Advertisement

कब और क्यों लगाया जाता है राष्ट्रपति शासन, जानिए क्या हैं इसके प्रावधान

हम आपको यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन किन परिस्थितयों में लगता है और इसके क्या प्रावधान होते हैं. महाराष्ट्र की बात करें तो यहां राष्ट्रपति शासन इसलिए लगाया गया है क्योंकि चुनावों में किसी भी दल या गठबंधन के पास बहुमत नहीं है.

राष्ट्रपति भवन (फाइल फोटो) राष्ट्रपति भवन (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • ,
  • 12 नवंबर 2019,
  • अपडेटेड 2:54 PM IST

  • मोदी कैबिनेट ने की महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा
  • चुनाव परिणामों के बाद राज्य में नहीं हो पा रहा था सरकार गठन

महाराष्ट्र में सत्ता का संघर्ष अब समाप्त हो चुका है, राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया है. विधानसभा चुनावों में बीजेपी-शिवसेना महायुति को बहुमत मिलने के बाद भी सरकार गठन में उनकी आपस में ठन गई और दोनों ही दलों के रास्ते अलग हो गए. इसके बाद राज्य में किसी भी दल के पास बहुमत न होने की वजह से मतगणना (24 अक्टूबर) के बाद से अब तक राज्य में सरकार गठन नहीं हो पाया था.

Advertisement

बीजेपी और शिवसेना दोनों को राज्यपाल सरकार बनाने के लिए बुला चुके हैं. आज एनसीपी की बारी थी. लेकिन इससे पहले ही मोदी कैबिनेट ने राष्ट्रपति शासन पर फैसला ले लिया है और राष्ट्रपति को सिफारिश भेज दी. जिसके बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी राज्य में राष्ट्रपति शासन को मंजूरी दे दी.

हालांकि राष्ट्रपति शासन लगने के बाद महाराष्ट्र में सरकार गठन के रास्ते अभी भी बंद नहीं हुए हैं. राष्ट्रपति शासन के दौरान अगर कोई भी पार्टी राज्यपाल के पास जाती है और उन्हें विश्वास दिलाने में कामयाब रहती है कि उनके पास बहुमत के लिए पर्याप्त संख्या है. ऐसे में राज्यपाल को यकीन हो जाता है कि सरकार गठन हो सकता है तो ऐसी स्थिति में वो राष्ट्रपति शासन को खत्म करने की सिफारिश कर सरकार बनाने का निमंत्रण दे सकते हैं.

Advertisement

महाराष्ट्र का सत्ता संघर्ष आखिरकार राष्ट्रपति शासन पर जाकर रुका. यहां हम आपको यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन किन परिस्थितयों में लगता है और इसके क्या प्रावधान होते हैं. महाराष्ट्र की बात करें तो यहां राष्ट्रपति शासन इसलिए लगाया गया है क्योंकि चुनावों में किसी भी दल या गठबंधन के पास बहुमत नहीं है.

राष्ट्रपति शासन की संवैधानिक व्यवस्था

राष्ट्रपति शासन से जुड़े प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 356 में दिए गए हैं. आर्टिकल 356 के मुताबिक राष्ट्रपति किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं यदि वे इस बात से संतुष्ट हों कि राज्य सरकार संविधान के विभिन्न प्रावधानों के मुताबिक काम नहीं कर रही है. ऐसा जरूरी नहीं है कि राष्ट्रपति उस राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर ही यह फैसला लें. यह अनुच्छेद एक साधन है जो केंद्र सरकार को किसी नागरिक अशांति जैसे कि दंगे जिनसे निपटने में राज्य सरकार विफल रही हो की दशा में किसी राज्य सरकार पर अपना अधिकार स्थापित करने में सक्षम बनाता है. संविधान में इस बात का भी उल्लेख है कि राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के दो महीनों के अंदर संसद के दोनों सदनों द्वारा इसका अनुमोदन किया जाना जरूरी है. यदि इस बीच लोकसभा भंग हो जाती है तो इसका राज्यसभा द्वारा अनुमोदन किए जाने के बाद नई लोकसभा द्वारा अपने गठन के एक महीने के भीतर अनुमोदन किया जाना जरूरी है.

Advertisement

बहुमत के अभाव में राष्ट्रपति शासन

जब किसी सदन में किसी पार्टी या गठबंधन के पास स्पष्ट बहुमत ना हो . राज्यपाल सदन को 6 महीने की अवधि के लिए 'निलंबित अवस्था' में रख सकते हैं. 6 महीने के बाद, यदि फिर कोई स्पष्ट बहुमत प्राप्त ना हो तो उस दशा में पुन: चुनाव आयोजित किए जाते हैं.

राष्ट्रपति शासन की अवधि

यदि संसद के दोनों सदनों द्वारा राष्ट्रपति शासन का अनुमोदन कर दिया जाता है तो राष्ट्रपति शासन 6 माह तक चलता रहेगा. इस प्रकार 6-6 माह कर इसे 3 वर्ष तक आगे बढ़ाया जा सकता है.

क्यों कहते हैं राष्ट्रपति शासन

इसे राष्ट्रपति शासन इसलिए कहा जाता है क्योंकि, इसके द्वारा राज्य का नियंत्रण एक निर्वाचित मुख्यमंत्री की जगह सीधे भारत के राष्ट्रपति के अधीन आ जाता है. लेकिन प्रशासनिक दृष्टि से राज्य के राज्यपाल को केंद्रीय सरकार द्वारा कार्यकारी अधिकार प्रदान किए जाते हैं. प्रशासन में मदद करने के लिए राज्यपाल सलाहकारों की नियुक्ति करता है, जो आम तौर पर सेवानिवृत्त सिविल सेवक होते हैं. आमतौर पर इस स्थिति में राज्य में केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी की नीतियों का अनुसरण होता है.

क्या होते हैं बदलाव

- राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रीपरिषद् को भंग कर देते हैं.

Advertisement

- राष्ट्रपति, राज्य सरकार के कार्य अपने हाथ में ले लेते हैं और उसे राज्यपाल और अन्य कार्यकारी अधिकारियों की शक्तियां प्राप्त हो जाती हैं.

- राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति के नाम पर राज्य सचिव की सहायता से अथवा राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किसी सलाहकार की सहायता से राज्य का शासन चलाता है. यही कारण है कि अनुच्छेद 356 के अंतर्गत की गई घोषणा को राष्ट्रपति शासन कहा जाता है.

- राष्ट्रपति, घोषणा कर सकता है कि राज्य विधायिका की शक्तियों का प्रयोग संसद करेगी.

- संसद ही राज्य के विधेयक और बजट प्रस्ताव को पारित करती है.

- संसद को यह अधिकार है कि वह राज्य के लिए कानून बनाने की शक्ति राष्ट्रपति अथवा उसके किसी नामित अधिकारी को दे सकती है.

- जब संसद नहीं चल रही हो तो राष्ट्रपति, 'अनुच्छेद 356 शासित राज्य' के लिए कोई अध्यादेश जारी कर सकता है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement