
देश के सबसे बड़े सियासी सूबे उत्तर प्रदेश में सत्ता के सिंहासन पर 40 साल तक ब्राह्मणों का वर्चस्व कायम था. सूबे की राजनीति में वक्त बदला और सियासत बदली तो ब्राह्मणों का दबदबा भी कम ही नहीं हुआ बल्कि वे बल्कि हाशिए पर चले गए. ऐसे में ब्राह्मणों को उम्मीद थी कि जब भी सूबे में बीजेपी की सरकार आएगी तो उनका पुन:उद्धार होगा. लेकिन बीजेपी ने सीएम पद के लिए जैसे ही योगी आदित्यनाथ के नाम पर मुहर लगाई वैसे ही ब्राह्मण समाज के सारे अरमानों पर पानी फिर गया. ऐसे में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने महेंद्र पांडेय को सूबे में पार्टी की कमान सौपी है. शाह का ये ब्राह्मण कार्ड योगीराज से ब्राह्मणों की नाराजगी को दूर कर पाएगा.
यूपी में सबसे ज्यादा ब्राह्मण सीएम बने
सूबे में करीब 12 फीसदी ब्राह्मण मतदाता हैं, जो चार दशक तक सूबे की सियासत के बेताज बादशाह बनकर सत्ता पर काबिज रहे. अब तक के 21 मुख्यमंत्रियों में से सबसे अधिक 6 मुख्यमंत्री ब्राह्मण जाति से ही आए और ये सभी कांग्रेस पार्टी से बने थे. इसके बाद 5 ठाकुर, 5 पिछड़े, 3 वैश्य, 1 कायस्थ और एक दलित मुख्यमंत्री बना. अगर कुल कार्यकाल पर नजर डालें तो 23 साल तक प्रदेश की कमान ब्राह्मण मुख्यमंत्रियों के हाथ में रही.
बीजेपी ने कभी ब्राह्मण को नहीं बनाया सीएम
कांग्रेस के बाद यूपी का ब्राह्मण मतदाता बीजेपी के कोर वोटबैंक के तौर पर रहा है, लेकिन बीजेपी ने कभी भी किसी भी ब्राह्मण को सीएम नहीं बनाया. जबकि सूबे में बार बीजेपी की सरकार बनी. इसके बावजूद ब्राह्मण बीजेपी के संग लगा रहा. 2017 में जब प्रचंड बहुमत के साथ बीजेपी ने जीत का परचम लहराया तो ब्राह्मणों को फिर उम्मीद जागी कि कांग्रेस के दौर वाले दिन बहुरेंगें. लेकिन बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ के नाम पर सीएम के पद की मुहर लगाकर उनके अरमानों पर पानी फेर दिया.
सीएम योगी से ब्राह्मण बेचैन
राजपूत समाज से ताल्लुक रखने वाले योगी आदित्यनाथ को यूपी का सीएम बनाए जाने के बाद से सूबे का ब्राह्मण समाज बेचैन महसूस कर रहा था. सूबे में DGP सहित काफी जिलों में राजपूज समाज के जिला अधिकारी और पुलिस अधीक्षक बैठा दिए गए हैं. इतना ही नहीं सरकारी महाअधिवक्ता भी राजपूत समाज से बनाया गया है. योगी के सत्ता पर विराजमान होते ही पूर्वांचल के ब्राह्मण नेता माने जाने वाले हरिशंकर तिवारी के घर पुलिस ने छापेमारी की. ब्राह्मणों ने इसे योगी के इशारे पर कार्रवाई मानी. रायबरेली में 5 ब्राह्मणों की हत्या से ब्राह्मणों में बीजेपी के प्रति नाराजगी और भी बढ़ गई. इसीलिए ब्राह्मण अपने आपको ठगा हुआ महसूस करने लगा.
मोदी ने भी ब्राह्मणों को किया दरकिनार
दरअसल 2014 में जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी जीतकर केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई तो सूबे के ब्राह्मणों को लगा कि उनके समाज के मंत्रियों को अहम पद नवाजे जाएंगे. मोदी ने सूबे से ब्राह्मण चेहरे को तौर पर सिर्फ कलराज मिश्रा को अपनी कैबिनेट में शामिल किया, लेकिन उन्हें भी कोई खास मंत्रालय नहीं मिला. इसके बाद डॉ महेंद्र नाथ पांडेय को राज्यमंत्री बनाया. मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गज नेता भी हाशिए पर डाल दिए गए.
इस बार के कैबिनेट फेरबदल में कलराज मिश्रा और महेंद्र पांडेय की मंत्रालय से छुट्टी हो गई. हालांकि, महेंद्र पांडेय को यूपी बीजेपी की कमान सौंपा गया है.
महेंद्र पांडेय को ब्राह्मण अपना नेता कुबूल करेगा
बीजेपी ने सामंजस्य बैठाने के लिए महेंद्र पांडेय को यूपी बीजेपी का अध्यक्ष बनाया है, लेकिन जो ब्राह्मण समाज के नेता रहे हैं. इनमें नारायण दत्त तिवारी, श्रीपति मिश्रा, हेमनंदन बहुगुणा, कमलापति त्रिपाठी, हरिशंकर तिवारी, अटल बिहारी वाजपेयी और मुरली मनोहर जोशी कई कद्दावर नेता रहे हैं. इनके बराबर अपना वजूद कैसे कायम रख पाएंगे.
ब्राह्मणों की डेहरी है पूर्वांचल
पूर्वांचल ब्राह्मणों का गढ़ माना जाता है. पूर्वांचल में ब्राह्मण मतदाता 16 फीसदी से लेकर 23 फीसदी तक है. ऐसे में किसी भी सियासी खेल बनाने और बिगाड़ने का दमखम रखते हैं. ऐसे में महेंद्र पांडेय भी पूर्वांचल से आते हैं. वह गाजीपुर के पखनपुर गांव में जन्मे हैं, लेकिन वाराणसी में जाकर बस गए. फिलहाल चंदौली से लोकसभा सांसद हैं.
बीजेपी आलाकमान ने उन्हें सूबे में पार्टी की कमान सौप दी है, लेकिन सूबे भर में महेंद्र पांडेय की कोई खास पहचान नहीं रही है. जबकि बीएसपी में सतीश चंद्र मिश्रा और रामवीर उपाध्याय हैं तो वहीं कांग्रेस के पास प्रमोद तिवारी और जितिन प्रसाद हैं. तो वहीं एसपी के पास कई ब्राह्मण चेहरे हैं. इन सबके बीच अपने आपको कैसे खड़ा कर पाएंगे और योगी सरकार से बढ़ती बेचैनी को वह कैसे दूर कर पाएंगे. ये कहने अभी मुश्किल हैं.