
बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की प्रमुख मायावती ने सोमवार को लोकसभा में पार्टी के संसदीय दल के नेता को बदल दिया है. मायावती ने अमरोहा के सांसद कुंवर दानिश अली को हटाकर अंबेडकरनगर से सांसद रितेश पांडेय को लोकसभा में पार्टी नेता चुना है. पिछले सात महीने में बसपा प्रमुख ने चौथी बार अपनी पार्टी के संसदीय दल के नेता को बदला है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि मायावती बार-बार ऐसा कदम क्यों उठा रही हैं?
सपा के साथ मिलकर बसपा ने उत्तर प्रदेश की 10 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी. मायावती ने लोकसभा में बसपा के संसदीय दल के नेता के तौर पर कुंवर दानिश अली को चुना था, लेकिन पहले सत्र के बाद ही उनकी छुट्टी कर दी. 5 अगस्त, 2019 को मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के लिए कदम उठाया तो मायावती सरकार के फैसले के साथ थी जबकि दानिश अली इसके खिलाफ थे. ऐसे में मायावती ने दानिश अली को उनके पद से हटाकर जौनपुर के सांसद श्याम सिंह यादव को नेता सदन बना दिया था.
मायावती ने श्याम सिंह यादव को ऐसे समय में लोकसभा में पार्टी नेता बनाया था, जब उन्होंने सपा से गठबंधन तोड़ने का ऐलान किया था. बसपा प्रमुख ने श्याम सिंह के बहाने यादव समुदाय को साधने का दांव चला था, लेकिन उपचुनाव में जिस तरह से यादव समुदाय ने बसपा के बजाय सपा को ही तवज्जे दी. इतना ही नहीं श्याम सिंह यादव का दिल भी यादव समाज के लिए पिघलने लगा वो जौनपुर में सपा कार्यालय पहुंच गए और कहा था कि आप लोगों की वजह से ही जीता हूं और आपके बीच हमेशा आता रहूंगा. यही वजह थी कि मायावती ने श्याम सिंह यादव को संसदीय दल के नेता पद से हटाकर दानिश अली को फिर से जिम्मेदारी सौंप दी.
उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी की लगातार सक्रियता से मायावती चिंतित नजर आ रही हैं. ऐसे में बसपा प्रमुख ने अपने राजनीतिक समीकरण को दुरुस्त करने के लिए दानिश अली की छुट्टी कर रितेश पांडेय को संसदीय दल का नेता बनाया है. माना जा रहा है कि बसपा प्रमुख इस बदलाव के बहाने सूबे के ब्राह्मणों को साधने की कवायद की है.
मायावती ने ट्वीट कर कहा था कि सामाजिक सामंजस्य बनाने के लिए यह फैसला लिया है. बसपा में सामाजिक संतुलन बनाने को मद्देनजर रखते हुए लोकसभा में पार्टी के नेता व उत्तर प्रदेश के पार्टी अध्यक्ष भी, एक ही समुदाय के होने के नाते इसमें थोड़ा परिवर्तन किया गया है. लोकसभा बसपा नेता रितेश पाण्डे को और उपनेता मलूक नागर को बना दिया गया है.
मायावती ने कहा कि उत्तर प्रदेश विधानसभा में बसपा के नेता लालजी वर्मा, पिछड़े वर्ग से और विधान परिषद में बसपा के नेता दिनेश चन्द्रा, दलित वर्ग से बने रहेंगे. इसीलिए यहां कुछ नहीं बदलाव किया गया है. साथ ही कहा कि उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष मुनकाद अली अपने इसी पद पर बने रहेंगे. इस फैसले से साफ है कि मायावती ने जातीय और धार्मिक समीकरण को दुरुस्त करने के लिए यह फैसला लिया है.
दरअसल बसपा प्रमुख मायावती उत्तर प्रदेश में अपने मूल दलित वोटबैंक के अतरिक्त समुदायों के वोटबैंक को अपने पाले में लाने की लगातार कवायद कर रही हैं. यही वजह है कि पिछले सात महीनों में तीन समुदाय के नेताओं को संसदीय दल का नेता बनाकर एक राजनीतिक एक्सपेरिमेंट कर रही हैं. हालांकि, इनमें अभी तक वो कामयाब नहीं हो सकी हैं.
प्रियंका गांधी की सक्रियता से ब्राह्मण समुदाय के कांग्रेस में वापसी करने की संभावना दिख रही है. ऐसे में मायावती प्रियंका गांधी को भी निशाने पर ले रही हैं और अब ब्राह्मण समुदाय के रितेश पांडेय को सदन का नेता बनाने का फैसला किया है. माना जा रहा है कि इस दांव से मायावती ने एंटी बीजेपी ब्राह्मण वोटों को साधने की कवायद है. अब देखना है कि इस रणनीति से ब्राह्मण वोटरों का दिल मायावती के लिए पसीजता है या फिर नहीं?