरे हैं. वहीं, प्रदेश की सियासत में ऐसे 11 राजनीतिक परिवार हैं, जो महाराष्ट्र की राजनीति को अपनी मुट्ठियों में रखते हैं. राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों में लंबे समय से इन्हीं राजनीतिक परिवारों का दबदबा कायम रहा है. इस बार के विधानसभा चुनाव में भी इन्हीं परिवारों के इर्द-गिर्द महाराष्ट्र की सियासत घूमती दिखाई दे रही है.
बता दें कि महाराष्ट्र के सियासी परिवारों में पवार परिवार की सफलता सबसे ज्यादा रही है. एनसीपी प्रमुख शरद पवार खुद चार बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं. वहीं, ठाकरे परिवार ऐसा है, जिसके किसी सदस्य ने खुद कभी चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन प्रदेश की राजनीति में अपना दबदबा कायम रखा. हालांकि इस बार बालसाहेब ठाकरे के पोते आदित्य ठाकरे ने चुनावी समर में उतरने का फैसला किया है. वहीं, कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जिन्होंने पार्टियां बदलीं, लेकिन अपने क्षेत्रों में प्रभाव कम नहीं होने दिया.
1.'पवार परिवार' पर राजनीतिक संकट
महाराष्ट्र की सियासत में शरद पवार को चाणक्य कहा जाता है. शरद पवार की मां शारदा बाई 1936 में पूना लोकल बोर्ड की सदस्य थीं. इसी का नतीजा था कि शरद पवार 38 की उम्र में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए और चार बार सीएम रहे. कांग्रेस से राजनीतिक पारी शुरू करने वाले शरद पवार ने 1999 में एनसीपी का गठन किया. परिवार का सबसे ज्यादा राजनीतिक प्रभाव मराठवाड़ा इलाके के बारामती और ग्रामीण पुणे के आसपास के इलाकों में है.
शरद पवार की राजनीतिक विरासत बेटी सुप्रिया सुले और भतीजे अजीत पवार संभाल रहे हैं. सुप्रिया 2006 में राज्यसभा सदस्य बनीं और पिछले तीन लोकसभा चुनाव से बारामती सीट से सांसद चुनी जा रही हैं. अजीत पवार भी महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री रह चुके हैं और फिलहालबारामती विधानसभा सीट से विधायक हैं. शरद पवार के पोते और अजित पवार के बेटे पार्थ पवार ने सियासत में कदम रखा, लेकिन जीत नहीं सके. पवार के एक और पोते रोहित पवार इस बार के चुनाव में किस्मत आजमाने की जुगत में है.
2.महाराष्ट्र का 'किंगमेकर' ठाकरे परिवार
महाराष्ट्र की सियासत बिना ठाकरे परिवार के पूरी नहीं होती है. बालासाहेब ठाकरे ने 1966 को शिवसेना का गठन किया. एक भी चुनाव नहीं लड़ने के बावजूद महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार का हमेशा से दबदबा रहा है. शिवसेना का राजनीतिक प्रभाव सबसे ज्यादा कोकंण और मुंबई और आसपास के इलाकों में है.
बाला साहेब ठाकरे की राजनीतिक विरासत उनके बेटे उद्धव ठाकरे के हाथों में है और शिवसेना के अध्यक्ष हैं. जबकि, भतीजे राज ठाकरे ने शिवसेना से अपना राजनीतिक पारी का आगाज किया, लेकिन बाद में उन्होंने महाराष्ट्र निर्माण सेना (मनसे) के नाम से अलग पार्टी गठन कर ली. राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे भी सक्रिय राजनीति में है. ठाकरे परिवार में चुनाव न लड़ने की परंपरा से अलग हटकर 53 साल के बाद ठाकरे परिवार की तीसरी पीढ़ी के सदस्य और बालासाहेब के पोते आदित्य ठाकरे चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया.
3.मुंडे परिवार: बेटियों के हाथ सियासी विरासत
महाराष्ट्र में बीजेपी की राजनीति में गोपीनाथ मुंडे काफी कद्दावर नेता माने जाते थे. कांग्रेस सत्ता के खिलाफ संघर्ष करने वालों में मुंडे का नाम सबसे आगे आता था. वो महाराष्ट्र के गृह मंत्री और केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री रहे हैं. लेकिन 2014 में कार दुर्घटना में उनका निधन हो गया है. मुंडे की राजनीतिक उनकी बेटियों के हाथ में है. बड़ी बेटी पंकजा महाराष्ट्र में कैबिनेट मंत्री हैं और दूसरी बेटी प्रीतम बीड़ से सांसद हैं. जबकि भतीजे धनंजय मुंडे एनसीपी से विधान परिषद सदस्य हैं. मुंडे परिवार का राजनीतिक प्रभाव महाराष्ट्र के बीड जिले के आसपास इलाकों में है.
4. चव्हाण परिवार: बाप-बेटे रहे सीएम
महाराष्ट्र की सियासत में चव्हाण परिवार कांग्रेस का चेहरा पहले भी था और आज भी है. पूर्व मुख्यमंत्री शंकरराव चव्हाण 1975 और 1986 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहने के साथ केंद्र में वित्त और गृह मंत्रालय जैसे विभाग भी संभाल चुके हैं. मौजूदा समय में उनकी राजनीतिक विरासत अशोक चव्हाण के हाथों में रही है और 2008 से 2010 के बीच महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी रहे हैं. 'नांदेड़' जिले में चव्हाण परिवार की अच्छी खासी राजनीतिक दखल है. अशोक चव्हाण की पत्नी अमिता भी विधायक रह चुकी हैं.
