
पहाड़ों के हरे और ताजे मटर की मिठास फीकी नहीं होगी. मंडियों में अब हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण इलाकों से हरी-भरी सब्जियां भी रंग बिखेरती रहेंगी. ऐसा इसलिए क्योंकि कुछ वर्षों से लोगों ने जिन सब्जियों को बोना बंद कर दिया था, अब उन्हें दोबारा उगाना शुरू कर दिया है.
जिया लाल का परिवार ऐसे ही लोगों में शामिल है. जिया लाल के दस सदस्यीय परिवार में अधिकांश महिलाएं हैं. यह परिवार राजधानी शिमला से करीब 22 किलोमीटर दूर मशोबरा के नया गांव में बसा है.
यहां सीढ़ीनुमा खेतों पर ये लोग पुश्तों से सब्जियां उगाते और बाजार में बेचकर रोजी-रोटी कमाते थे. लेकिन पिछले चार बरस से जंगली सूअर और बंदर उनकी फसल को चट कर रहे थे और खेती नुक्सान का सौदा बन गई थी.
मजबूरी में इस परिवार ने फसल लगाना बंद कर दिया. न फ्रांसबीन उगती, न ही मटर और टमाटर. लेकिन इस वर्ष जिया लाल ने खेतों में सोलर (फेंस) बाड़ लगाई जिससे जानवरों का खेत में घुसना बंद हो गया.
दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से जंगली जानवरों की वजह से किसानों को काफी नुक्सान हो रहा था. कृषि व बागबानी विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश में 1.56 लाख हेक्टेयर फसल बंदरों, लंगूरों और सूअरों से नष्ट हो रही है.
राज्य में कृषि के संयुक्त सचिव नरेश ठाकुर कहते हैं, "इससे किसानों को सालाना 229 करोड़ रु. का नुक्सान था. शिमला, कुल्लू और सोलन में तो कुल उपज का 89 प्रतिशत नुक्सान हो रहा था.''
राज्य में बंदरों की संख्या काफी बढ़ गई है. हिमाचल प्रदेश वन्य विभाग के वन्य प्राणी वैज्ञानिक डॉ. संदीप कहते हैं, "प्रदेश में बंदरों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है. सरकार के मुताबिक, 2004 की गणना में राज्य में 3,17,112 बंदर थे. वैसे कागजों में यह बताया गया कि नसबंदी से यह आंकड़ा कम हुआ है, पर गैर सरकारी संस्थाएं बंदरों की संख्या बढ़ने का दावा करती हैं.''
यह दावा बेजा नहीं है क्योंकि किसानों ने बंदरों और सूअरों से परेशान होकर सरकार से मदद की गुहार लगाई. खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर बताते हैं, "हमारे पास लोग फसलों को जानवरों द्वारा खत्म करने की समस्या को लेकर आए.
मैं खुद भी कृषक-बागबान हूं. बंदरों को लोग धार्मिक आस्था के कारण मारते नहीं हैं. उनकी यह समस्या गहरी थी. हमारा कृषि उत्पाद घटने लग गया था.'' मुख्यमंत्री किसानों को किसी तरह राहत पहुंचाना चाहते थे.
इसीलिए इस बार खेत संरक्षण योजना में 35 करोड़ रु. का प्रावधान सिर्फ सोलर फेंसिंग के लिए रखा गया. वे बताते हैं, "अभी किसानों का रेस्पांस देख रहे हैं. जरूरत पड़ी तो बजट और बढ़ाया जा सकता है. किसान अब सोलर बाड़ के साथ ही जैविक खेती की सब्जियों को उगाकर आजीविका बढ़ा सकेंगे.''
फेंसिंग के लिए सरकार पहले से कुछ सब्सिडी दे रही थी लेकिन किसानों को वह आकर्षक नहीं लग रहा था. कृषि विभाग में इस मामले के विशेषज्ञ के.के. सिंह का कहना है, "हमारे यहां तब लोगों ने इसमें रुचि नहीं दिखाई जब खर्च 60 और 40 के अनुपात में दिया जा रहा था. लेकिन 80 प्रतिशत सब्सिडी के बाद तो तुरंत लोगों ने इसे लगाना शुरू कर दिया.''
जंगली जानवरों से फसल को बचाने के लिए कई पारंपरिक तरीके अपनाए गए. लेकिन संरक्षण के सभी प्रयास असफल हुए तब सोलर बाड़ को एक अच्छे विकल्प के रूप में देखा गया. फसल सुरक्षा के लिए सौर संचालित बाड़ को पल्सिंग के साथ विद्युतकृत किया गया है, जिससे बाड़ को छूने वाले जानवर को एक बिजली का झटका लगता है.
