
भारतीय शास्त्रीय और समकालीन नर्तक आकाश ओडेद्रा की नवीनतम प्रस्तुति हैः 'इकोज' (प्रतिध्वनियां). बर्मिघम में जन्मे और लीसेस्टर में रह रहे भारतीय मूल के 31 वर्षीय आकाश अंतरराष्ट्रीय फलक पर समकालीन नृत्य के तेजी से उभरते सितारे हैं. इस ताजातरीन प्रस्तुति में वे मंच पर खड़े होकर नांचाकुओं की तरह घुंघरुओं को घुमाते हैं, फिर फर्श पर चारों ओर बिखरी घुंघरू की लडिय़ों के बीच कथक पेश करते हैं. नृत्य में इस परिकल्पना पर, खासकर भारत की शास्त्रीय नृत्य बिरादरी में हो-हल्ला मच सकता है. घुंघरुओं को आखिर कोई सहायक वस्तु या साधन नहीं, बल्कि इतना पवित्र माना जाता है कि हर अभ्यास और प्रस्तुति से पहले नर्तक इनकी पूजा करते हैं. परंपरावादियों के लिए यह उसकी पवित्रता का अनादर है.
इस नृत्य प्रस्तुति की कोरियोग्राफर और कथक नृत्यांगना अदिति मंगलदास की भी अपने घुंघरुओं के प्रति ऐसी ही भावनाएं हैं. लेकिन वे दर्शकों से वाह-वाह करवाना और उग्र प्रतिक्रियाओं से निबटना भी जानती हैं. उनकी नृत्य प्रस्तुतियों ने कइयों का दिल जीता है और उनमें कई विदेशी कद्रदान भी हैं. वैसे उनके कुछ आलोचक भी हैं जो भारत तक सीमित हैं और उनकी प्रस्तुतियों को परंपरा से भटका हुआ मानते हैं. मंगलदास में एक बगावती तेवर है, जिसके चलते उन्होंने 2012 में अपनी 'सृजनात्म/समकालीन'
कृति के लिए मिला संगीत नाटक अकादमी अवार्ड ठुकरा दिया था. इसे वे तभी स्वीकार करतीं जब उसे कथक के लिए दिया जाता. अदिति को पता है कि 'इकोज' को लेकर कैसा बावेला मच सकता है, पर उनके लिए घुंघरुओं का मतलब उस चीज से कहीं ज्यादा है जिसे वे दिल की गहराइयों से प्यार करती हैं. अहमदाबाद में 5 साल की उम्र से कथक शुरू करने वालीं 55 वर्षीया मंगलदास कहती हैं, ''घुंघरू मेरे हर पल के साथी रहे हैं. उनसे आपको कितना भी गहरा लगाव क्यों न रहा हो, आपको छोडऩा ही पड़ता है, जैसे आपको अपने अंधविश्वास छोडऩे पड़ते हैं. घुंघरू आपकी लय और आपकी जिंदगी की गूंज होते हैं.'' वे आगे बताती हैं कि 'इकोज' में घुंघरू डीएनए के अणुओं के प्रतीक हैं जो शुरू में नर्तक को घेरे रहते हैं और आखिरकार उसे आगोश में ले लेते हैं. 35 मिनट की इस नृत्य प्रस्तुति के खत्म होने पर घुंघरू ओडेद्रा के पैरों में बंधे होते हैं.
