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मराठा आरक्षण बीजेपी के लिए गले की फांस, गुजरात की तरह अटकी सांस

फडणवीस सरकार चाहकर भी इसे अमलीजामा पहनाती है तो ओबीसी समुदाय की नाराजगी जहां उठानी पड़ेगी, वहीं बीजेपी शासित दूसरे राज्यों में भी इस तरह की मांग उठ सकती है. इसी के मद्देनजर पार्टी इस मामले पर पूरी तरह से खामोशी अख्तियार किए हुए है.

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कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 25 जुलाई 2018,
  • अपडेटेड 1:42 PM IST

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन देवेंद्र फडणवीस की सरकार के गले की फांस बन गया है. अगले साल होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में उठी मराठा आरक्षण की मांग ने बीजेपी के लिए भी मुसीबत खड़ी कर दी है. फडणवीस सरकार चाहकर भी इसे अमलीजामा पहनाती है तो ओबीसी समुदाय की नाराजगी जहां उठानी पड़ेगी, वहीं बीजेपी शासित दूसरे राज्यों में भी इस तरह की मांग उठ सकती है. इसी के मद्देनजर पार्टी इस मामले पर पूरी तरह से खामोशी अख्तियार किए हुए है.

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बता दें कि पिछले काफी समय से मराठा समाज शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 16 फीसदी आरक्षण की मांग कर रहा है. राज्य सरकार ने हाल ही में 72 हजार पदों पर बहाली का विज्ञापन निकाला है, जिनमें मराठा समुदाय अपने लिए आरक्षण की मांग को लेकर सड़क पर उतरकर आंदोलन कर रहा है.

आंदोलन की कमान मराठा क्रांति मोर्चा ने संभाल रखी है. मुंबई में नजर आ रहे बैनर और पोस्टर मराठा क्रांति मोर्चा द्वारा ही लगाए गए हैं. इनमें साफ तौर पर लिखा है कि गुजरात में बीजेपी सेन्चुरी पूरी नहीं कर पाई. इशारा साफ है, अगर महाराष्ट्र में मराठों को आरक्षण नहीं दिया गया तो अगले चुनाव में राज्य में 50 का आंकड़ा भी क्रॉस नहीं होगा. वर्तमान में बीजेपी के पास राज्य की कुल 288 सीटों में से 122 सीटें हैं.

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मराठा आरक्षण आंदोलन की चेतावनी का मतलब साफ है कि फडणवीस सरकार अगर इनकी मांगों को पूरा नहीं करती है तो आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ वोटिंग हो सकती है. राज्य में मराठों की आबादी 28 से 33 फीसदी है. महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से 20 से 22 सीटें और विधानसभा की 288 सीटों में से 80 से 85 सीटों पर मराठा वोट निर्णायक माना जाता है.

हालांकि बीजेपी इस बात को बाखूबी समझती है कि मराठा उसके परंपरागत वोटर नहीं हैं. मराठाओं की पहली पसंद एनसीपी है, उसके बाद शिवसेना और तीसरे नंबर पर कांग्रेस आती है. जबकि बीजेपी का मूल वोट ओबीसी समुदाय है. ऐसे में फडणवीस सरकार मराठा आरक्षण की मांग को मानकर ओबीसी समुदाय को नाराज नहीं करना चाहती है. क्योंकि अगर मराठाओं को आरक्षण दिया गया तो उन्हें ओबीसी कोटे से ही देना पड़ेगा. राज्य की आबादी में ओबीसी 52 फीसदी है.

फडणवीस सरकार के लिए मुश्किल है कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से निर्धारित पचास फीसदी से अलग कैसे आरक्षण दे. ऐसे में अगर सरकार ने ओबीसी के लिए तय 27 फीसदी कोटे में ही मराठों को शामिल किया, तो राज्य में एक अलग ओबीसी आंदोलन शुरू हो जाएगा. ओबीसी समुदाय आरक्षण में किसी तरह के बदलाव के खिलाफ है. ऐसे में राजनीतिक तौर पर मराठों के साथ पूरी तरह खड़ा होना बीजेपी को अपने लिए मुफीद नहीं दिखता है. ये बिल्कुल ऐसी ही स्थिति है जैसी गुजरात में पटेल आरक्षण की मांग पर बीजेपी की थी, वहां भी पटेल बनाम ओबीसी के चक्कर में बीजेपी फंस गई थी.

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गौरतलब है कि महाराष्ट्र में पिछली कांग्रेस सरकार ने मराठों को आरक्षण से जुड़ा बिल विधानसभा में पास कर दिया था, लेकिन कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी. कोर्ट ने पिछडा वर्ग आयोग से मराठा समाज की आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर रिपोर्ट मांगी थी.

पिछले साल भी मराठा समुदाय आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन के लिए सड़क पर उतरा था. इसके बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सीधे तौर पर आरक्षण की मांग को तो नहीं माना, लेकिन उस दिशा में आगे बढ़ने को लेकर अहम कदम उठाने की बात कही थी.

सीएम फडणवीस ने विधानसभा में कहा कि मराठा आरक्षण की मांग को पिछड़ा वर्ग आयोग को रेफर कर दिया गया है, जो मराठाओं को आरक्षण देने के आधार और संभावनाओं का अध्ययन करेगा. हालांकि अभी तक कमीशन ने अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपी है. आरक्षण की मांग को लेकर एनसीपी और कांग्रेस खुलकर मराठाओं के साथ हैं. शिवसेना पर्दे के पीछे आंदोलन के साथ है. जबकि बीजेपी के लिए ये गले की फांस है.

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