दफ्तर के भीतर हों या बाहर मेनका गांधी हमेशा खबरों में बनी रहती हैं. लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री बनने के बाद उन्होंने जिस तरह अपने दायरे को बढ़ाया है उससे वे लोग भी हैरान हैं जो उनकी किसी भी अप्रत्याशित हरकत को सहज भाव से पचा लेते थे. दरअसल, उन्होंने अपने मंत्री पद के दायरे से आगे बढ़ते हुए पशु कल्याण पर आधिकारिक बैठक की अध्यक्षता कर डाली. यों तो इस विषय पर वे समर्पित भाव से लगातार काम करती रही हैं, लेकिन अब यह विषय पर्यावरण और वन मंत्री प्रकाश जावडेकर के हिस्से आता है. मेनका के हाथ में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की बागडोर है.
बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के गठन को अभी एक महीना भी नहीं हुआ और गांधी ने राष्ट्रीय रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम (एनआरसीपी) के तहत हरियाणा में आवारा कुत्तों की बड़े पैमाने पर नसबंदी और टीकाकरण के लिए एक शुरुआती कार्यक्रम पर अमल के संबंध में 24 जून, 2014 को एक बैठक बुलाई और उसकी अध्यक्षता की. कार्यक्रम का आयोजन स्वास्थ्य और पर्यावरण मंत्रालयों ने मिलकर किया था. बैठक में वित्त संबंधी फैसले लिए गए जिसके तहत एनआरसीपी के खर्च में 2.5 करोड़ रु. की बढ़ोतरी की गई है.
बैठक में शामिल होने वाले लोगों में स्वास्थ्य और पर्यावरण मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारी, नेशनल एनिमल वेलफेयर बोर्ड (एडब्ल्यूबीआइ) के अध्यक्ष मेजर जनरल (रिटायर्ड) आर. एम. खार्ब और राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) के निदेशक डॉ. बी.एल. चौहान थे. दिलचस्प है कि स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने इस बैठक में हिस्सा नहीं लिया. महिला और बाल विकास मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक पशु कल्याण कार्यक्रम और रेबीज नियंत्रण ‘‘स्वीकृत विषयों’’ में से नहीं हैं.
इंडिया टुडे ने इस संबंध में जब गांधी से बात की तो उन्होंने कहा कि यह एक अनौपचारिक बैठक थी जिसमें एक ‘‘जागरूक नागरिक’’ और सांसद के तौर पर वे जानना चाहती थीं कि इस पायलट कार्यक्रम को क्यों रोक दिया गया है. ‘‘मैं कुछ समय से इस कार्यक्रम से जुड़ी हुई हूं और यह जानना चाहती थी कि इसे अब तक शुरू क्यों नहीं किया गया?’’ वे बताती हैं, ‘‘मैंने बैठक की अध्यक्षता नहीं की. यह सब अनौपचारिक था. मैं पीलीभीत के सांसद के रूप में रस्मी तौर वहां गई थी. मैं रेबीज के मुद्दे को लेकर चिंतित हूं और इसलिए इस कार्यक्रम से जुड़ी हूं. मैं इसे अखिल भारतीय स्तर तक ले जाना चाहती हूं.’’
इस बैठक से संबंधित दस्तावेज साफ बताते हैं कि हरियाणा राज्य में राष्ट्रीय रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम (एनआरसीपी) के अमल के संबंध में महिला और बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी की अध्यक्षता में 24 जून, 2014 को शास्त्री भवन में आयोजित बैठक में विचार किया गया और उन्होंने ‘‘हरियाणा में एनआरसीपी के पशुओं से संबंधित कार्य की प्रगति की समीक्षा की और राहुल सहगल (निदेशक, एशिया ह्यूमेन सोसाइटी इंटरनेशनल) से पूछा कि प्रगति धीमी क्यों है?’’
गांधी ने दावा किया है कि बैठक में कोई फैसला नहीं किया गया. जब उनसे कहा गया कि बैठक के ब्यौरे में खर्च में संशोधन के संबंध में किया गया फैसला साफ तौर पर दर्ज है तो उन्होंने कहा कि यह सिर्फ उनका नहीं, बल्कि बैठक में शामिल ‘‘सभी लोगों’’ का है.
उन्होंने जोर देकर कहा, ‘‘मैं बस इतना जानना चाहती थी कि कार्यक्रम अभी तक क्यों शुरू नहीं किया गया. एचएसआइ के राहुल सहगल ने कहा कि 650 रु. में यह (कुत्ता नसबंदी) करना मुमकिन नहीं और महाराष्ट्र में इस काम पर 1,200 रु. खर्च आता है. इसलिए सभी ने इसे संशोधित करने का निर्णय लिया. मुझे तो इसमें और कोई बात नहीं नजर आती?’’
24 जून की बैठक में महत्वपूर्ण फैसले किए गए-नसबंदी और टीकाकरण व्यय में संशोधन, एनसीडीसी को निर्देश कि एडब्ल्यूबीआइ के नए वाहन की खरीद की मनाही के पिछले निर्देशों में संशोधन करे और रेबीज पर जागरूकता पैदा करने के काम में आने वाले अतिरिक्त खर्च (कम-से-कम 1 करोड़ रु.) को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय उठाए. गांधी की बैठक के ब्यौरे में लिखा है कि यह फैसला किया गया कि ‘‘कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण में आने वाले खर्च की दर क्रमशः 650 रु. और 90 रु. की बजाए 700 रु. और 100 रु. होगी.’’
