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SC में महाराष्ट्र पर महाबहस, जानें आज किस पक्ष ने क्या पेश की दलीलें

महाराष्ट्र केस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई कल सोमवार तक के लिए टल गई है. शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की ओर संयुक्त रूप से दाखिल की गई याचिका पर देश की सबसे बड़ी अदालत में सुनवाई के दौरान शिकायतपक्ष की ओर से जोरदार दलीलें दी गईं.

सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट
अनीषा माथुर
  • नई दिल्ली,
  • 24 नवंबर 2019,
  • अपडेटेड 1:42 PM IST

महाराष्ट्र केस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई कल सोमवार तक के लिए टल गई है. शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की ओर संयुक्त रूप से दाखिल की गई याचिका पर देश की सबसे बड़ी अदालत में सुनवाई के दौरान शिकायतपक्ष की ओर से जोरदार दलीलें दी गईं. कपिल सिब्बल ने कोर्ट से कहा कि राज्यपाल केंद्र के सीधे निर्देश पर काम कर रहे हैं. राष्ट्रपति शासन खत्म करने की सिफारिश, कैबिनेट मीटिंग और राष्ट्रपति के दस्तखत कब हुए इसकी टाइम लाइन तलब की जाए. कोर्ट ने सरकार गठन से जुड़ी पूरी प्रक्रिया के पेपर को लेकर आने को कहा है.

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सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होते ही शिवसेना की ओर से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल ने सबसे पहले रविवार के दिन सुनवाई कराने के लिए कोर्ट से माफी मांगी, जिस पर कोर्ट ने कहा कि संविधान की रक्षा करना हमारी ड्यटी है. कपिल सिब्बल शिवसेना की ओर से कोर्ट में दलील रख रहे हैं तो अभिषेक मनु सिंघवी कांग्रेस की ओर से पेश हो रहे हैं.

कपिल सिब्बल- 24 अक्टूबर को चुनाव परिणाम घोषित किया गया. सदन में बहुमत के लिए 145 विधायकों का समर्थन चाहिए. 24 अक्टूबर से 9 नवंबर के बीच कुछ नहीं हुआ. इस दौरान राज्यपाल ने किसी को सरकार बनाने के लिए नहीं बुलाया.

कपिल सिब्बल- फिर 9 नवंबर को बीजेपी को बुलाया गया, लेकिन उसने सरकार बनाने से मना कर दिया. 10 नवंबर को शिवसेना को बुलाया लेकिन उसे 24 घंटे का ही समय दिया गया. बाद में अन्य पार्टियों को टटोलकर 12 नवंबर को दोपहर में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.

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कपिल सिब्बल- चुनाव पूर्व गठबंधन (बीजेपी-शिवसेना) टूट गया और चुनाव बाद नया गठबंधन बनाया गया. 22 नवंबर की शाम 7 बजे एक पीसी में ऐलान किया गया कि हम शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी मिलकर सरकार बनाने पर सहमत हो गए हैं और सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे. लेकिन जिस तरह फैसला लिया गया वो अनोखा है और मैंने इस तरह का फैसला अब तक नहीं देखा. सुबह राज्यपाल की ओर से राष्ट्रपति शासन खत्म करने की सिफारिश की गई और राष्ट्रपति शासन खत्म कर दिया गया. लेकिन इस दौरान कोई कैबिनेट बैठक नहीं हुई. फिर सुबह 8 बजे 2 लोगों को शपथ भी दिला दिया गया. जो कुछ भी हुआ वो सब कुछ रहस्यमयी है. कब प्रस्ताव दिए गए और आमंत्रण किस तरह से दिया गया. इस पर कुछ भी साफ नहीं है.

कपिल सिब्बल- अगर उनको ये गुमान है कि बहुमत उनके साथ है तो जल्द से जल्द सदन में बहुमत साबित करें.

सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान सारे दस्तावेजों की बात पूछी तो कहा कि कुछ भी रिकॉर्ड पर नहीं है, लेकिन शाम 7 बजे से सुबह 7 बजे के बीच यह सब कुछ होने का दावा किया जा रहा है.

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यह दिलचस्प है कि शनिवार सुबह 5:47 बजे राष्ट्रपति शासन हटाया गया. और इस फैसले के महज 3 घंटे के अंदर देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार को शपथ दिला दी गई.

जस्टिस संजीव खन्ना- लेटर ऑफ सपोर्ट कब दिया गया?

कपिल सिब्बलः कुछ भी रिकॉर्ड पर नहीं. आधी रात के बाद ही सब कुछ हुआ लगता है.

मुकुल रोहतगी- मैं मामले का एक पहलू उठाना चाहता हूं. केस करने वालों को देखिए. शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की ओर से प्रतिनिधि भेजा गया. क्या यह सही है. याचिकाकर्ता ने अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट आए हैं. लेकिन किसी भी राजनीतिक दल के पास कोई मौलिक अधिकार नहीं होता. उन्हें पहले हाईकोर्ट जाना चाहिए. पहले के दिए गए आदेश व्यक्तिगत तौर पर दी गई याचिका पर आधारित थे. बहुमत पार्टियों की ओर से साबित नहीं किया जाना है.

