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महागठबंधन में बिखराव दिखाने की चतुर चाल

कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि भाजपा विरोधी दलों के बीच बातचीत के दौरान यह मुद्दा भी आया कि कई राज्यों में कांग्रेस के साथ गठबंधन में जाने से वहां के स्थानीय दलों को अपने कोर वोट के कांग्रेस की तरफ खिसकने का खतरा महसूस हो रहा था. जैसे उत्तर प्रदेश. चूंकि यहां दलित वोट मायावती के साथ कांग्रेस के पास भी जाने की संभावना बनती है इसलिए बसपा की चिंता वाजिब थी.

मायवती मायवती
संध्या द्विवेदी/मंजीत ठाकुर
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  • 04 अक्टूबर 2018,
  • अपडेटेड 3:58 PM IST

सुजीत ठाकुर. नई दिल्ली. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमों मायावती ने ऐलान कर दिया कि मध्य प्रदेश और राजस्थान में उनकी पार्टी अपने दम पर चुनाव लड़ेगी. यह फैसला अनायस नहीं लिया गया बल्कि उस सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है जिसके तहत 2019 का चुनाव मोदी बनाम अन्य नहीं होने देने को भाजपा विरोधी दलों ने माकूल समझा था. इसकी पटकथा बंगलुरू में इसी साल मई महीने की 23 तारीख को एच.डी. कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह से पहले लिखी गई थी.

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जनता दल सेक्यूलर (जेडीएस), कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और समाजवादी पार्टी से मिली जानकारी के मुताबिक मायावती की तरफ से छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की जगह अजीत जोगी की पार्टी से गठबंधन का फैसला और उसके बाद राजस्थान तथा मध्य प्रदेश में अपने दम पर या इन राज्यों की छोटी पार्टियों के साथ चुनाव लड़ने का फैसला भाजपा विरोधी दलों की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है.

दरअसल, भाजपा विरोधी दल यह जानते हैं कि उनके पास प्रधानमंत्री पद का ऐसा चेहरा नहीं है जो नरेंद्र मोदी के विकल्प के रूप में पेश किया जा सके. मोदी भाजपा की सबसे बड़ी ताकत हैं इसलिए भाजपा भी यह चाह रही है कि 2019 का चुनाव मोदी बनाम अन्य हो. फिलहाल की सियासी गणित में एकजुट विपक्ष भाजपा के लिए सबसे मुफीद है.

इसके उलट भाजपा के लिए सबसे कठिन चुनौती बिखरा हुआ विपक्ष साबित हो सकता है क्योंकि कई राज्यों में स्थानीय पार्टियां भाजपा के मुकाबले काफी मजबूत स्थिति में हैं.

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मसलन पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, तमिलनाडु, ओडिशा. इन राज्यों में लोकसभा की कुल 164 सीटें हैं. भाजपा विरोधी दलों की पहली कोशिश है कि इन राज्यों में स्थानीय दलों के हाथों भाजपा को हार का सामना करना पड़े.

इन राज्यों के अलावा उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जहां से लोकसभा की कुल 134 सीटे हैं वहां के प्रमुख स्थानीय दलों के बीच गठबंधन हो यह भाजपा विरोधी दलों की रणनीति का प्रमुख हिस्सा है.

जैसे उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन में चुनाव लड़ें और कांग्रेस यहां अघोषित रूप से (बिना गठबंधन का हिस्सा हुए) टैक्टिकल एलांइस के साथ चुनाव लड़े.

बिहार और झारखंड के प्रमुख दलों राष्ट्रीय जनता दल और झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ कांग्रेस मिल कर चुनाव लड़े ताकि अधिक से अधिक सीटों पर भाजपा के लिए मुकाबला कठिन किया जा सके. इस तरह कुल 298 से 300 सीटों पर भाजपा को कठिन चुनौती मिले.

कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि भाजपा विरोधी दलों के बीच बातचीत के दौरान यह मुद्दा भी आया कि कई राज्यों में कांग्रेस के साथ गठबंधन में जाने से वहां के स्थानीय दलों को अपने कोर वोट के कांग्रेस की तरफ खिसकने का खतरा महसूस हो रहा था. जैसे उत्तर प्रदेश. चूंकि यहां दलित वोट मायावती के साथ कांग्रेस के पास भी जाने की संभावना बनती है इसलिए बसपा की चिंता वाजिब थी.

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इन आशंकाओं को दूर करने के लिए ही टैक्टिकल एलांइस का फैसला लिया गया. चूंकि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में दलितों के वोट को मायावती खोना नहीं चाहती हैं.

इसलिए इन राज्यों में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं होना बड़ी घटना नहीं बल्कि सोची-समझी रणनीति के तहत उठने वाला कदम है. कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख रणदीप सिंह सुरजेवाला कहते हैं कि, 'मायावती ने सोनियां और राहुल गांधी के खिलाफ कुछ नहीं बोला है, इन दोनों नेताओं की उन्होंने तारीफ ही की है.' समाजवादी पार्टी के एक महासचिव का कहना है कि, 'मायावती ने अखिलेश यादव के खिलाफ भी कुछ नहीं बोला है. जो लोग यह सोचकर खुश हैं कि 2019 में मोदी के लिए महागठबंधन नहीं होगा वह मुगालते में हैं. भाजपा को 2004 याद करना चाहिए.'

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