दिल्ली के सैनिक फाम्र्स में अपने शानदार घर में दीवान पर बैठीं मंगलदास और ओडेद्रा में इतनी साझा खूबियां हैं कि दोनों को मिलकर काम करने में कोई दिक्कत पेश नहीं आई. दोनों ने ही प्रख्यात कथक कोरियोग्राफर और गुरु कुमुदिनी लखिया से नृत्य सीखा है. एक और महान गुरु पंडित बिरजू महाराज से शिक्षा लेने के लिए मंगलदास बाद में दिल्ली आ गईं. उधर ओडेद्रा अपने कथक गुरुओं में नीलिमा देवी और आशा जोगलेकर को भी गिनते हैं. इनके अलावा उन्होंने भरतनाट्यम नृत्यांगना चित्रलेखा बोलार और छाया खानवटे और जैज विशेषज्ञ शामक डावर से भी सीखा. दोनों गुजराती हैं और अपने काम से अंतरराष्ट्रीय फलक पर अपनी बिरादरी की शान बन गए हैं. सबसे अहम कि दोनों ही कथक को समकालीन वक्त के मुताबिक विकसित करने में भरोसा करते हैं. ओडेद्रा कहते हैं, ''कथक अब मंदिरों और दरबारों में नहीं होता है. (दर्शकों में) अब महाराजा नहीं बैठे होते. यह समकालीन मंच पर आ गया है. मकसद यह है कि जो पहले से मौजूद है, उसे उठाएं और ज्यादा प्रासंगिक बनाकर पेश करें.'' ओडेद्रा को 2014 में उनकी नृत्य कृति 'गेट ऑन द फुट' में शानदार काम के लिए प्रतिष्ठित बेसी डांस प्राइज मिल चुका है.
दुबले-पतले, फुर्तीले एकल नर्तक ओडेद्रा भारतीय शास्त्रीय नृत्य और समकालीन नृत्य, दोनों की लय के बीच आसानी से उड़ान भरते हैं. उनमें मंगलदास को ऐसा कैनवस मिला जो किसी भी कलाकार का ख्वाब होता है. वे मंगलदास की मूवमेंट के खजाने के लिए ही गढ़े गए लगते हैं, जो इतना गतिशील है कि नर्तक को शारीरिक तौर पर खासकर, लगातार पानी की तरह घुमावदार मुद्राओं में बहने और पैरों की तीव्र गति के लिए मजबूर कर देता है. लयबद्ध कलाकारी, साफ-सुथरी दैहिक रेखाओं और निर्मितियों पर जोर देता है और मंगलदास ने धीरे-धीरे अपनी प्रस्तुति के मानकों को इतना ऊंचा उठा दिया कि अपनी नफीस प्रकाश अभिकल्पना और मंचस्थल के निपुण इस्तेमाल से अपनी समूह कोरियोग्राफी का उन्होंने लोहा मनवा लिया. यही वजह थी कि ओडेद्रा ने उनसे अपने ऊपर एक प्रस्तुति को कोरियोग्राफ करने की गुजारिश की. लेकिन वे बताते हैं कि साथ काम करने में उन्हें कुछ साल लग गए.
'इकोज' पहली प्रस्तुति है जिसे मंगलदास ने अदिति मंगलदास डांस कंपनी के बाहर कोरियोग्राफ किया है या ऐसे शख्स के लिए तैयार किया है जो उनका शिष्य नहीं है. वे कहती हैं, ''यह देखना बहुत चुनौतीपूर्ण और दिलचस्प था कि क्या हो सकता है और यह कितनी दूर तक जा सकता है.'' बात 2014 में तब बनी जब ओडेद्रा ने मंगलदास को जाने-माने रिहर्सल डायरेक्टर जोस अगुडो और दो अन्य प्रतिभाशाली नर्तकों के साथ एक समकालीन नृत्य कार्यशाला में आने का न्योता दिया. अपनी सात साल की जान-पहचान में मंगलदास ओडेद्रा की 'भावनात्मक अक्लमंदी' से भी प्रभावित थीं. उनसे कहा गया था कि 'लय, गति, विचार और संगीत का एक-एक टुकड़ा नकल या तर्जुमा होने की बजाए पूरी तरह बदला हुआ या रूपांतरित हो्य और इसे उन्होंने पूरा का पूरा निभाया.
