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बात 16 मई की है. शंघाई में पोर्टमैन रिट्ज कार्लटन होटल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन के शीर्ष मुख्य कार्यकारी अधिकारियों के साथ बातचीत हुई थी, जिनका नेतृत्व अलीबाबा के संस्थापक जैक मा कर रहे थे. यह रचनात्मक विचारों से भरी बैठक थी, लेकिन बार-बार दोहराए जा रहे शब्द थे कि चीन में मजदूरी तेजी से बढ़ रही है. अर्थव्यवस्था सुस्त हो रही है. टेन्न्सटाइल महारथी ली ऐंड फंग लिमिटेड के चेयरमेन विलियम फंग ने सवाल किया कि क्या भारत इस शून्य को भरने में सक्षम होगा?
क्या भारत इस मौके का लाभ उठाने में सक्षम होगा? पिछले कई वर्षों से हमने ऐसी प्रणाली का निर्माण किया है, जो अत्यधिक जटिल है और जिसमें कारोबार करना मुश्किल है. हमारी प्रक्रियाएं लंबी हैं, कानूनों को समझना मुश्किल है, और ऐसे नियम हैं, जिनका पालन करना मुश्किल हो जाता है. हमने कागजी कार्रवाई, प्रक्रियाओं, नियमों, विनियमों और कानूनों पर आधारित ऐसी अर्थव्यवस्था का निर्माण किया है, जो दुनिया भर के उद्यमियों और कारोबारियों के लिए दु:स्वप्न बन गई है. अगर भारत को रोजगार सृजन करने वाला राष्ट्र बनना है, तो उसे व्यापार के लिए आसान और सरल राष्ट्र बनना ही होगा.
कारोबार के लिए तैयार
मेरे विचार से, इस सरकार की प्रमुख उपलब्धि है 'आराम से काम करने' वाले पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार करने पर पूरा ध्यान केंद्रित करना. व्यापार करने की सहजता की विश्व बैंक की रेटिंग में भारत वर्ष-दर-वर्ष फिसलता जा रहा है और इस समय भारत 142 वें स्थान पर है. भारत को विश्व बैंक की खातिर नहीं, बल्कि स्वयं अपनी खातिर सुधार की जरूरत है. बहुत सारा काम शुरू हो गया है, जिसमें आयात और निर्यात के लिए भरे जाने वाले फॉर्मों की संख्या क्रमश: 11 और 7 से घटाकर प्रत्येक के लिए मात्र 3 कर दी गई है, सारी मंजूरियां ऑनलाइन कर दी गई हैं, एक ई-बिज मंच तैयार किया गया है, जिससे भारत सरकार की 14 सेवाएं एकीकृत की गई हैं, और लगभग 60 फीसदी रक्षा आइटम लाइसेंस मुक्त कर दिए गए हैं. उद्देश्य यह है कि 2016 तक मात्र एक कागज और भुगतान का एक बिंदु होना चाहिए, जिस पर मिली रकम को फिर केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के बीच विभाजित किया जा सकता हो.
अब अधिकांश कार्रवाई राज्यों में होनी है. भारत तभी बेहतर बनेगा, जब राज्य बेहतर बनेंगे और मंजूरी को आसान बनाएंगे. विशिष्ट समयसीमा के साथ 98 बिंदुओं की कार्ययोजना तैयार की गई है और जो राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ साझा की गई है. जुलाई में, राज्यों का उनके प्रदर्शन के आधार पर मूल्यांकन किया जाएगा और सबसे खराब और सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों की घोषणा की जाएगी, जिससे एक प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा होगी, जो जमीनी स्तर पर परिवर्तन का वाहक बनेगी.
मेक इन इंडिया
इस सरकार की दूसरी प्रमुख विशेषता भारत को एक मैन्युफैक्चरिंग राष्ट्र बनाने के लिए इसकी प्रतिबद्धता है, जैसा इसकी 'मेक इन इंडिया' पहल से स्पष्ट होता है. मैन्युफैक्चरिंग में भारत की हिस्सेदारी मात्र 17 फीसदी है और दीर्घ अवधि में इसके कई गंभीर नतीजे होते हैं. भारत को अपनी विशाल आबादी को कृषि क्षेत्र में छिपी बेरोजगारी से बचाने की जरूरत है, दूसरी हरित क्रांति की शुरुआत करने की जरूरत है, और 2022 तक रोजगार के 10 करोड़ मौके पैदा करने के लिए बड़े पैमाने पर मैन्युफैक्चरिंग को तैयार करने की जरूरत है.