5.भुजबल परिवार का नासिक में दखल
बालासाहेब ठाकरे की उंगली पकड़कर शिवसेना से जुड़े छगन भुजबल महाराष्ट्र के कद्दावर नेता माने जाते हैं. भुजबल 1985 में मुंबई के मेयर बने और बाद में उन्होंने एनसीपी का दामन थाम लिया. इसके बाद वे महाराष्ट्र में उपमुख्यमंत्री भी बने. छगन भुजबल शिवसेना में थे तो मुंबई में खासा प्रभाव था, लेकिन एनसीपी में आने के बाद नासिक के इलाके में अपना राजनीतिक प्रभुत्व जमाया. भुजबल की राजनीतिक विरासत के तौर उनके बेटे पंकज भुजबल आगे बढ़ा रहे हैं. वे नासिक से सटे जलगांव के नादगांव से विधायक हैं. जबकी भुजबल का भतीजा समीर 2009 में सांसद रह चुका है.
6. नारायण राणे परिवार
नारायण राणे का सियासी सफर शिवसेना से शुरू हुआ था, लेकिन वह कांग्रेस होते हुए बीजेपी में बैकडोर से एंट्री कर चुके हैं. हालांकि राजनीति में आने से पहले राणे मुंबई में सक्रिय 'हरिया-नारया' गैंग से जुड़े हुए थे. यह गैंग खुलेआम सड़कों पर हमला करने के लिए चर्चित था. राणे ने 1968 में शिवसेना ज्वाइन कर लिया और 1990 में पहली बार विधायक चुने गए और शिवसेना-बीजेपी सरकार में मुख्यमंत्री भी बने. इसके बाद 2005 में उन्होंने शिवसेना छोड़कर कांग्रेस ज्वाइन कर ली.
2017 में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर अलग पार्टी बना ली और फिर बीजेपी के समर्थन से राज्यसभा सदस्य हैं. नाराणय राणे की राजनीतिक विरासत उनके बेटे नीलेश राणे आगे बढ़ा रहे हैं. राणे का राजनीतिक सिंधदुर्ग और कोंकण इलाके में है.
7. निलंगेकर परिवार की सियासी हनक
महाराष्ट्र की सियासत में शिवाजी निलंगेकर 1985-86 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे. निलंगेकर परिवार का सबसे ज्यादा प्रभाव लातूर इलाके में है. जिले की निलंगा विधानसभा सीट पर 1999 से अब तक निलंगेकर परिवार के सदस्य ही चुने जाते रहे है. निलंगेकर राजनीतिक विरासत उनके बेटे दिलीप निलंगेकर के हाथों में है, जो फिलहाल विधायक हैं. बहू रूपा सांसद रह चुकी हैं और पोते संभाजी निलंगेकर अभी फडणवीस सरकार में मंत्री हैं.
8. विखे पाटिल परिवार अब बीजेपी में
महाराष्ट्र की सिसायत में बालासाहेब विखे पाटिल कद्दावर नेता माने जाते हैं. अहमदनगर उत्तर से सात बार विधायक रहे और केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे हैं. उनके बेटे राधाकृष्ण महाराष्ट्र में नेता प्रतिपक्ष थे, जिन्होंने हाल ही में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी ज्वाइन की और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री बने. बालासाहेब की बहू शालिनी राधाकृष्ण अहमदनगर की जिला परिषद अध्यक्ष हैं और उनके पोते सुजय पाटिल अहमदनगर सीट से बीजेपी के सांसद हैं. अहमदनगर और विखे पाटिल परिवार एक दूसरे के पर्याय हो चुके हैं.
9. देशमुख परिवार की विरासत बेटे के हाथ
महाराष्ट्र की राजनीति में विलासराव देशमुख शक्तिशाली नेता रहे हैं. महाराष्ट्र के लातूर में जन्मे देशमुख ने पंचायत से अपने राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत की और राष्ट्रीय राजनीति तक अपनी पहुंच बनाई. वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी बने. देशमुख के निधन के बाद उनकी राजनीतिक विरासत को उनके बेटे अमित देशमुख और धीरज देशमुख संभाल रहे हैं. जबकि रितेश फिल्म में एक्टर हैं.
10. वसंतदादा पाटिल
महाराष्ट्र की राजनीति में वसंतदादा पाटिल की एक दौर में तूती बोलती थी. वसंतदादा 1977 और 1983 में दो बार मुख्यमंत्री रहे हैं और मौजूदा समय में पाटिल परिवार की तीसरी पीढ़ी महाराष्ट्र की राजनीति में सक्रिय है. इस परिवार का प्रभाव सांगली और इसके आसपास के इलाके में है. पाटिल की पत्नी शालिनी ताई भी कैबिनेट मंत्री रह चुकी हैं. इसके अलावा उनके बेटे प्रकाश और पोते प्रतीक सांगली से सांसद रह चुके हैं.
11. शिंदे परिवार की विरासत बेटी के हाथ
महाराष्ट्र में एक सब इंस्पेक्टर से देश के गृहमंत्री तक का सफर करने वाले कांग्रेस नेता सुशील कुमार शिंदे प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. इसी से उनकी राजनीतिक ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है, लेकिन इस बार चुनावी में रण में उन्हें हार का मुंह देखा पड़ा है. जबकि महाराष्ट्र में कांग्रेस का दलित चेहरा माने जाते हैं और सोलपुर इलाके में अच्छा खासा प्रभाव रखते हैं. सुशील कुमार शिंदे की राजनीतिक विरासत उनकी बेटी प्रणीति शिंदे संभाल रही हैं. वह सोलापुर विधानसभा सीट से विधायक हैं.