
मराठा सेवा संघ (एमएसएस) भविष्य की दिशा को लेकर बंट गया है. यह वही एमएसएस है जिसने पिछले 18 महीनों में राज्य के सियासी तौर पर असरदार मराठा समुदाय की पूरी 57 जोरदार रैलियों का आयोजन और अगुआई की थी.
आज इसके दो धड़े एमएसएस की सामाजिक शाखा संभाजी ब्रिगेड पर कब्जे के लिए कानूनी जंग में मुब्तिला हैं. एक धड़े की कमान प्रवीण गायकवाड़ के हाथ में है और वे मौजूदा हालत को जस का तस बनाए रखने के हक में हैं, जबकि मनोज आखाडे की अगुआई में दूसरा धड़ा संभाजी ब्रिगेड को मुकम्मल सियासी पार्टी के तौर पर लॉन्च करना चाहता है. उम्मीद की जा रही है कि राज्य कल्याण आयुक्त आने वाले हफ्तों में इस विवाद
पर फैसला सुनाएंगे.
राज्य सरकार के एक पूर्व कर्मचारी (इत्तफाकन राज्य सरकार के 12 फीसदी कर्मचारी मराठा हैं) पुरुषोत्तम खेडेकर ने दो दशक पहले संभाजी ब्रिगेड की शुरुआत की थी. इसका घोषित उद्देश्य 'ब्राह्मणवादी ताकतों के खतरे के खिलाफ (मराठों के बीच) जागरूकता पैदा करना' था. इन वर्षों के दौरान संगठन ने कई मुद्दों पर आक्रामक रुख अख्तियार किया.
इनमें छत्रपति शिवाजी के बारे में ब्राह्मण अध्येताओं का कथित गलत जानकारी देने का मुद्दा भी शामिल था. इसने 2015 में कवि बाबासाहेब पुरंदरे को—जो ब्राह्मण हैं—राज्य के सर्वोच्च महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार से नवाजे जाने पर भी ऐतराज किया था. संभाजी ब्रिगेड साल 2016 से ही काफी उग्र तरीके से मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग कर रहा है.
संगठन में शुरुआती मतभेद पिछले नवंबर में दिखाई दिए, जब आखरे का धड़ा स्थानीय निकाय चुनाव में उतरा था. आखाडे का एक भी उम्मीदवार जीत नहीं पाया. उसके बाद तो तकरार और बढ़ गई. गायकवाड़ का कहना है कि इस कदम से कार्यकर्ताओं का मनोबल कमजोर पड़ा. वे कहते हैं, ''हमारे संगठन ने हमेशा सियासतदानों की आलोचना की है, फिर ताज्जुब क्या कि लोगों ने हमारे सियासतदानों को नामंजूर कर दिया.''
वे यह भी कहते हैं कि रोकड़े का सहारा नहीं होने का नतीजा यह हुआ कि चुनाव लडऩे वाले कार्यकर्ता कर्ज में दब गए. 90 फीसदी कार्यकर्ताओं के समर्थन का दावा करने वाले गायकवाड़ ने उसके बाद से ही पीजेंट्स ऐंड वर्कर्स पार्टी (पीडब्ल्यूपी) से हाथ मिला लिए.
वे इस बात पर जोर देते हैं कि संभाजी ब्रिगेड को अपने सामाजिक संगठन होने का चरित्र हर हाल में बनाए रखना चाहिए, और कहते हैं, ''पीडब्ल्यूपी के साथ मिलकर हम ब्राह्मणवादी और हिंदुत्ववादी ताकतों के खिलाफ लड़ाई जारी रखेंगे.''
इसके पहले शिव धर्म पार्टी और छावा संघटना सरीखे मराठा सियासी संगठन कांग्रेस और राकांपा के बुनियादी वोट बैंकों में जरा भी सेंध लगाने में नाकाम रहे थे. हालांकि इस बार विश्लेषकों का मानना है कि मराठों की सियासी महत्वाकांक्षाओं का हश्र भाजपा के हाथ मजबूत करने में हो सकता है, जो हाल ही तक उनकी घोषित दुश्मन थी.
खेडेकर के एक नजदीकी उनके एक भाषण की तरफ इशारा करते हैं जो उन्होंने कुछ महीनों पहले शिरडी में दिया था. इसमें उन्होंने 2019 के बाद भाजपा-शिवसेना की सरकार को खुले समर्थन की बात कही थी.
इससे संकेत मिलता है कि वे दक्षिणपंथ की तरफ झुक रहे हैं. संभाजी ब्रिगेड के संस्थापक हाल ही में तीन आयोजनों में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडऩवीस और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के साथ दिखाई दिए थे.
फडऩवीस ने शिवाजी की मां जीजाबाई की याद में बनाए जाने वाले भव्य स्मारक के लिए 200 करोड़ रु. देने का वादा किया. इस स्मारक की योजना खेडेकर ने बनाई है. फडऩवीस और गडकरी ने बीते अगस्त में एमएसएस के राज्य सम्मेलन में और फिर दिसंबर में नागपुर में हुए बलिराजा शोध संस्थान के उद्घाटन समारोह में भी हिस्सा लिया था. यह संस्थान गैर-ब्राह्मणवादी अध्येताओं की कृतियों पर शोध करेगा.
हालांकि गायकवाड़ भाजपा के साथ किसी रिश्ते से इनकार करते हैं. वे कहते हैं, ''भाजपा के खिलाफ कांग्रेस, राकांपा और पीडब्ल्यूपी का मोर्चा बनेगा. हम वोट बंटने नहीं देंगे.''
एमएसएस का दोफाड़ होना फडऩवीस के लिए फायदे का सौदा है, खासकर जब ग्रामीण इलाकों में काफी बेचैनी देखी जा रही है.
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