कांटेदार तारें लगाने के पारंपरिक तरीके से अलग इसमें सीधी तारें लगती हैं और जो जानवर इसे छूता है, वह एक बार झटका खाने के बाद मनोवैज्ञानिक तौर पर हमेशा के लिए दूरी बना लेता है और दोबारा नहीं आता.
इसमें 12 वॉट का करंट लगता है जो किसी के लिए नुक्सानदेह नहीं है. न ही मानव के लिए, न ही जानवर के लिए. बस एक झटका लगता है और सायरन बजता है.
राज्य के किसान तीन तरह की बिजली की बाड़ लगा रहे हैः इलेक्ट्रिक ग्रिड संचालित, बैटरी संचालित और सौर संचालित.
ये सभी बाड़ करंट को सुरक्षित रूप में बदलने के लिए इलेक्ट्रिक बाड़-चार्जर पर निर्भर करती हैं.
नियमित इलेक्ट्रिक संचालित बाड़ में एक एनर्जाइजर, बाड़ निगरानी उपकरण इंसुलेशन सामग्री, खंभा (एक दूसरे से 5 मीटर की औसत दूरी और जमीन से 1.50 मीटर से 2.10 मीटर ऊंचाई पर) और पांच से नौ लाइनों की तार शामिल हैं.
खंभे आरसीसी या लकड़ी के हो सकते हैं. दूसरा, सौर इलेक्ट्रिक संचालित बाड़ है. इसमें एक एनर्जाइजर, सौर पैनल, बैटरी, बाड़ निगरानी उपकरण, इंसुलेशन सामग्री, खंभा (एक दूसरे से 5 मीटर की औसत दूरी और जमीन के स्तर से 1.5 मीटर से 2.10 मीटर ऊंचाई पर) और क्षैतिज तार की पांच से नौ लाइनें शामिल हैं.
जिया लाल ने सौर इलेक्ट्रिक संचालित बाड़ लगाई है. ज्यूं ही आधी रात को सूअर खेतों में घुसते हैं तब तार से टकराते ही जोर-जोर से सायरन बजता है. लेकिन जिया लाल की बहू ललिता को उठना नहीं पड़ता क्योंकि सुअर करंट से भाग चुके होते हैं.
ललिता कहती हैं, "सुअर ही नहीं अब बंदर भी सोलर बाड़ में आने का साहस नहीं करते. उन्हें करंट लगता है तो दोबारा नहीं आते. अब पहरेदारी का झंझट खत्म हो गया है.'' इस वर्ष अब तक यह परिवार 85,000 रु. की सब्जियां बेच चुका है और हरे मटर से बढिय़ा कमाई की उम्मीद है.
दरअसल, नया गांव के लोग ब्लॉक मशोबरा में कृषि विभाग द्वारा आयोजित एक कार्यशाला में गए तो वहां पता चला कि हिमाचल प्रदेश में भाजपा की जयराम सरकार ने इस बार के बजट में योजना बनाई है कि किसानों व बागबानों की फसलों को बचाने के लिए "सोलर फेंसिंग'' यानी बिजली से चार्ज होने वाली बैटरी से ऐसी बाड़ लगेगी जिसमें 80 फीसद खर्चा राज्य सरकार देगी और 20 प्रतिशत किसान देगा.
और फिर अगर तीन किसान इसे मिलकर लगाते हैं तो बाड़ लगाने का 85 फीसदी खर्च सरकार देगी और केवल 15 प्रतिशत हिस्सा किसान को देना होगा. तब यहां के लोगों ने विभाग से तरकीब जानी और झट से कागज विभाग को देकर काम शुरू करवा दिया.
इस परिवार ने खेतों में 570 मीटर तार लगाई. नया गांव की डोलू देवी कहती हैं कि 8-10 साल से बहुत जानवर आ रहे थे. सुअर तो पौधे की जड़ों से बीज तक निकाल कर खा जाते थे.
गांव के पांच परिवारों ने ततीमा-पर्चा जमा करवा दिया और अब इस बार तो कम से कम छह महीने का राशन पैदा होगा. पास ही की सब्जी मंडी में खीरा, मूली, मटर, टमाटर बिक रहे हैं जो सीधे दिल्ली की मंडी में जाते हैं.
जिया लाल की तरह सोलन, शिमला व कुल्लू में अधिकतर किसानों ने इसे लगाया है. पहाड़ी खेत होने के कारण सोलर बाड़ लाभदायक है. इसी तरह कुल्लू की प्रेमा देवी ने भी 30 बीघा भूमि पर यह बाड़ लगाई.
कीवी की हरियाली व टमाटर की लालिमा घर में बिखर गई है. वे कहती हैं कि बंदर पहले 50 प्रतिशत नुक्सान कर देते थे और लोग बंदरों को भगाने के लिए पटाखे ही फोड़ते रहते थे. अब जाकर मुक्ति मिली है.
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