इस साल अप्रैल के शुरू में पर्यावरण मंत्रालय में एनआरसीपी पर आयोजित पिछली बैठक में एचएसआइ और वर्ल्ड वाइड वेटरिनरी सर्विसेज के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था जिसमें फैसला किया गया कि नसबंदी और टीकाकरण की दर प्रति कुत्ता क्रमशः 650 रु. और 90 रु. से अधिक नहीं होनी चाहिए. व्यय में संशोधन का अर्थ होगा 2.5 करोड़ रु. की अतिरिक्त राशि का भार, जबकि अनुमान है कि हरियाणा में सात लाख आवारा कुत्तों में से सिर्फ पांच लाख की नसबंदी कराई गई है. बैठक में आगे फैसला किया गया कि स्वास्थ्य मंत्रालय ‘‘कार्यक्रम को सफल बनाने’’ के लिए एचआइएस को हरेक जिले से अतिरिक्त गाडिय़ां/बुनियादी सुविधाएं/आवास उपलब्ध कराने के लिए हरियाणा सरकार को लिखेगा.
पर्यावरण और स्वास्थ्य मंत्रालय पहले इस पर सहमत थे कि पायलट कार्यक्रम में अगले तीन साल में 12वीं योजना के तहत हरियाणा में कुत्ते की आबादी के कम-से-कम 70 फीसदी कवर किए जाएं. एडब्ल्यूबीआइ ने इस वर्ष के कार्यक्रम में उन लोगों को शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था जो इस दिशा में काम करने के इच्छुक हैं. तीन संगठनों ने इच्छा जाहिर की थी. इनमें से केवल दो-एचएसआइ और वर्ल्ड वाइड वेटरिनरी सर्विसेज-ने प्रेजेंटेशन दी. जहां करीब 12 साल पहले सरकार ने नसबंदी दर 445 रु. पर तय की थी, वहीं कई निकायों ने कुत्तों की नसबंदी दरों में 700-1,200 रु. तक की बढ़ोतरी की है.
खबर है कि रेबीज नियंत्रण के अलावा गांधी पर्यावरण मंत्रालय के पशु कल्याण प्रभाग में भी गहरी रुचि ले रही हैं. शायद वे ऐसा आदतन कर जाती हैं. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान संस्कृति और कार्यक्रम क्रियान्वयन और सांख्यिकी मंत्रालयों का कार्यभार संभालते हुए उन्होंने इस डिविजन का जिम्मा भी उठा रखा था.
गांधी हरित मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय पशु कल्याण संस्थान की जिम्मेदारी एक मशहूर वाइल्ड लाइफ कार्यकर्ता को सौंपने की पैरवी कर रही हैं. केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को अपने नियमों के हवाले से बताना पड़ा था कि सभी को उचित मौका देने के लिहाज से एक्सप्रेशन ऑफ इंट्रेस्ट आमंत्रित करना होगा जिससे संबंधित व्यक्ति या एनजीओ को बराबर का मौका मिले. लेकिन महिला और बाल विकास मंत्री गांधी इस बात से इनकार करती हैं कि उन्होंने संस्थान पर किसी व्यक्ति विशेष के लिए दबाव डाला था.
मेनका गांधी की इस बैठक ने पहले से ही व्यवस्था और परंपराओं के पालन को लेकर घिरी मोदी सरकार के लिए एक नई मुसीबत खड़ी की है. वैसे एक नजरिया यह भी हो सकता है कि जहां बाकी मंत्रियों को एक-एक काम करने के लिए पीएमओ का मुंह ताकना पड़ता है, वहीं मेनका ऐसी मंत्री हैं जो अपने तो क्या बाकी मंत्रालयों के काम में भी आराम से दखल दे रही हैं.
बैठक की खबर ऐसे समय पर आ रही है जब सात बार की लोकसभा सांसद गांधी अपने राजनैतिक प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश करते हुए अपने बेटे लोकसभा सांसद वरुण गांधी के लिए एक मजबूत जमीन तैयार करने में लगी हैं. उन्होंने हाल ही में एक बयान देकर वरुण को बीजेपी की ओर से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रत्याशी के रूप में पेश करने के लिए दबाव बनाया है. वैसे फिलहाल इसमें देरी है.
इसी बीच वे ऐसे मुद्दों को उठा रही हैं जिन्हें भारी संख्या में लोगों का समर्थन मिलने की उम्मीद है-किशोर न्याय अधिनियम के तहत किशोर की उम्र सीमा को घटाकर 16 साल करना और घरेलू हिंसा विधेयक के तहत सास को भी शामिल करना. गांधी की इस तरह की सक्रियता दरअसल अपने पुराने रसूख को पाने की कोशिश जैसी लगती है. लेकिन देश के सबसे पुराने सियासी खानदान की परित्यक्त वारिस को यह समझना चाहिए कि नरेंद्र मोदी सरकार की तर्ज वाजपेयी सरकार से अलग है.