
लातूर से 10 किलोमीटर पहले हारांगुल के नजदीक तीखी गंध से आपका दम घुटने लगता है. यह दुर्गंध मांजरा चीनी मिल से आ रही है. मतलब यह कि गन्ने की पेराई शहर में चरम पर है. लातूर वही शहर है जिसे दो साल पहले ‘सूखाग्रस्त शहर’ करार दिया गया था.
अब यहां खेतों में खड़े 'पानी सोखने वाली गन्ने की वजह से (2017 में बारिश अच्छी हुई थी) चारों तरफ हरियाली है. यहां की 11 में से सात चीनी मिलें दिन-रात चल रही हैं और इतने बोरवेल खोदे जा रहे हैं जितने पहले कभी खोदे नहीं गए.
सूखे के बाद जानकारों ने कहा था कि खूब सारा पानी सोखने वाली गन्ने की खेती ही सूखे की बड़ी वजह है. असल में माधव चिताले की अध्यक्षता में जल और सिंचाई आयोग ने पूरे मराठवाड़ा में गन्ने की खेती पर पाबंदी लगाने की सिफारिश की थी.
लातूर भी महज दो साल पहले तक इसी मराठवाड़ा का हिस्सा हुआ करता था. केंद्रीय जल और सिंचाई आयोग के पूर्व अध्यक्ष चिताले कहते हैं कि गन्ना मराठवाड़ा का पानी चूस रहा है जो इस इलाके में अनियमित और बहुत कम बारिश की वजह से वैसे भी बेशकीमती हो गया है.
वे बताते हैं, ''मराठवाड़ा में सिंचाई का 70 फीसदी पानी अब गन्ने में खप जाता है.’’ एक और जल विशेषज्ञ, जल और भूमि प्रबंधन संस्थान औरंगाबाद के पूर्व प्रोफेसर प्रदीप पुरंदरे भी कहते हैं कि इस इलाके में गन्ने और सूखे के बीच एक रिश्ता है.
बेशक, इस साल लातूर में गन्ने की खेती लहलहा रही है तो इसकी वजह यही है कि 2017 में यहां औसत से ज्यादा बारिश (650 मिमी) हुई. इसके अलावा श्री श्री रविशंकर के संगठन आर्ट ऑफ लिविंग (एओएल) और आरएसएस की पहल पर स्थानीय लोगों ने नागझरी बैराज पर मांजरा नदी को चौड़ा और गहरा करने का काम किया है, जिसकी वजह से पानी का अतिरिक्त भंडार जमा हो गया है. आरएसएस के कार्यकर्ता शिवदास मितकारी कहते हैं कि ‘जलयुक्त लातूर’ परियोजना ने—जिसमें तमाम सियासी विचारधाराओं के कार्यकर्ताओं ने योगदान दिया—पानी का स्तर 8 मीटर बढ़ाने में मदद की है.
दिक्कत यही है कि इसमें से ज्यादातर पानी गन्ने की खेती में खप रहा है. किसान अवैध तरीके से पानी निकाल रहे हैं. इंडिया टुडे ने महज 100 मीटर के क्षेत्र में कम से कम 50 पंप मशीनें देखीं. यह बैराज इसलिए भी अहम है, क्योंकि लातूर को पेयजल सप्लाई इसी से होती है. गन्ने की सिंचाई के लिए इस बैराज से पानी लेने की वजह से 2016 में यहां संकट पैदा हो गया.
लेखक और जल संरक्षण कार्यकर्ता अतुल देउलगांवकर कहते हैं कि अगर गन्ने की खेती और बोरवेल की खुदाई पर लगाम नहीं लगाई गई, तो लातूर को निकट भविष्य में गंभीर सूखा झेलना पड़ सकता है.
वे कहते हैं, ''पानी संकट वाला इलाका होने के नाते लातूर को अच्छे जल प्रबंधन की सक्चत जरूरत है.’’ उनका आरोप है कि सरकार गन्ने की खेती के लिए ड्रिप इरीगेशन को अनिवार्य बनाने की नीति पर अमल को लेकर गंभीर नहीं है.
देउलगांवकर कहते हैं, ‘‘सरकार को गलतफहमी है कि उसकी अग्रणी योजना जलयुन्न्त शिवर (पानी से भरे खेत) सूखे से निजात दिला देगी. इस योजना का खाका ही गड़बड़ है और इसे ठेकेदारों के रहमोकरम पर चलाया जा रहा है.’’
लातूर में एओएल के प्रमुख मकरंद जाधव कहते हैं कि ड्रिप सिंचाई ही वन्न्त की मांग है लेकिन किसान इसका खर्च नहीं उठा सकते. सरकार 60 फीसदी खर्च जरूर लौटा देती है, पर वह सिस्टम लगाने के बाद इसे लौटाती है. एक एकड़ में ड्रिप सिंचाई सिस्टम की लागत 1 लाख रु. आती है. वे कहते हैं, ''किसानों के लिए दूसरे खर्चे पहले जरूरी हैं, जैसे बच्चों की पढ़ाई.’’
