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भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत पर जानें उनसे जुड़ी बातें

ऐसे समय में जब भारत माता की जय बोलने से राष्ट्रप्रेम मापा जा रहा हो. देश के भीतर ही देश तोड़ने के नारे लग रहे हों. ठीक वैसे ही समय में भगत सिंह की जरूरत शिद्दत से महसूस हो रही है.

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स्नेहा
  • नई दिल्ली,
  • 23 मार्च 2016,
  • अपडेटेड 1:14 PM IST

भारत के वीर सपूत क्रांतिकारी शहीद-ए-आजम भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव ने साल 1931 में आज ही के दिन देश की खातिर हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया था. भगत सिंह और उनके साथियों ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए 17 दिसंबर 1928 की तारीख में अंग्रेज पुलिस अधिकारी जेपी सांडर्स की हत्या कर दी थी.

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भगत सिंह और उनके साथियों का दस्तावेज के साथ-साथ उनके द्वारा लिखा गया लेख "मैं नास्तिक क्यों हूं?" आज भी भारत में सबसे अधिक पढ़े जाने वाले लेखों में से एक है.

सुखदेव, राजगुरु और भगत सिंह ने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन असोसिएशन नामक संस्था बना कर अंग्रेजों की नाकों में दम कर रखा था. सुखदेव उन दिनों लाहौर के नेशनल कॉलेज में पढ़ाने का भी काम किया करते थे.

राजगुरु आजादी की लड़ाई के दिनों में रघुनाथ के छद्म नाम से इधर-उधर घूमा करते थे. राजगुरु अव्वल दर्जे के निशानेबाज थे और सांडर्स को मारने में इन्होंने अहम भूमिका अदा की थी. जेल में अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए भगत सिंह और उनके साथियों ने 64 दिन की भूख हड़ताल की थी.

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा...

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इंकलाब जिंदाबाद...

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