निजी क्षेत्र के साथ विस्तृत विचार-विमर्श के बाद तीन साल की कार्य योजना को अंतिम रूप दे दिया गया है और वह कार्यान्वित की जा रही है. उलटे शुल्क संरचना के मुद्दों को सुलझाया गया है और नवाचार, अनुसंधान और डिजाइन पर जोर दिया गया है.
मेक इन इंडिया संरक्षणवाद का मामला नहीं है. यह भारतीयों को उभारने और भारतीय कंपनियों को वैश्विक आपूर्ति शृंखला का अभिन्न अंग बनाने का मामला है. रेलवे, निर्माण, रक्षा, बीमा, पेंशन फंड और चिकित्सा उपकरण सभी को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोल दिया गया है. मल्टीब्रांड खुदरा क्षेत्र को छोड़कर, भारत आज दुनिया की सबसे खुली अर्थव्यवस्था है. मेक इन इंडिया की शुरुआत करने के बाद से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 56 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है.
श्रम के कष्ट
रोजगार में 84 फीसदी हिस्सा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्रों का है और इसका 69 फीसदी हिस्सा लघु उद्यमों का है. भारत के घिसेपिटे और कठोर श्रम कानूनों ने नौकरियों और यूनियनों की रक्षा की है, और रोजगारों का सृजन नहीं किया है. भारत के श्रम कानून दुनिया के सबसे खराब कानूनों में से हैं और उन्होंने वृद्धि को मंद किया है. सरकार ने कारखाना अधिनियम में, प्रशिक्षु अधिनियम और श्रम कानून (कुछ प्रतिष्ठानों को रजिस्टर अद्यतन रखने और रिटर्न प्रस्तुत करने से छूट) संशोधन पेश किए हैं. प्रशिक्षु अधिनियम में संशोधन के जरिए 500 नए व्यापारों को शामिल किया गया है, रात की पाली में महिलाओं के काम करने से प्रतिबंध हटाए गए हैं, और 40 से कम श्रमिकों को रोजगार देने वाली कंपनियों को कड़े श्रम नियमों का पालन करने से मुक्ति मिली है. कर्मचारी राज्य बीमा और कर्मचारी भविष्य निधि अनुपालन को अब उस क्षेत्र में ऑनलाइन कर दिया गया है, जहां अब तक सुधार करना वर्जित था.
बुनियादी युग
सबसे पहले बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को तुरंत शुरू करना अहम था. सरकार ने बुनियादी ढांचे पर खर्च करने के लिए 70,000 करोड़ रु. अतिरिक्त उपलब्ध कराए हैं. नेशनल इन्वेस्टमेंट ऐंड इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड को ट्रस्ट के रूप में स्थापित करना, ताकि विभिन्न रूपों में कर्ज के जरिए वित्तपोषण कराया जा सके और बदले में इसे इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस कंपनियों में इक्विटी के रूप में निवेश किया जा सके—एक प्रगतिशील कदम है. रियल एस्टेट और बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में निवेश के लिए धन को मोडऩे के लिए रियल एस्टेट निवेश ट्रस्ट और बुनियादी ढांचा निवेश ट्रस्ट पर टैक्स संबंधी मामलों पर स्पष्टीकरण सकारात्मक कदम हैं. दिल्ली-मुंबई औद्योगिक कॉरिडोर में पांच ग्रीनफील्ड शहरों को तुरंत शुरू किया गया है और राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाएं इंजीनियरिंग, खरीद और निर्माण के आधार पर आगे बढ़ी हैं. सरकार को यह पहल भी करने की जरूरत है कि सरकार के स्वामित्व वाली जो परियोजनाएं पूरी हो गई हैं और जोखिम मुक्त हो चुकी हैं, उन्हें संचालन और रखरखाव के लिए बाजार में उतार दिया जाए.
जगमग शहर
शहरी दृष्टिकोण वाली यह पहली सरकार है. 2050 तक भारत के शहरों में 70 करोड़ भारतीय रह रहे होंगे. विकास को बढ़ाने, विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचा बनाने और अभिनव, स्थायी शहरीकरण शुरू करने का यह अनूठा मौका है. 100 स्मार्ट शहर, औद्योगिक गलियारे और सागरमाला जैसी परियोजनाएं, और आने वाले वर्षों में उनका त्वरित क्रियान्वयन भारत को तीव्र विकास के पथ पर ले जाने के लिए अहम हैं. पिछले एक साल के दौरान, विकास का माहौल बनाया गया है, दिशा सही है. हमें सिर्फ विकास प्रक्रिया बनाए रखने और आने वाले वर्षों में गति प्रदान करने की जरूरत है.
(लेखक औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग के सचिव हैं. ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं)