
राज्य सभा से इस्तीफा देने के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती अब संगठन के कील कांटे दुरुस्त करने जा रही हैं. इसी लिहाज से मायावती ने 23 जुलाई को पार्टी के नेताओं और कोऑर्डिनेटरों की बैठक बुलाई है. इसी बैठक में पार्टी अध्यक्ष मायावती अपनी भविष्य की रणनीति का ऐलान करेंगी. संसद के इसी मानसून सत्र में दलित अत्याचार के मुद्दे पर राज्यसभा में ना बोलने देने का आरोप लगाते हुए मायावती ने राज्यसभा से ही इस्तीफे दे दिया था.
बसपा के सभी सांसद और विधायक होंगे शामिल
मायावती की बुलाई इस बैठक में सभी संसद सदस्य, विधायक, कोऑर्डिनेटर और ज़िला अध्यक्ष शामिल होंगे. बैठक में मायावती के निशाने पर बीजेपी होगी. दलित अत्याचार के मुद्दे के ज़रिये मायावती की कोशिश दलित वोट बैंक को एकजुट रखने की है. इसके लिए मायावती ने बीजेपी राज में दलितों पर अत्याचार का मुद्दा प्रमुखता से उठने की रणनीति बनाई है. मायावती बीजेपी पर केंद्रीय एजेंसी सीबीआई का उनके और उनके परिवार के खिलाफ गलत इस्तेमाल का आरोप पहले ही लगा चुकी हैं. साथ ही माया अपनी राज्य सभा की सदस्यता की क़ुर्बानी बताकर भुनाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ेंगी.
बीजेपी के दलित वोट बैंक से बड़ी चुनौती
बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में मायावती के वोट बैंक पर बड़ी चोट की थी और मायावती की पार्टी सिफर पर आ गयी थी. ये सिलसिला विधानसभा चुनाव में और आगे बढ़ गया जब माया की बसपा 19 विधानसभा सीटों पर सिमट गई. यूपी से आने वाले कोविंद को राष्ट्रपति बनाकर भी मोदी ने यूपी के दलित वोट बैंक को साधने की एक और कोशिश की है. क़यास ये भी लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी का नया प्रदेश अध्यक्ष भी दलित वर्ग से बनाया जा सकता है. बीजेपी के इन सियासी क़दमों से निपटना मायावती के लिए बड़ी चुनौती है.
रणनीति के तहत दिया इस्तीफा
बीएसपी सूत्र बताते हैं कि 2018 में राज्यसभा का कार्यकाल ख़त्म हो जाने के बाद वापस सदन नहीं पहुंच पाने जैसी परिस्थिति ने मायावती को परेशान कर दिया था. मायावती खुद को नए सिरे से संघर्ष के लिए तैयार करना चाहती हैं, वो भी समय रहते. मायावती के इस्तीफे के दिन ही सियासी जानकारों ने कहा था कि उन्होंने सोच समझकर रणनीति के तहत इस्तीफ़ा दिया है और अब पार्टी को मज़बूत करने में जुटेंगी.
2019 का लोकसभा चुनाव ही अब बसपा प्रमुख मायावती का अगला एजेंडा है. मतलब अगले 2 साल में वो खुद ज़मीन पर उतरकर संगठन की चूलें कसने और कार्यकर्ताओं में भरोसा जगाने का काम करेंगी. पार्टी दलित और मुस्लिम वोट बैंक को नज़र में रखकर अपना कार्यक्रम चलाएगी. लेकिन इस बात का खास ख्याल रखा जाएगा कि मुस्लिमों का मुद्दा उठाते वक़्त इसका फायदा हिंदू मतों के ध्रुवीकरण के लिए बीजेपी ना उठा पाए. सिद्दीकी के जाने के बाद पार्टी को नए मुस्लिम चेहरे की भी तलाश है.
पार्टी संगठन में होगा फेरबदल
मायावती जल्दी ही पार्टी संगठन में भी फेरबदल करने वाली हैं. पिछले कुछ महीनों में कई बड़े नेता पार्टी छोड़कर जा चुके हैं और ज़्यादातर ने बीजेपी का दामन थाम लिया है. दारा सिंह चौहान, स्वामी प्रसाद मौर्या, नसीमुद्दीन सिद्दीकी और ब्रजेश पाठक जैसे माया के खास नेता अब पार्टी में नहीं हैं. इन नेताओं द्वारा खाली हुई जगह की भरपाई के लिए नए नेताओं को बड़ी जिम्मेदारियां दी जा सकती हैं.
तो अब सभी की निगाहें 23 जुलाई की मीटिंग पर हैं, जिसमें माया के तेवर और भविष्य की रणनीति खुलकर सामने आएगी. साथ ही इस सवाल का जवाब भी आना बाकी है कि क्या माया, अखिलेश और कांग्रेस महागठजोड़ बनाएंगे. और क्या माया उपचुनाव में फूलपुर लोकसभा सीट से विपक्ष की संयुक्त उम्मीदवार बनेंगी.