Advertisement

कितना भी लड़ लें, आखिर में शिवसेना और भाजपा का साथ आना है मजबूरी

भाजपा के एक राष्ट्रीय महासचिव ने कहा कि राजनीति में डिमांड करना बुरी बात नहीं है. शिवसेना को मौका मिला है तो वह कर रही है. डिमांड करना शिवसेना का काम है और बातचीत के जरिए उसे सुलझाना हमारा काम है.

सीम देवेंद्र फडणवीस (फाइल फोटो)  सीम देवेंद्र फडणवीस (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • मुंबई,
  • 30 अक्टूबर 2019,
  • अपडेटेड 7:55 AM IST

  • शिवसेना के मोलभाव करने से भाजपा नेता हैरान नहीं

  • वित्त और गृह विभाग जैसे अहम महकमे चाहती है शिवसेना

महाराष्ट्र में सरकार बनाने में जिस ढंग से शिवसेना मोलभाव पर उतरी है, उससे भाजपा के बड़े नेता हैरान नहीं हैं. भाजपा नेताओं का कहना है कि राजनीति में मोलभाव बुरी बात नहीं है, जिसको जब मौका मिलता है, वह करता ही है. भाजपा नेताओं का मानना है कि शिवसेना कितना भी लड़े, आखिर में उसे सरकार भाजपा के साथ ही बनानी है.

Advertisement

भाजपा के एक राष्ट्रीय महासचिव ने आईएएनएस से कहा, 'राजनीति में डिमांड करना बुरी बात नहीं है. शिवसेना को मौका मिला है तो वह कर रही है. डिमांड करना शिवसेना का काम है और बातचीत के जरिए उसे सुलझाना हमारा काम है. मीडिया के लिए शिवसेना के बयान मायने रखते होंगे, हमारे लिए इसमें कुछ भी नया नहीं. हमें कितनी गालियां उन्होंने दीं, फिर भी हम पांच साल तक साथ रहे न. जब 2014 में गठबंधन टूटने पर अलग-अलग चुनाव लड़ने के बाद भी हमने एक साथ सरकार बनाई तो इस बार तो साथ-साथ चुनाव लड़े हैं. यहां शादी के बाद तलाक की गुंजाइश नहीं है.'

शिवसेना को पता है, उसे सीएम पद नहीं मिलने वाला

भाजपा सूत्रों के मुताबिक, शीर्ष नेतृत्व के स्तर से शिवसेना को संदेश दे दिया गया है कि उसे मुख्यमंत्री का पद नहीं मिलने वाला, वह डिप्टी सीएम की पोस्ट से संतोष करे. एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से कहा, 'शिवसेना को भी पता है कि उसे मुख्यमंत्री पद नहीं मिलने वाला, लेकिन शिवसेना मुख्यमंत्री पद को लेकर दबाव की राजनीति कर रही है. दरअसल, शिवसेना की रणनीति मुख्यमंत्री पद को लेकर दबाव कायम कर बदले में वित्त और गृह विभाग जैसे अहम महकमे अपने कब्जे में लेने की है. आदित्य ठाकरे का कद डिप्टी सीएम से ज्यादा का नहीं है.'

Advertisement

भाजपा-शिवसेना का एक-दूसरे के साथ रहना मजबूरी

सूत्रों के अनुसार, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जिस आक्रामक अंदाज में शरद पवार फिर से शक्ति बनकर उभरे हैं, उससे एक ही विचारधारा पर खड़ी भाजपा और शिवसेना का एक-दूसरे के साथ रहना मजबूरी है. भाजपा के एक नेता ने कहा, 'शिवसेना भले ही विकल्प खुले रहने की बात कह रही है, लेकिन उसे भी पता है कि कांग्रेस-एनसीपी के सहयोग से सरकार बनाने पर उसकी उग्र हिंदुत्व की राजनीति पर असर पड़ सकता है. जनता के बीच हिंदुत्व के मुद्दे पर वह पूरी तरह एक्सपोज हो जाएगी.'

अगर सरकार गिर गई तो क्या होगा?

सूत्र बताते हैं कि शिवसेना के साथ आने पर कांग्रेस-एनसीपी की ओर से भाजपा को किसी भी कीमत पर सत्ता से दूर रखने के लिए आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री पद भी दिया जा सकता है. मगर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को यह डर है कि अगर बीच में कहीं आदित्य के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई तो फिर यह 'राजनीतिक भ्रूणहत्या' होगी. इन सब कारणों को देखते हुए उद्धव ठाकरे अच्छे मंत्रालय मिलने के बाद भाजपा के साथ ही सरकार बनाना मुफीद समझते हैं.

एनसीपी से रिश्ते खराब हुए

पार्टी सूत्रों के मुताबिक, भाजपा के सामने भी विकल्प नहीं है. कांग्रेस के साथ तो सरकार भाजपा बनाएगी नहीं. एनसीपी नेता शरद पवार के खिलाफ चुनाव के मौसम में ईडी ने जिस तरह से एक्शन किया, उससे भाजपा से रिश्ते खराब हुए हैं. कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने वाली एनसीपी को भी लगता है कि अगर वह भाजपा के साथ गई तो माना जाएगा कि केंद्रीय एजेंसियों के डर से शरद पवार ने गठबंधन किया.

आज होगी विधायक दल की बैठक

Advertisement

सूत्र बता रहे हैं कि इन सब परिस्थितियों के चलते आखिर में सरकार भाजपा और शिवसेना की ही बनेगी. सरकार बनाने की कवायदों के बीच भाजपा के विधायक दल की बैठक बुधवार (अक्टूबर) को मुंबई में होगी, जिसमें मुख्यमंत्री के लिए देवेंद्र फडणवीस के नाम पर मुहर लगनी है. विधानसभा चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव फिलहाल शिवसेना के साथ बातचीत सुलझाने में लगे हैं. पार्टी सूत्र बता रहे हैं कि जल्द अध्यक्ष अमित शाह के स्तर से उद्धव ठाकरे से बातचीत कर चीजें फाइनल होंगी.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement