
मेरिटल रेप को लेकर लगाई गई याचिका पर सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट में कहा कि आईपीसी की धारा 498ए में मेरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में रखा गया है. इस धारा के तहत पति के पत्नी के साथ किए गए बुरे व्यवहार पर सजा का प्रावधान है जिसके चलते महिला को शारीरिक व मानिसक हानि हुई हो.
दिल्ली सरकार की वकील ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि पर्सनल लॉ और घरेलू हिंसा अधिनियम मैरिटल रेप को क्रूरता मानते हुए तालाक का आधार माना हैं. वकील ने ये भी कहा कि कोर्ट अब इसमें कोई नई सजा को जोड़ नहीं सकती, क्योंकि यह विधायिका का विशेषाधिकार है,जिसमें संशोधन भी विधायिका ही कर सकती है.
संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन व निजी स्वतंत्रता के अधिकार) के तहत महिला अपने पति को शारीरिक संबंध बनाने से इनकार कर सकती है. जबकि इससे पहले केंद्र सरकार ने मेरिटल रेप को अपराध की क्षेणी में रखने का विरोध करते हुए कहा था कि अगर ऐसा किया गया तो लोग इसका गलत इस्तेमाल करेंगे.
हाईकोर्ट में कई याचिका दायर कर कहा गया है कि आईपीसी के उस प्रावधान को खत्म किया जाए जिसमें 15 साल से ज्यादा उम्र की पत्नी के साथ पति द्वारा जबरन संबंध दुष्कर्म के दायरे में नहीं होगा. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि आईपीसी की धारा-375 में दुष्कर्म को परिभाषित किया गया है.
इसके तहत कुछ अपवाद है. इसके मुताबिक अगर लड़की की उम्र 15 साल से ज्यादा है और वह किसी की पत्नी है और उसके साथ उसका पति जबरन संबंध बनाता है तो वह रेप नहीं माना जाएगा. याचिकाकर्ता का कहना है कि यह अपवाद न सिर्फ संविधान के अनुच्छेद-14 बल्कि 21 का भी उल्लंघन करता है, जिसको सुधारने की जरूरत है.