जस्टिस खन्ना- इन तकनीकी आपत्तियों को बदला जा सकता है. वे मौखिक उल्लेख करके पार्टियों को जोड़ सकते हैं. विडंबना यह है कि यह मुद्दा कर्नाटक में कपिल सिब्बल की ओर से उठाया गया था. अब वह दूसरी पक्ष की ओर हैं. 

मुकुल रोहतगी- मैं बीजेपी के एक और कुछ निर्दलीय उम्मीदवारों की ओर से कोर्ट में पेश हो रहा हूं. रविवार को सुनवाई की जरूरत ही नहीं थी. किसी पक्षकार को कुछ तथ्य मालूम नहीं तो आज ही सुनवाई करने की क्या जरूरत थी.

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जस्टिस रमन्ना और जस्टिस खन्ना- अब तो बेंच बन गई और हमने सुनवाई शुरू कर दी है तो इस सवाल का कोई मतलब नहीं.

कोर्ट ने कपिल सिब्बल से पूछा कोई और दलील?  तो उन्होंने कर्नाटक के मामला का उदाहरण लिया.

कपिल सिब्बल- ये सभी आदेश सुसंगत हैं कि फ्लोर टेस्ट होना चाहिए. महाराष्ट्र के लोगों को एक सरकार की दरकार है. वे फ्लोर टेस्ट नहीं करा रहे क्योंकि वे इस बीच कुछ अलग करना चाहते हैं. शाम 7 बजे हमने दावा किया कि हम सरकार बनाएंगे.  राज्य में परिस्थितियां उनके लेटर ऑफ सपोर्ट के ठीक उलट हैं. हम अभी भी बहुमत साबित कर सकते हैं.

अभिषेक मनु सिंघवी- सरकार के गठन के लिए एक निर्धारित प्रक्रिया होती है. राज्यपाल की भूमिका होती है कि पहले वह हस्ताक्षर और भौतिक दस्तावेजों के माध्यम से खुद को संतुष्ट करे. विधायकों का भौतिक सत्यापन किया जाना चाहिए.

- जब शाम 7 बजे हमने ऐलान किया कि हम सरकार बनाने जा रहे हैं तो आधी रात को राज्यपाल ने ऐसा फैसला कैसे ले लिया. क्या उन्होंने फैसले से पहले किसी तरह का कोई सत्यापन कराया?

- सीएम और डिप्टी सीएम के शपथ ग्रहण का क्या आधार है? अजित पवार ने दावा किया कि मेरे विधायक मेरे साथ आ गए हैं.

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- कल एनसीपी ने एक बैठक की थी जिसमें 41 विधायक मौजूद हुए. इस बैठक में जब 41 विधायकों ने अजित पवार को विधायक दल के नेता पद से हटाने का फैसला लिया तो वे कैसे दावा कर रहे हैं कि समर्थन उनके पास है?

- राज्यपाल ने प्रक्रिया पालन की होती तो ये सवाल ही नहीं उठते. मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री पद के शपथ ग्रहण के पीछे एनसीपी के बीच हुआ मतभेद है.

जस्टिस रमन्ना- यहां हम पार्टी का अंदरूनी मसला सुनने को नहीं बैठे हैं. हमें इससे कोई लेना देना नहीं.

मुकुल रोहतगी- बीजेपी ने राज्यपाल के साथ मिलकर जो किया वो लोकतंत्र की हत्या थी क्योंकि वो समर्थन पत्र सिर्फ 43 विधायकों के दस्तखत वाला था. सिर्फ सदन में बहुमत सिद्ध करना ही सबसे उपयुक्त और विश्वसनीय उपाय है.

मुकुल रोहतगी- बोम्मई मामले में दिए गए फैसले में भी यह कहा गया है कि निर्णय लेने का सबसे अच्छा तरीका फ्लोर टेस्ट है. अन्य फैसले भी 24 घंटे का समय देते हैं.

जस्टिस रमन्ना- यह साफ है. बोम्मई फैसले में कोई विवाद नहीं है.

सिंघवी- यह विचार हॉर्स ट्रेडिंग को रोकने को लेकर है.

केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए.

तुषार मेहता- गठबंधन को सरकार बनाने का मौलिक अधिकार नहीं है, उनकी याचिका की अनुमति नहीं दी जा सकती.

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अभिषेक मनु सिंघवी- मेरे पास झारखंड, उत्तराखंड, गोवा, कर्नाटक  और अन्य राज्यों में हुई ऐसी ही घटनाओं में वकालत का अनुभव है.

सिंघवी ने इस दौरान कोर्ट को कुछ सुझाव दिए कि इस तरह समय प्रबंधन किया जा सकता है. सोमवार सुबह प्रोटेम स्पीकर के रूप में सबसे सीनियर विधायक को चुन लिया जाए. 11 बजे से शाम 4 बजे तक विधायकों की शपथ पूरी करा ली जाए. इसके बाद सत्र आहूत कर फ्लोर टेस्ट कराया जा सकता है.