वेस्ट इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट और नेचुरल शुगर मिल्स के चेयरमैन बी.बी. थोंबरे गन्ने की खेती के हक में ज्यादा हैं. उनके मुताबिक, यह भ्रम है कि गन्ने की खेती में बहुत ज्यादा पानी लगता है. वे दलील देते हैं कि ऐसा कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं है जो साबित करे कि गन्ना ढेर सारा पानी सोखता है. वे कहते हैं, ‘‘मेरा तजुर्बा कहता है कि एक हेक्टेयर में गन्ने की फसल को फ्लो इरिगेशन सिस्टम में 1.5 करोड़ लीटर पानी की जरूरत होती है.
अगर ड्रिप इरिगेशन का इस्तेमाल किया जाए तो यह जरूरत घटकर 75 लाख लीटर पर आ जाती है. यह सोयाबीन और गेहूं के बराबर है.’’ वे यह भी कहते हैं कि किसानों को पानी के इस्तेमाल को लेकर शिक्षित करने की दरकार है. पिछले 42 साल से चीनी मिलों का कामकाज संभाल रहे थोंबरे कहते हैं, ''गन्ने की खेती कम पानी में भी की जा सकती है. मगर किसान इसे गैर-जरूरी पानी दे रहे हैं.’’
जल संरक्षण कार्यकर्ता अमोल गोवांडे कहते हैं कि किसान गन्ना इसलिए उगाते हैं क्योंकि यह नकदी फसल है. कोई भी दूसरी फसल प्रति एकड़ 1 लाख रु. का मुनाफा नहीं देती. इस साल लातूर की चीनी मिलों ने किसानों को गन्ने का 2,200 रु. प्रति टन दाम चुकाया है जबकि सोयाबीन का उन्हें 2,800 रुपए प्रति टन दाम मिला.
गन्ने की प्रति एकड़ पैदावार सोयाबीन के मुकाबले बहुत ज्यादा है, इसीलिए मुनाफा भी ज्यादा है. गोवांडे कहते हैं, ‘‘अगर आप उन्हें आमदनी की गारंटी दें, तो किसान पक्के तौर पर गन्ने की खेती से मुंह मोड़ लेंगे.’’ वे सुझाव देते हैं कि चीनी मिलों को ऐसे कदम उठाने चाहिए जिनसे किसान ड्रिप ङ्क्षसचाई के लिए प्रोत्साहित हों.
देउलगांवकर लातूर में बोरवेल की अंधाधुंध खुदाई की तरफ भी ध्यान दिलाते हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 5,00,000 की आबादी वाले शहर लातूर में करीब 50,000 बोरवेल हैं. अहमदपुर के एक किसान हरीशचंद्र यर्गे ने अपने खेत में 63 बोरवेल खोदे हैं जिनमें से 57 अब सूख चुके हैं.
बाकी छह में बिल्कुल थोड़ा पानी आता है. यर्गे कहते हैं, ‘‘मैंने पानी की तलाश में ऐसा किया. अब मैं किसी को बोरवेल लगाने की सलाह नहीं दूंगा.’’ देउलगांवकर कहते हैं कि यर्गे का मामला इसकी अहम मिसाल है कि इस इलाके के किसान कितने नाजुक दौर से गुजर रहे हैं.
लातूर में चीनी मिलों की ज्यादा संक्चया की वजह सियासतदां भी हैं. 1986 तक इलाके में एक भी चीनी मिल नहीं थी. उस साल पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ने मांजरा शुगर मिल शुरू की. तब से यहां 11 चीनी मिलें लगाई जा चुकी हैं, बावजूद इसके कि पानी की जबरदस्त कमी है.
देशमुख के भाई दिलीप और उनके विधायक बेटे अमित का इनमें से चार पर सीधा नियंत्रण है. अमित की कंपनी को एक और चीनी मिल लगाने की इजाजत मिल गई है. इसका नाम 21 सेंचुरी शुगर मिल रखा गया है. पिछले महीने जब रजिस्ट्रेशन शुरू हुए तो पहले ही दिन 40,000 किसानों ने सदस्यता के फार्म भर दिए.
देशमुख परिवार के लिए चीनी मिलें वोटरों को लुभाने का औजार हैं. कोई किसान चीनी मिल का सदस्य बनता है तो उसका वोट भी तय हो जाता है क्योंकि मिल प्रबंधन ही उसकी फसल की किस्मत तय करता है. अमित देशमुख की अगुआई में कांग्रेस पिछले साल लातूर नगर निगम का चुनाव 25 साल में पहली बार भाजपा के हाथों हार गई थी. सो, अमित के लिए सितंबर 2019 में अगला विधानसभा चुनाव जीतना आसान नहीं होगा.
उनकी उक्वमीदें चीनी मिल सियासत पर टिकी हैं. कांग्रेस के एक सूत्र कहते हैं कि अमित लातूर ग्रामीण सीट से सबसे छोटे भाई धीरज को उतारना चाहते हैं. वे कहते हैं, ‘‘यह सीट गन्ना पट्टी में है. पांचवीं चीनी मिल उनकी किस्मत का फैसला करने वाली साबित हो सकती है.’’
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