
महाराष्ट्र में सत्ता का संघर्ष चरम पर है. भारतीय जनता पार्टी के सरकार बनाने से इनकार करने के बाद राज्यपाल ने पहले शिवसेना और फिर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) को सरकार बनाने के लिए न्योता दिया था. लेकिन मोदी कैबिनेट की अनुशंसा के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राज्य में राष्ट्रपति शासन को मंजूरी दे दी. इस तरह पिछले कई दिनों से चल रहे सत्ता संघर्ष का आज पटापेक्ष हो गया.
19 दिन बाद भी नहीं हो पाया सरकार गठन
आपको बता दें कि महाराष्ट्र में 24 अक्टूबर को मतगणना हुई थी. चुनावों में बीजेपी-शिवसेना की महायुति को स्पष्ट बहुमत मिला था. बहुमत मिलने के बाद भी सरकार गठन में उनकी आपस में ठन गई और दोनों ही दलों के रास्ते अलग हो गए. इसके बाद राज्य में किसी भी दल के पास बहुमत न होने की वजह से मतगणना के बाद से अब तक 19 दिन बीत चुके हैं और राज्य में सरकार गठन नहीं हो पाया है.
चुनावों के बाद यह थी दलीय स्थिति
चुनावों के बाद महाराष्ट्र में बीजेपी को कुल 105 सीटों पर जीत मिली थी और वह सबसे बड़े दल के रूप में सामने आई थी. 56 सीटों पर जीत के साथ शिवसेना राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी. यानी बीजेपी-शिवसेना महायुति के पास कुल 161 सीटें थी जो बहुमत के आंकड़े से काफी ज्यादा थीं. इसके बाद 54 सीटों के साथ एनसीपी जबकि चौथे नंबर कांग्रेस थी जिसे 44 सीटों पर जीत मिली थी.
बहुमत के अभाव में राष्ट्रपति शासन
जब किसी सदन में किसी पार्टी या गठबंधन के पास स्पष्ट बहुमत ना हो. तो राज्यपाल सदन को 6 महीने की अवधि के लिए 'निलंबित अवस्था' में रख सकते हैं. 6 महीने के बाद, यदि फिर कोई स्पष्ट बहुमत प्राप्त ना हो तो उस दशा में पुन: चुनाव आयोजित किए जाते हैं.
राष्ट्रपति शासन की अवधि
यदि संसद के दोनों सदनों द्वारा राष्ट्रपति शासन का अनुमोदन कर दिया जाता है तो राष्ट्रपति शासन 6 माह तक चलता रहेगा. इस प्रकार 6-6 माह कर इसे 3 वर्ष तक आगे बढ़ाया जा सकता है.
क्यों कहते हैं राष्ट्रपति शासन
इसे राष्ट्रपति शासन इसलिए कहा जाता है क्योंकि, इसके द्वारा राज्य का नियंत्रण एक निर्वाचित मुख्यमंत्री की जगह सीधे भारत के राष्ट्रपति के अधीन आ जाता है. लेकिन प्रशासनिक दृष्टि से राज्य के राज्यपाल को केंद्रीय सरकार द्वारा कार्यकारी अधिकार प्रदान किए जाते हैं. प्रशासन में मदद करने के लिए राज्यपाल सलाहकारों की नियुक्ति करता है, जो आम तौर पर सेवानिवृत्त सिविल सेवक होते हैं. आमतौर पर इस स्थिति में राज्य में केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी की नीतियों का अनुसरण होता है.