सिंघवी- कर्नाटक मामला साफ कहता है कि मतदान गुप्त मतदान द्वारा नहीं होना चाहिए. खुले रूप से मतदान होना चाहिए और पूरी प्रक्रिया का सीधा प्रसारण भी होना चाहिए. गोवा मामले में भी इसी तरह से फ्लोर टेस्ट कराया गया था.

SG तुषार मेहता- कर्नाटक मामले में मैं राज्यपाल के लिए उपस्थित हुआ था. हमने सारे पेपर पेश किए थे.

अभिषेक मनु सिंघवी- उत्तराखंड केस में भी वोट कराया गया था और सीधा प्रसारण हुआ था.

SG तुषार मेहता- वो गवर्नर की ओर से दस्तावेज पेश कर सकते हैं.

सिंघवी- शपथ ग्रहण के साथ-साथ या ठीक बाद सदन में प्रस्ताव के समर्थक और विरोध करने वाले सदस्यों को अलग-अलग तरफ बिठा सकते हैं, या फिर वोटिंग कराई जाए.

सिब्बल- राज्यपाल की ओर से सत्तारुढ़ पार्टी को बहुमत साबित करने के लिए 30 नवंबर तक का समय दिया गया है, इसका मतलब कुछ अलग हो रहा है. कोर्ट आज या कल फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दे सकता है. इनमें से कई ऐसे मामले नहीं थे, जहां मैं विधायकों के पत्रों का उत्पादन कर रहा हूं. यहां एक डिप्टी सीएम है, जिसके पास कोई समर्थन नहीं है. यह लोकतंत्र का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है क्योंकि लोकतंत्र संख्या पर चलती है. राज्यपाल को उन्हें आमंत्रित नहीं करना चाहिए था.

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सिंघवी- कंपोजिट फ्लोर टेस्ट हो जाए. समर्थन पत्र पर 41 विधायकों के दस्तखत हैं, लेकिन उपमुख्यमंत्री अजित पवार अपने समर्थन में एनसीपी के 51 विधायकों का दावा करते रहे. कोर्ट आज या कल या फिर जब सुविधा हो फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दे सकता है.

मुकुल रोहतगी- संविधान के अनुच्छे 360 और 361 में राष्ट्र्पति और राज्यपाल के अधिकारों का विस्तार से उल्लेख है. 361 के तहत राज्यपाल अपने अधिकार क्षेत्र के तहत किए गए काम के लिए किसी भी कोर्ट के सामने जवाबदेह नहीं है. राज्यपाल को अधिकार है कि वो किसको मुख्यमंत्री के रूप में चुने.

जस्टिस रमन्ना- राज्यपाल इस तरह की नियुक्ति नहीं कर सकते हैं, लेकिन इस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता. सब पहले से निर्धारित है. फैसला फ्लोर टेस्ट से होना चाहिए.

जस्टिस रमन्ना- हर चीज के लिए कानून निर्धारित है. नियम तय है.

रोहतगी- अब सवाल है कि कोर्ट क्या करे और क्या कर सकता है.

जस्टिस भूषण- हमें तो ये भी नहीं पता कि क्या और कैसे किस प्रक्रिया के तहत यह सब कुछ हुआ?

रोहतगी- तभी तो हम कह रहे हैं कि लोगों को इतनी जल्दी मचाकर रविवार को सबको परेशान करने की जरूरत क्या थी?

रोहतगी- कल के लिए प्रोटेम स्पीकर की शपथ, विधायकों को शपथ और फिर राज्यपाल का संक्षिप्त भाषण और फिर टेस्ट हो जाए.

रोहतगी- सदन कोर्ट का और कोर्ट सदन का सम्मान करता है. यही सत्य है. नहीं तो कहीं सदन कल को पास कर दे कि सुप्रीम कोर्ट दो साल में सारे मामले निपटाए.

जस्टिस रमन्ना- क्या राज्य सरकार की ओर से कोई पेश हो रहा है. फडणवीस या अजित पवार की ओर से.

सिब्बल- हमने हर किसी को याचिका से जुड़ी कॉपियां पेश कर दी है. हम आश्वस्त हैं. वे लोग उपस्थित नहीं हुए.

तुषार मेहता- मैं केंद्र की ओर से पेश हुआ. मुझे किसी की ओर से ब्रीफ नहीं किया गया. जरूरत हुई तो महाराष्ट्र के लिए भी जवाब दाखिल कर सकता हूं.

सुप्रीम कोर्ट ने सभी प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया. अब इस संबंध में कल साढ़े 10 बजे सुनवाई होगी. कॉपियों को सभी पार्टियों को दिया जाना चाहिए. कोर्ट ने गवर्नर का आदेश और समर्थन पत्र कल सुबह तक तलब किया. कल सुबह राज्यपाल के आदेश और फडणवीस की ओर से भेजे गए पत्र के आदेश को भी लाने को कहा गया है. साथ ही केंद्र, महाराष्ट्र, देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार को नोटिस जारी किया गया है.

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