ओडेद्रा और मंगलदास दोनों ने अपने व्यस्त कार्यक्रमों में हेरफेर करके 13 दिनों का वक्त निकाला और मंगलदास के घर से कुछेक मिनट की दूरी पर स्थित उनके रिहर्सल स्टुडियो में यह प्रस्तुति तैयार की. इतने कम वक्त में इसे तैयार करना बड़ी चुनौती थी, पर मंगलदास अब जोश से भरी हैं कि 'इकोज' ने किस तरह उन्हें अपने काम को दूर-दूर तक पहुंचाने का मौका दिया. साथ ही 'भारतीय नृत्य को जिस तरीके से गैर-हिंदुस्तानी और दक्षिण एशियाई दर्शकों में पेश किया और देखा जाता है, उसकी अदृश्य दीवारों को तोडऩे' में भी सफलता दिलाई. ओडेद्रा ने भी इसी दूरदृष्टि के साथ तेज कामयाबी हासिल की. 2011 में अपनी कंपनी कायम करने के बाद से ही वे वाहवाही बटोरते आ रहे हैं.
ओडेद्रा लीसेस्टर में कथक और बर्मिघम में भरतनाट्यम शुरू करने के बाद 2002 से 2004 के बीच मुंबई आ गए ताकि खुद को पूरी तरह नृत्य में झोंक सकें. वह शामक के इंडो-जैज और बॉलीवुड डांस से लेकर कथक और भरतनाट्यम के बीच टप्पे खाते रहे. ब्रिटेन लौटने के बाद एक कार्यशाला में लखिया की नजर उन पर पड़ी और 2009 में लंदन के सैडलर वेल्स में हुए उनके एकल नृत्य ने कोरियोग्राफर अकरम खान को रिझा लिया. खान ने उनसे कहा, ''मैं तुम्हारे भीतर खुद को देखता हूं.'' और उन्होंने समकालीन नृत्य में अपना हाथ आजमाने के लिए ओडेद्रा पर जोर डाला. उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने खान, रसेल मैलिफेंट, सिडि लार्बी चरकोवी और डैमिएन जैलेट जैसे प्रतिष्ठित समकालीन कोरियोग्राफर के विजन को नफासत के साथ जमीन पर उतारने के लिए अच्छा-खासा नाम कमाया है.
ओडेद्रा की पहली प्रस्तुति 'ईजिंग' (2011) के भारत सहित दुनिया भर में 100 से ज्यादा शो हो चुके हैं. मंगलदास के साथ काम करना ओडेड्रा का अनजाने और बेआराम रास्तों की खोज की दिशा में ही एक और कदम है. वे कहते हैं, ''खुद को पाने के लिए खुद को खोना जरूरी है. अगर आपका तालाब ही आपकी दुनिया बन जाए तो तरक्की रुक जाती है.'' वे कहते हैं कि मंगलदास के साथ काम करना एक मुरीद का अपने ईष्ट के साथ काम करने जैसा है. कभी मंगलदास की कंपनी से जुडऩे की तमन्ना रखने वाले ओडेद्रा कहते हैं, ''मैं उनके काम को खुद उनसे बेहतर जानता हूं. मैं उनकी क्लिप्स एक के बाद एक प्ले करता रहता हूं.''
'इकोज' का प्रीमियर होने में अब महज महीना भर बाकी है और अगले साल इसे भारत लाने की योजना भी तैयार है. भारत में सिर्फ मंगलदास ही इस प्रस्तुति से नहीं जुड़ी हैं. जाने-माने दंपती शुभा मुद्गल और अनीश प्रधान ने इसका संगीत रचा है. अहमदाबाद के दिग्विजय सिंह ने कॉस्ट्यूम डिजाइन किया है. यह दर्शकों के दिलों के तार छेड़ पाएगा या नहीं, 'इकोज' से मंगलदास ने यह तो साबित कर ही दिया है कि वे अनजानी गहराइयों में उतरने से घबराती नहीं हैं. आखिर 55 की उम्र में वे खुद को नए सिरे से खोजने के लिए इतनी बेताब जो हैं.