
महाराष्ट्र में गठबंधन को संभालने में नाकाम रही भाजपा पहली बार खुद को असहाय महसूस कर रही है. पार्टी के सामने चुनौतियां सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं है. महाराष्ट्र के साथ ही कर्नाटक और झारखंड को बचाना भी भाजपा के लिए आसान काम नहीं है.
जिस तरह से महाराष्ट्र में जीती हुई बाजी भाजपा के हाथ से फिसल गई है उसने कर्नाटक की चिंता और बढ़ा दी है. कर्नाटक में 5 दिसंबर को 15 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं. नतीजा 9 दिसंबर को आएगा. यहां भाजपा को अपनी सरकार बचाने के लिए कम से कम 8 सीटों पर जीत हासिल करनी होगी. लेकिन जिस तरह से इन सभी सीटों पर पार्टी के कैडर में नाराजगी है उसे देखते हुए मुकाबला काफी कठिन दिख रहा है. कर्नाटक भाजपा के कुछ नेताओं का कहना है कि, कोई भी चुनाव आसान नहीं होता है. इस बार का उप-चुनाव अलग है.
पहली बात तो यह कि कांग्रेस और जेडीएस के जिन अयोग्य ठहराए गए लोगों को भाजपा ने टिकट दी है उनकी विश्वसनीयता वोटरों में कम हुई है. वे जिस मूल पार्टी से जीत कर आए थे, उन दलों के कैडर तो इनसे नाराज हैं ही साथ ही भाजपा के मूल कैडर भी दूसरे दलों से आए लोगों को टिकट देने से खुश नहीं है. ऐसे में भाजपा के इन प्रत्याशियों की लड़ाई कठिन होती जा रही है.
उधर, भाजपा के खिलाफ जिस तरह से कांग्रेस और एनसीपी, महाराष्ट्र एकजुट हुई है वह भी भगवा दल के लिए समस्या है. यहां पार्टी ने अपने सबसे पुराने सहयोगी, शिवसेना को न सिर्फ खोया है बल्कि शिवसेना कांग्रेस और एनसीपी जैसे वैचारिक रूप से एकदम अलग पार्टी के साथ मिलकर भाजपा को पटखनी देने के लिए प्रतिबद्ध है.
भाजपा की असली चिंता यह है कि यदि दिसंबर के पहले हफ्ते में महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने सरकार बना ली और कर्नाटक में भाजपा सरकार बचाने में नाकाम हो गई तो यह संदेश जाएगा कि भाजपा अब अपराजेय नहीं रही है जिसका सीधा असर झारखंड के चुनाव में पड़ेगा. यहां विपक्षी दल उत्साह के साथ भाजपा के खिलाफ जुटेंगे और खामियाजा भाजपा को भुगतना होगा.
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